इच्छामृत्यु के बाबत आखिरकार सुप्रीम कोर्ट अब इस बात के लिए तैयार हो गया है कि आम लोगों को जीने के साथ मरने का भी मौलिक अधिकार है. यह एक किस्म से उस की अब तक की सोच का यूटर्न है. कुछ लोग इसे नागरिक आजादी की चरम निजता का सम्मान मान रहे हैं, तो कुछ लोगों की नजर में यह बेहद खौफनाक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट के जानेमाने वकील और स्त्रियों, बच्चों तथा तमाम वंचित तबकों के मानवाधिकारों की हमेशा वकालत करने वाले अरविंद जैन इच्छामृत्यु पर शुरू से ही लगातार अपनी सुचिंतित प्रतिक्रिया व्यक्त करते रहे हैं. पेश हैं सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक कहे जाने वाले फैसले के बाद उन से हुई विस्तृत बातचीत के महत्त्वपूर्ण अंश-
सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु का जो ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिस में जीवन के साथ मृत्यु को भी गरिमापूर्ण बनाने की बात कही जा रही है, उस के बारे में क्या कहेंगे? यह बेहद खतरनाक फैसला है. खासकर इस माने में हम देश को दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, पुणे और कोलकाता की नजर से ही नहीं देखें. बीमारियां और खासकर लाइलाज बीमारियां सिर्फ इन शहरों में ही नहीं होतीं, गांव में भी, कसबों में भी, ऐसे दूरदराज के इलाकों में भी जहां तमाम मैडिकल सुविधाएं हैं ही नहीं, वहां भी होती हैं, जिन से जूझने के बजाय हम उन के मुकाबले जीवन को ही खत्म कर देने का सरल विकल्प ढूंढ़ लाए हैं. यह पलायन है. यह इंसान की गरिमा और उस के जज्बे का अपमान है.
देश के बड़े हिस्से में तो लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम भी नहीं है, वहां तो लोग इस फैसले की आड़ में मामूली सी बीमारियों को भी लाइलाज बता कर जीवन को निबटा देंगे. जरा, कोई सुप्रीम कोर्ट से पूछें जहां आज तक एक सुविधासंपन्न हौस्पिटल नहीं पहुंचा, उन जगहों, उन इलाकों में मृत्यु के फैसले को न्यायोचित ठहराने वाला मैडिकल बोर्ड कहां से आएगा? क्या इतने डाक्टर देश में हैं जो हर इच्छामृत्यु को जांचपरख सकें कि मरने वाले की इच्छा से ही या सही मानो में ऐसा जीवन खत्म हुआ है, जिस के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी.