पत्नी की बहन से कहासुनी में भी अदालतों के दरवाजे खटखटाए जा सकते हैं, यह अजीब बात है पर यूनाईटेड अरब अमीरात जैसे एक दकियानूसी समाज में ऐसा ही हुआ. वहां एक आदमी ने अपनी पत्नी की बहन पर मुकदमा कर दिया कि उस ने उसे खुदगर्ज कहा था, जिस से उसे बहुत ठेस पहुंची.

इस शिकायतकर्ता की दोस्ती पत्नी की बहन के पति से भी थी और उन दोनों के झगड़ों में एक का पक्ष लेने पर साली ने उसे खुदगर्ज कह डाला था.

इस तरह के शब्द दुनियाभर में परिवारों में कहे जाते हैं, कभी बहुत कटुता से, कभी थोड़ी नर्मी से पर यह तो स्वाभाविक ही है कि जहां आपसी संबंध होंगे भाईबहन और उन के संबंधी विवादों में बीचबचाव करेंगे ही. इस बीचबचाव में एक का पक्ष लेने पर कानून का सहारा ले लिया जाए यह बहुत अजीब है.

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कानून का सहारा व्यक्तिगत मामलों में परमानैंट क्रैक डाल देता है. जब भी भाईबहन, पतिपत्नी या अन्य रिश्तेदार एकदूसरे पर मुकदमे करते हैं तो बंद कमरों की बातें बाहर आती हैं, वकीलों को पता चलती हैं. जज के सामने बहुत कुछ कहना पड़ता है. वे तथ्य भी निकलने लगते हैं, जिन का विवाद से मतलब ही न हो. दोनों तरफ के वर्षों के गड़े मुरदे भी उखाड़े जाते हैं और इस भंवर में कई रिश्ते फंस जाते हैं.

रिश्तों को बनाए रखना न पहले आसान था न आज है. रिश्तेदार कभी संबल बनते हैं तो कभी जड़ खोदने वाले होते हैं पर आज की उलझती जिंदगी में रिश्तों की पूंजी ऐसी है जिस के बिना जीना आसान नहीं. जब 5-7 बच्चे होते थे, 5-7 भाईबहन होते थे, 2-4 से झगड़ा हो जाए तो भी काम चल जाता था पर आज यह संभव नहीं है. अकेलों को वक्त पर सहारा देने वाला चाहिए होता है और जिन्हें दोस्त कहा जाता है वे अच्छे दिनों के होते हैं, बुरे दिनों के नहीं. लंगोटिया स्कूली दिनों के दोस्तों को छोड़ दें तो रिश्तेदारों से बढ़ कर कोई भरोसेमंद नहीं होता.

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रिश्तों में बुराभला कहने की पूरी छूट होनी चाहिए जैसी बचपन में होती है. रिश्तेदारी वही होती है जिस में किसी का कहा बुरा न माना जाए और माना भी जाए तो 2-4 दिनों के लिए. मगर अफसोस यह है कि हमारे यहां तो पाठ पढ़ाया जाता है कि तेरा कोई अपना नहीं, तू अकेला आया था, अकेला जाएगा, यहां कोई सगा नहीं. पौराणिक युग से ले कर आज तक यही चलता आ रहा है. यूएई में अगर बहन के पति ने बुरा मान लिया तो क्या बड़ी बात है, वह हमारी संस्कृति का अनुमोदन ही कर रहा है.

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