16 दिसंबर, 2012 की रात को दिल्ली में 23 साल की पैरामैडिकल की छात्रा निर्भया के साथ गैंगरेप हुआ, उसे सफदरजंग अस्पताल में नाजुक स्थिति में भरती करवाया गया. 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में उस छात्रा की मौत हो गई. इस जघन्य घटना ने पूरे संसार को हिला कर रख दिया था, जैसे पूरा भारत, पूरा विश्व एक आवाज में बोल रहा था कि क्यों हुआ ऐसा निर्भया के साथ. इस कांड को निर्भयाकांड के नाम से जाना जाता है. बलात्कार की बढ़ती घटनाएं
निर्भयाकांड के आरोपियों को सुप्रीमकोर्ट द्वारा फांसी की सजा दिए जाने से उम्मीद जगी थी कि अब कानून की सख्ती से दरिंदे डरेंगे, लेकिन क्या ऐसा हुआ? क्या बलात्कार की घटनाएं होनी बंद हो गईं? एक निर्भया के मरने के बाद हर दिन, हर साल कितनी ही निर्भयाएं बलात्कार की शिकार हो रही हैं. इस कांड के बाद आंकड़े गवाह हैं कि भारत में प्रतिदिन 92 महिलाएं बलात्कार की शिकार होती है, जिन में 4 सिर्फ दिल्ली की होती हैं. देश में लगभग 20 मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है. ये तो वे आंकडे़ हैं जो पीडि़त द्वारा पुलिस में दर्ज कराए जाते हैं. सोचिए, ये मामले इस से कहीं ज्यादा होंगे, क्योंकि अभी भी 80 प्रतिशत स्त्रियां लोकलाज, गरीबी, असहाय या अशिक्षित होेने के कारण थाने तक नहीं पहुंच पातीं.
आखिर वे क्या कारण हैं जो पुरुषों को बलात्कार के लिए उकसाते हैं? आइए जानें कुछ मनोवैज्ञानिकों के विचार – कमला नेहरू कालेज, दिल्ली में असिस्टैंट प्रोफैसर और ‘सैक्सुअल क्राइम औफ वुमेन इन देहली’ जैसे विषय पर पीएचडी कर चुके डा. तारा शंकर कहते हैं, ‘‘यह मैंटैलिटी ही ऐसी होती है. हमारा दिमाग पुरानी परंपराओं और आदतों से घुलामिला है. कुछ जनजातियों को छोड़ दें तो हर जगह महिलाओं को उपभोग करने का सामान समझा जाता है. दिमाग में औरत के प्रति यह जो नजरिया है, वह ही गलत है. जहां तक रेप की बात है, तो अगर मौका मिल जाए तो समाज का हर दूसरा या तीसरा पुरुष रेपिस्ट निकलेगा.
‘‘पोर्न, कपड़े या दूसरी वजहें तो सिर्फ माध्यम हैं. मौका मिलने के बाद अगर पकड़े जाने का डर न हो तो लोग रेप करने से संकोच ही न करें. पोर्न में दिखने वाला हिंसक सैक्स भी लोगों के अंदर उसी श्रेष्ठता को सिद्ध करता है जो हमारा समाज सिखाता है कि पुरुष महिलाओं से श्रेष्ठ व ताकतवर होते हैं. वे कुछ भी कर सकते हैं. श्रेष्ठ होने का यह मिथक लोगों के भीतर स्थापित है और वे ऐसा कर के संतुष्ट होते हैं.’’ मुंबई की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक सोनाली गुप्ता कहती हैं, ‘‘पुरुषों द्वारा रेप करने की पहली वजह तो यह है कि हमारी सोसाइटी कितने ही लोगों के लिए अपनी पावर दिखाने का माध्यम बन जाती है. ऐसे लोग अपना हक जमा कर अपनी एक आइडैंटिटी क्रिएट करना चाहते हैं. दूसरा कारण है कि अगर कोई लड़की उन्हें पसंद आ जाती है, तो उन्हें लगता है कि वह हर हाल में मिलनी चाहिए, चाहे वह हां कहे या ना. तीसरी अहम वजह है कि वे अपनी कामोत्तेजना को कंट्रोल नहीं कर पाते, न ही वे इसे कंट्रोल करना चाहते हैं.
‘‘ऐसे लोगों के लिए रेप बदला लेने का माध्यम भी बन जाता है. कुछ ऐसे मनोरोगी होते हैं जिन्हें दूसरों को नुकसान पहुंचा कर अच्छा लगता है. इन के लिए दूसरे को चोट पहुंचाना मानसिक संतुष्टि जैसा होता है. इन्हें इलाज की जरूरत होती है क्योंकि इन का मानसिक संतुलन ठीक नहीं होता.’’ वे आगे कहती हैं, ‘‘उन्हें सिखाया ही नहीं गया कि लड़कियां भी लड़कों जैसी ही होती हैं, उन की मरजी के खिलाफ सैक्स नहीं करना चाहिए. इस के अलावा समाज में मैसेज देने वाला जो मास मीडिया है, उस पर अगर सैक्सुअल वौयलैंस दिखाया जाएगा, उन का कोई पसंदीदा हीरो लड़की के साथ जोरजबरदस्ती करेगा, तो लोग उसे रोलमौडल की तरह ही लेंगे. हम अभी भी मीडिया के तौर पर ज्यादा सैंसिटिव नहीं हुए. म्यूजिक वीडियोज, गीतों या फिल्मों में औरत को उपभोग की वस्तु की तरह पेश किया जाता है. जब तक पुरुष खुद को पावर पोजीशन में देखेंगे, रेप होते रहेंगे. हमें औरत के प्रति मानसिकता बदलनी ही होगी.’’
