वैसे तो हिंदुओं के बहुत से देवता हैं पर इन में ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रमुख हैं. इन्हीं के नाम से धर्म के धंधेबाज अपनी दुकानदारी चलाते हैं. ब्रह्मा की स्थिति घर के उस दाऊ जैसी है जिस के पैर तो सब पड़ते हैं पर महत्त्व कोई नहीं देता है. इस के पुत्रों की लिस्ट बहुत लंबी है. विष्णु प्रमुख देव है. इसी को भगवान, ईश्वर, परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्मा आदि नामों से पुकारा जाता है. इसी ने भारत में राम, कृष्ण व अन्य अवतार ले कर अनेक लीलाएं की हैं.
कार्तिक माह में इसी की पूजा की जाती है. कार्तिक व्रत स्त्रीपुरुष दोनों कर सकते हैं. पर व्यवहार में हम केवल हिंदू नारियों को ही कार्तिक स्नान व व्रत करते देखते हैं. कार्तिक माह का व्रत करने वालों को धन, संपत्ति, सौभाग्य, संतान सुख के साथ अंत में सब पापों से मुक्त हो कर बैकुंठ में राज करने की गारंटी दी गई है.
कार्तिक माह की कथा बहुत लंबी है. इस में कई अध्याय हैं. प्रत्येक अध्याय में काल्पनिक कथाएं जोड़ कर व्रत का महत्त्व अंधविश्वासियों के दिमाग में ठूंसठूंस कर भरा गया है. अंधविश्वास को पुष्ट करने के लिए शाप और वरदान का सहारा लिया गया है. पापपुण्य को ले कर पुनर्जन्म के काल्पनिक किस्से गढ़े गए हैं ताकि पंडेपुजारियों को मुफ्त का माल और चढ़ावा मिलता रहे. चढ़ावे से ही तो पिछले जन्मों के पाप धुलेंगे और अगला जन्म खुशहाल होगा.
कार्तिक व्रत की महिमा ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को सुनाई है. नारद ने सूतजी को और सूतजी से अन्य ऋषिमुनियों ने सुनी है. बाद में इस कथा को धर्म के धंधेबाज पंडेपुजारियों ने लिखी है. जिस में गपें और बेसिरपैर के किस्से भरे हुए हैं. यहां कथा का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत है.
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