भारतीय संस्कृति में धर्म और अंधविश्वास इस कदर लोगों के दिलोदिमाग में बसे हुए हैं कि वे आंखें बंद कर के आस्था के नाम पर कुछ भी कर गुजरते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार कुछ देवीदेवताओं को खुश करने का तरीका केवल रक्त यानी खून बहाना बताया गया है. पशु बलि से ले कर इनसानी खून तक का इस्तेमाल पत्थर की मूर्तियों को खुश करने में किया जाता है.

वैसे इन मान्यताओं का कोई ठोस आधार भले ही न हो मगर लोग इसे जीवन का एक हिस्सा मानते हैं. इस के अलावा शरीर को कष्ट पहुंचा कर अपने अपराध में आस्था दिखाना भी हिंदू मान्यता का ही एक अंग है. लोग बीमारी के इलाज से ले कर सुखशांति पाने तक के लिए किसी भी हद तक जा कर अपनेअपने भगवान को खुश करने की कोशिश करते हैं और यह सब होता है अंधविश्वास के चलते. पंडेपुजारी आम जनता को भगवान के नाम पर जम कर फुसलाते हैं. देवी- देवताओं का प्रकोप बता कर लोगों को भयभीत कर उन की अंधी आस्था से खिलवाड़ करते हैं.

उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा गांव में भी कुछ ऐसी ही परंपरा है. यहां बगवाल मेले का आयोजन किया जाता है. बगवाल पत्थर फेंकने को कहा जाता है. इसलिए इस मेले कोे बगवाल मेला कहते हैं. मान्यता के अनुसार हर साल रक्षाबंधन के दिन यहां के वाराहीदेवी मंदिर के पास अलगअलग जाति और समुदाय के लोग जमा होते हैं और 2 गुटों में बंट कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. यह मेला 13 दिन तक चलता है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन यहां खासा उत्साह देखा जाता है. इस बगवाल कार्यक्रम में दोपहर के समय 10-15 मिनट के लिए यह खूनी खेल खेला जाता है.

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