हजारों वर्षों से सभी धर्मों के पूंजीवादी ठेकेदारों ने जिस तरह अपने स्वार्थ और अहंसिद्धि के लिए औरतों को धर्मपालन के नाम पर मानसिक रूप से जड़ बनाया है, उन्हें अपराधभावना में डुबो कर उन का मनोबल तोड़ा है, वह आज 21वीं सदी में भी साफ दिखता है. सिर्फ दिखता ही नहीं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी लड़कियां धर्म के वशीभूत हो खुद स्टौकहोम सिंड्रोम से ग्रस्त हो चुकी हैं.
40 साल पहले स्टौकहोम में बैंक डकैती करने वालों ने कुछ लोगों का अपहरण कर लिया था. इन पर अत्याचार भी किए. बाद में ये अपहृत लोग जीने की मजबूरी में इन डकैतों को ही बचाने में लगे थे. इन्होंने हर उस मदद करने वाले का विरोध किया जो इन डकैतों को सजा दिलाने का प्रयास करता. बस इसी कुंद पड़ी डरी हुई मानसिकता को साइकोलौजी के जानकार स्टौकहोम सिंड्रोम कहते हैं और आज धर्म की गुलामी करतीं वे सारी आरतें इसी सिंड्रोम की शिकार हैं. वे उसी धर्म और उस की मनमानी का सहारा ढूंढ़ती हैं, जो वास्तव में उन के सम्मानपूर्ण न्यायोचित वजूद के खिलाफ है.
समझें धर्म की असलियत
धर्म जो धारण करे, पालन करे, कर्तव्य को प्रेरित करे वह धर्म व्यक्तिगत उत्थान के लिए अपने आचरण को विवेक की कसौटी पर कसने को कहता है, मगर इस धर्म का कहीं कोई नामोनिशान न आज है न कभी था.
धर्म जीवन का भय दिखा कर जीवन को लूटता है, प्रियजन के विनाश का भय दिखा कर प्रियजन का ही सर्वनाश करता है, धनसंपत्ति के लुट जाने का भय दिखा कर गरीब से गरीब तक का धन लूट लेने में संकोच नहीं करता और यह सारा खेल खेलते हैं धर्म के पृष्ठपोषक, पूंजीवादी, भोगी, हठी, धर्म के बड़ेबड़े दुकानदार, ठेकेदार-पोप, मौलवी, पंडे, भिक्षु.