दुनिया भर में इंटरनैट टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर घरेलू चीजों को घर बैठे पहुंचाना असल में औरतों की शौपिंग की मूलभूत स्वतंत्रता और घूमने के अधिकार पर गहरा आघात है. मगर औरतें हैं कि यह समझ ही नहीं रहीं और न ही सोच पा रही हैं. वे सोच रहीं कि घर बैठे चीजें मिल रही हैं तो उन की आफत टली.

यही आफत तो औरतों का घर से निकलने का एक अनूठा उपाय था, जो पिछले 100 वर्षों में बड़ी मुश्किल से उन्हें मिला हुआ था वरना अनाज या सब्जी मंडी से सामान आदमी लाया करते थे. दूसरा फुटकर सामान फेरी वाले घरघर पहुंचाया करते थे. साडि़यां, जेवर सेठ व्यापारी घर ले जा कर ही दिखाया करते थे. अमेरिका में पिछली सदी में सेल्समैन पीठ पर 100-100  किलोग्राम वजन के संदूक उठा कर घरघर जाते थे और कढ़ाई की गई शौलों से ले कर कांच की मूर्तियां तक बेचा करते थे.

यह अधिकार तो बड़ी मुश्किल से मिला था कि औरतें सजधज कर खुद बाजारों में निकल सकती थीं और नई चीजों को देखने के बहाने अपने नए कपड़ों और जेवरों की नुमाइश भी कर आती थीं. आतेजाते कुल्फी और चाट का मजा भी पता चल जाता था. अब तो हर चीज की होम डिलिवरी है.

यह होम डिलिवरी या औनलाइन शौपिंग वैसी ही है जैसेकि लड़की को 10 फोटो दिखा कर कहा जाए कि इन में से एक को चुन लो, शादी कर लो, बच्चे पैदा करो और पूरी जिंदगी यों ही बंद माहौल में गुजार दो. औनलाइन शौपिंग सुविधा हो या न हो पर यह औरतों की महत्त्वपूर्ण स्वतंत्रता को छीन रही है.

डर यह है कि भीरु और अदूरदर्शी औरतें औनलाइन शौपिंग न अपना लें और कहीं इतना न अपना लें कि शोरूम और मौल ही बंद हो जाएं और अकेला तरीका औनलाइन शौपिंग रह जाए.

ठीक है, औनलाइन शौपिंग में पैसे बचते हैं पर ये पैसे बचाना भी किस काम का होगा जब बाहर निकलने की जरूरत ही न हो. औनलाइन पर तो सभी जा सकती हैं, इसलिए किसी के पास ऐक्सक्लूसिव सामान न होगा.

सब एक सा पहनेंगी, औनलाइन सस्ता, बिना क्वालिटी परखे सामान बरतेंगी और यदि किसी किट्टी पार्टी में मिली भीं तो वह किट्टी पार्टी औनलाइन बुकिंग पर व्हाट्सऐप संदेशों के जरीए बुक होगी.

खुद की महकती, मदमाती आवाज का इस्तेमाल भी यह मुआ औनलाइन कंप्यूटर या मोबाइल छीन लेगा. कल्पना कीजिए मुंह बंद, नाइटी में सारा दिन कैद, इंटरनैट के नैट में फंसी औरतों की आजादी होगी कहां?

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