पुरुषों में एक श्रेष्ठता की भावना भरी होती है कि वे कुछ भी कर सकते हैं, जैसे सड़कों पर घूमना, कहीं भी आनाजाना आदि. लेकिन जब ये चीजें कोई लड़की करती है तो उन्हें लगता है कि एक लड़की ऐसा भला कैसे कर सकती है. यह भावना उन्हें उस लड़की के साथ जबरदस्ती करने को उकसाती है. मर्दों को रेप करना अपनी ताकत को दिखाने का जरिया नजर आता है. जिन लोगों की पेरैंटिंग अच्छी होती है, वे इस तरह की चीजों को समझते हैं. लेकिन हमारे देश में लोग शिक्षा और सही समय पर मिलने वाली सैक्स एजुकेशन, दोनों के न मिलने के कारण ज्यादा हिंसक हो जाते हैं. वे सैक्स से संबंधित जरूरी बातें हिंसक तरीके से सीखते हैं, जैसे सड़कों पर झगड़ों के द्वारा. इसलिए उन्हें लगता है कि ये ही सही तरीका है.
जो बच्चे सड़कों पर पलेबढ़े हों या मजदूरी करते हों, वे अच्छी तरह से शिक्षित नहीं होते. वे अपने बचपन में इस तरह की हिंसक घटनाओं की चपेट में आ सकते हैं. इसलिए उन के दिमाग में वे चीजें बनी रहती हैं और मौका मिलने पर वे उन चीजों को हिंसक तरीके से ही करते हैं. स्त्रियों के प्रति मानसिकता
द्य लोगों की महिलाओं के प्रति ओछी मानसिकता भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. निर्भया गैंगरेप के आरोपी के वकील ए पी सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा कि अगर मेरी बेटी भी बगैर अनुमति के किसी मर्द के साथ बाहर जाए और किसी से संबंध बनाए तो मैं उसे जान से मार दूंगा, आग लगा कर जला दूंगा. द्य आरोपी पवन गुप्ता की बहन का कहना है कि इंसान से गलती हो जाती है, उसे दूसरा मौका मिलना चाहिए. उस का कहना था, हमेशा लड़के की ही गलती हो, ऐसा जरूरी नहीं है.
द्य आरोपी ड्राइवर मुकेश सिंह ने बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘यदि निर्भया रेप के समय चुप रहती तो उस की हत्या नहीं होती.’’ द्य निर्भया कांड पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद बहुत से लोग यह बोलने से नहीं चूक रहे थे, ‘महिलाओं को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए कि पुरुष उत्तेजित हो कर ऐसा कुकृत्य करने के लिए मजबूर हो जाएं.’
पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने ठीक ही कहा कि बस ड्राइवर के बयान ने एक बार फिर उस पुरुष मानसिकता को उजागर कर दिया है जिस के तहत वह नारी को अपनी जैविक संपत्ति समझता है. उन की दलील है कि किसी अपराध का पता लगाने और दोषियों को सजा देने से पहले बचाव जरूरी है. लेकिन जब तक अपराध की मूल वजह का पता नहीं चलता, तब तक उस से बचाव कैसे किया जा सकता है. लगभग मिलतेजुलते बयान देने वाले इन लोगों की सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि नदी के 2 छोरों की तरह भिन्न है. बावजूद इस के अगर इन की जबान से मिलतेजुलते शब्द निकल रहे हैं तो इस के लिए देश की वह पुरुष मानसिकता ही जिम्मेदार है जिस में आज भी महिला को भोग्या समझा जाता है.
स्त्रियां दोषी दिसंबर 31, 2011, हैदराबाद : आंध्र प्रदेश के डीजीपी वी दिनेश रेड्डी ने कहा था कि बढ़ते रेप के मामलों के लिए फैशनेबल कपड़े जिम्मेदार हैं. डीजीपी ने यह भी कहा कि अपने पारदर्शी कपड़ों की वजह से महिलाएं लोगों को उकसाती हैं और नतीजतन, रेप जैसी घटनाएं होती हैं.
आंध्र प्रदेश के डीजीपी अपने इस बयान से विवादों में घिर गए. इस बयान पर तब के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा था कि हर किसी को अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है. आरटीआई ऐक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने 2014 में उत्तर प्रदेश के तमाम थानों से बलात्कार के मामलों पर कई बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी थी. करीब 40 थानों ने बलात्कार की घटनाओं में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराया था. इस में महिलाओं के कपड़ोें, मोबाइल फोन, इंटरनैट, टीवी और सिनेमा के साथ ही कुछ ने तो यहां तक कहा था कि महिलाओं के अर्धनग्न कपड़ों से नजर आती अश्लीलता इस के लिए जिम्मेदार है.
हाल ही में चंडीगढ़ के एक रेप केस में सांसद किरण खेर ने नसीहत देते हुए कहा कि जब लड़की को पता था कि आटो में पहले से ही आदमी बैठे हुए हैं तो उस आटो में नहीं बैठना चाहिए था. इसे राजनीतिक मोहरा बनाते हुए विपक्ष के नेता पवन कुमार बंसल ने किरण के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि किरण के बयान पर मुझे हैरानी हो रही है. किरण को ऐसे बयान देने की जगह यह बताना चाहिए कि चंडीगढ़ को महिलाओं के लिए और सुरक्षित कैसे बनाया जा सकता है. अमूमन ऐसी घटनाओं के बाद सरकारें व सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी इन पर परदा डालने में जुट जाती हैं और विपक्ष व दूसरे सामाजिक संगठन धरनेप्रदर्शनों में, लेकिन घटना के मूल कारणों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता.