एक दौर था जब आईटी सैक्टर में  भारत की तूती बोलती थी. दावा  किया जाता था कि आईटी यानी सूचना तकनीक की मशीनी दुनिया में भारतीय युवा प्रतिभाओं ने जो कमाल किया है, उस के दम पर भारत पूरे विश्व का ग्रोथ इंजन बना हुआ है. इस की 2 वजहें थीं, पहली-कंप्यूटर, इंटरनैट विषयों को समझने की सही वक्त पर शुरुआत और दूसरी, युवाओं का अंगरेजी ज्ञान.

इन 2 वजहों से भारतीय युवा देखतेदेखते पूरी दुनिया पर छा गया, लेकिन यह कमाल सिर्फ सर्विस सैक्टर में हुआ यानी हम ने जो ज्ञान हासिल किया वह अमेरिका, ब्रिटेन आदि मुल्कों में नौकरी पाने में लगाया. कुछ मानो में यह कमाल आज तक जारी है. गूगल के सीईओ के रूप में सुंदर पिचाई की मौजूदगी यह बात साबित करती है.

लेकिन ऐसा चमत्कार भारत और भारतीय प्रतिभाएं वहां नहीं कर सकतीं, जहां चीन ने बाजी मार ली. यह मामला गूगल, फेसबुक, ट्विटर, अलीबाबा और माइक्रोसौफ्ट जैसी इंटरनैट सेवाएं विकसित करने का है. इन ज्यादातर चीजों में किसी न किसी स्तर पर भारतीय आईटी पेशेवरों ने अपना योगदान दिया है, लेकिन ऐसा ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कोई कारनामा भारतीय जमीन पर नहीं हो सका. इस के लिए जहां एक ओर हमारे देश के नीतिनिर्धारक नेता जिम्मेदार हैं जो देश और समाज को ऐसे मामलों में कोई नई दृष्टि व योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वैसा मंच नहीं दे पाते हैं, तो दूसरी ओर बड़ी समस्या जनता के स्तर पर है.

भारत की जनता एक ओर तो भेड़चाल में विश्वास करती है, विदेशी चीजों के विकल्प के रूप में किसी नए प्रयोग को आजमाने में नाकभौं सिकोड़ती है तो दूसरी तरफ, देश की भलाई के लिए कोई पाबंदी लगाई जाएगी, तो लोकतंत्र की दुहाई दे कर वह सरकार को कोसने में जुट जाती है.

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