जीवन में जन्म और मृत्यु निश्चित है और कहते हैं कि हर इंसान के जन्म से पहले ही उस का प्रारब्ध लिख दिया जाता है. हम नहीं जानते कि इस में कितनी सचाई है, परंतु इतना अवश्य है कि इंसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ के लिए हमेशा संघर्ष करता है. जिस के पास ये तीनों चीजें जरूरत से ज्यादा हैं, वह अमीर कहलाता है, किंतु कुछ के पास 2 हैं तो वे ठीकठाक जिंदगी बिताते हैं, परंतु बहुत से लोग हमारे समाज में ऐसे भी हैं जिन के पास पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी तक उपलब्ध नहीं है. इन्हीं बातों को मद्देनजर रखते हुए राजकुमार भाटिया व उन के साथियों ने एक खास पहल की और उस पहल का नाम दिया ‘रोटी बैंक… ताकि कोई भूखा न रहे.’
उन्हें यह प्रेरणा तब मिली जब 2015 में एक दिन उन के पास एक व्यक्ति काम मांगने आया. राजकुमार भाटिया बताते हैं कि उस समय वे उसे कोई काम नहीं दे सकते थे. उन्होंने उसे कुछ पैसे देने चाहे, परंतु उस व्यक्ति ने पैसे लेने से इनकार कर दिया और बोला, ‘मुझे पैसे नहीं चाहिए, हो सके तो मुझे खाना खिला दीजिए.’
उन्होंने उसे खाना खिला दिया. परंतु उन के मन को यह बात कचोटती रही कि इंसान कितना मजबूर हो जाता है जब उस के पास पेट भरने के लिए दो रोटी भी नहीं होती और वह मांगने पर मजबूर हो जाता है. ऐसे अनेक लोग होंगे जो दो जून की रोटी को तरसते होंगे. फिर उन्होंने अपने मित्र सुधीर से बात की और रोटी बैंक शुरू किया. एक सफेद डब्बे पर ‘रोटी बैंक’ लिख कर रखा गया और इस तरह से इस कार्य की शुरुआत हुई. फिर एक के साथ एक लोग जुड़ते चले गए और कारवां बन गया.
रोटी बैंक टीम का कहना है, ‘‘रोटी बैंक एक प्रयोग है, एक साधना है, एक प्रयास है बढ़ रही सामाजिक गैरजिम्मेदारी को कम करने का. रोटी बैंक एक संघर्ष है भूख के विरुद्ध. रोटी बैंक एक मकसद है सेवा का, मानवता का. रोटी बैंक एक बैंक है जहां पैसा जमा नहीं होते, जहां जमा होती हैं रोटियां. रोटी बैंक एक कोशिश है, साधनसंपन्न लोगों को प्रेरित करने का कि वे अपनी रोटियों के साथ 2 रोटियां एक जरूरतमंद के लिए भी बनवाएं और उसे अपने आसपास की रोटी बैंक शाखा में जमा करवाएं जहां से उन रोटियों को भूख से संघर्ष कर रहे लोगों तक पहुंचाया जा सकें.’’
जानीमानी एंकर रिचा अनिरुद्ध, जो 92.5 एफएम में कार्यरत हैं, ने इस टीम से संपर्क किया और इस मुहिम को अपने कार्यक्रम के जरिए आम व खास लोगों तक पहुंचाया. हालांकि रोटी बैंक की टीम प्रचार नहीं चाहती थीं परंतु जनजन तक इस मुहिम को पहुंचाने के लिए कोई न कोई माध्यम तो चाहिए ही था. फिर एक दैनिक समाचारपत्र ने इन की मुहिम को छापा. इस तरह से लोग रोटी बैंक से जुड़ते चले गए.
रोटी बैंक की टीम ने स्कूलों से भी जुड़ना शुरू किया. आज दिल्ली के 9 स्कूल इस मुहिम से जुड़े हुए हैं. रोटी बैंक की टीम ने एक स्कूल में जा कर सुबह की प्रार्थना के दौरान रोटी बैंक के बारे में सब को बताया और बच्चों को प्रेरित किया ताकि वे अपने लंच के साथ एक पैकेट खाना उन बच्चों के लिए बनवाएं जो अभावग्रस्त हैं और जरूरतमंद हैं. इस तरह स्कूल भी इस मुहिम से जुड़ते चले गए.
