पुराने मित्रों का एक गुट दक्षिण मुंबई की लबूरनूम रोड पर स्थित एक घर में जमा है. इन्हीं में से एक 61 वर्षीय रफात मेहर ने कहा, ‘‘हम न तो विद्रोही हैं और न ही समाजसुधारक हैं.’’ इस बात का समर्थन वहां उपस्थित अन्य 4 महिलाओं ने भी किया. ये वे 5 महिलाएं हैं जिन्होंने अपना प्रेम पाने के लिए अपने समुदाय को छोड़ कर गैर समुदाय में शादी की है. 25 वर्ष पूर्व रफात मेहर, अमरसेय, स्मिता गोदरेज, वेरा महाजन और खुरशीद नारंग ने अपना संगठन बनाया था. इस संगठन में इन का साथ आने का मुख्य कारण था एक जवान औरत रोक्सन दर्शन की एक दुर्घटना में मृत्यु, जो पारसी घराने की बेटी थी लेकिन उस ने अपने समुदाय से अलग गुजराती पुरुष से विशेष कानून 1954 के तहत शादी की थी, उस का पार्थिव शरीर शांति स्तंभ से वापस लौटा दिया गया था. गैरसरकारी संगठन चलाने वाली रफात का कहना है कि पारसी समुदाय के अधिनियम के अनुसार जो पारसी गैरपारसी से विवाह करता है उसे व्यभिचार का दोषी माना जाता है. विरोधियों ने बौंबे पारसियों की एक पंचायत बुलाई, जिस का नेतृत्व न्यायाधीशों और विद्वानों ने किया. पंचायत में यह निर्णय लिया गया कि यदि उस के मातापिता या पति द्वारा यह शपथपत्र प्रस्तुत किया जाए कि उक्त महिला ने ताउम्र पारसी धर्म का पालन किया है, तभी उस के पार्थिव शरीर को शांति स्तंभ में रखा जा सकता है.

रफात का कहना है कि इस पंचायत के विरोध में ही हम 5 महिलाओं ने मिल कर एक संगठन बनाया. रफात का आगे कहना है कि आज भी गैरपारसी समुदाय में विवाह करने वाली महिलाओं के साथ भेदभाव बरता जाता है, लेकिन अब महिला संगठन उन महिलाओं की पारसी धर्म के रीतिरिवाजों के पालन कराने में मदद करता है. कुछ विद्रोही पादरी इस प्रकार की अवधारणा की निंदा करते हैं. हालांकि पारसी धर्म पुरुष व महिला की समानता की पैरवी करता है. रफात, जिन्होंने 1989 में बहाई व्यक्ति से शादी की थी, मानती हैं कि धर्म में कट्टरवाद पनप रहा है. मुंबई पारसियों का गढ़ है. यहां के एक ट्रस्टी नोशिर दादरावाला का कहना है कि मुंबई में पारसी पंचायत एक छोटा सा संगठन है जो धर्म का सरपरस्त और पारसी संपत्ति व फंड पर नियंत्रण रखता है. इस पंचायत में कोई लिंग भेदभाव नहीं होता.

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