स्कूलों के माध्यम से रोटी बैंक कपड़े, किताबकौपियां एकत्रित कर के रोटी बैंक से लाभान्वित बच्चों को शिक्षा प्रदत्त करवाने का प्रयास भी कर रहा है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.
रोटी बैंक के लिए यह बहुत गौरवशाली क्षण था जब 30 अप्रैल, 2017 को प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में रोटी बैंक के युवा कार्यकर्ताओं की सराहना की.
इस संस्था द्वारा अब तक रोटी बैंक के 63 सैंटर खोले जा चुके हैं जो इस कार्य में लगे हुए हैं. हर सैंटर से रोज खाना एकत्रित करना, फिर उसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाना अपनेआप में यह कार्य आसान नहीं है, परंतु बस, टीम की निष्ठा ने इस कार्य को कर दिखाया है.
एक बाल सुधार गृह में 300 से 400 पैकेट खाना रोज भेजा जा रहा है. सप्ताह में 2 दिन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के बाहर दूरदूर से आए मरीजों के परिजनों को भोजन (रोटी पैकेट्स) पहुंचाने की भी व्यवस्था है.
आज तक एक दिन में 3,890 पैकेट बांटे गए हैं, यह एक दिन की अधिकतम संख्या है. 3 रोटी, साथ में अचार या सूखी सब्जी, यह एक पैकेट का निश्चित भोजन है जो किसी व्यक्ति की एक वक्त की भूख को शांत कर देता है. 31 दिसंबर, 2017 तक 5 लाख 58 हजार लोगों को रोटी बैंक द्वारा सम्मानपूर्वक भोजन करवाया जा चुका है. कूड़ा बीनने वाले बच्चों, स्कूल जाने वाले बच्चों और मजदूरों के बच्चों को खाना बांटा जाता है. नशा करने वालों और मंदिर के बाहर बैठ कर मांगने वालों को यह खाना नहीं दिया जाता.
कुछ लोग और कुछ वृद्ध ऐसे भी हैं जिन के पास सबकुछ है, परंतु देखभाल करने वाला, खाना खिलाने वाला कोई नहीं है, तो उन के लिए टिफिन भेजा जाता है, जो पूर्णतया गोपनीय रहता है ताकि उन के सामाजिक सम्मान में कमी न आ पाए. नई दिल्ली के महिंद्रा पार्क में झुग्गी के साथ घर में रह रहे दोनों पतिपत्नी घुटने की वजह से चलनेफिरने से लाचार थे, राजकुमार भाटिया उन का टिफिन खुद पहुंचाते थे. जब आसपास के लोगों को पता चला तो उन लोगों ने उस दंपती के खाने की जिम्मेदारी ली.
सार्थक कार्य
जब मन में सेवाभाव हो, तो लोग अपनेआप जुड़ जाते हैं. रोटी बैंक टीम के वौलंटियर्स फोटो और प्रचार से परहेज करते हैं और अपने काम को स्थिर भाव से अंजाम देते हैं. किसी भी पोस्टर, बैनर या पोस्ट पर इन के फोटो उपलब्ध नहीं हैं.
इस टीम का कहना है कि वह कभी किसी से चंदा या धनराशि नहीं लेगी. जितना भी करेगी अपने ही बलबूते पर करेगी. ‘रोटी बैंक’ इफरा यानी इंडियन फूड रिकवरी अलाएंस में साझीदार है. यह भारत सरकार का एक अभियान है, जिसे एफएसएसएआई यानी खा- सुरक्षा मानक प्राधिकरण द्वारा संचालित किया जा रहा है.
रोटी बैंक बचा हुआ खाना नहीं लेता और यह टीम बीचबीच में खाना खा कर चैक करती है कि यह खाना ताजा है और खाने लायक है या नहीं.
किसी भी बड़े कार्य को शुरू करना तो आसान होता है परंतु उस का निरंतर प्रबंधन करना मुश्किल होता है. जब किसी की एक सार्थक पहल किसी दूसरे के मन को छू ले और सज्जन शक्तियां जब एकसाथ हो जाती हैं तो कार्य पूर्ण होने लगते हैं. रोटी बैंक के साथ ऐसा ही हुआ है और हो रहा है.