‘कभीकभी मेरे दिल में खयाल आता है कि ये बदन ये निगाहें मेरी अमानत हैं, ये गेसुओं की घनी छांव है मेरी खातिर, ये होंठ और ये बांहें मेरी अमानत हैं...’ गाने की इन पंक्तियों को सुन कर जो पहला खयाल जेहन में आता है वह यह है कि पुरुष को यह अधिकार किस ने दिया कि वह किसी भी महिला को यह कह सके कि तुम्हारा शरीर, तुम्हारी खूबसूरती और तुम्हारा वजूद मेरे लिए है या मेरी अमानत है? हां, प्यार और उस में लिप्त प्रेमी के लिए यह कहना भावों में बहने समान है, परंतु क्या यह समाज को आईना दिखाने जैसा नहीं है? क्या यह लोगों की सोच को उजागर करने जैसा नहीं है? क्या यह सोच हर लड़की के जीवन को प्रभावित नहीं करती?
हर साल 13 अक्तूबर के दिन ‘वर्ल्ड नो ब्रा डे’ मनाया जाता है. इसे मनाने के पीछे मुख्य कारण कैंसर अवेयरनैस को बढ़ाना है. लेकिन इस नो ब्रा डे में भाग लेने वाली अधिकतर महिलाओं का मत है कि वे इस में भाग केवल इसलिए लेती हैं, क्योंकि उन्हें बिना ब्रा के जो कंफर्ट मिलता है वह ब्रा पहनने पर नहीं मिलता.
यकीनन इस से बहुत सी महिलाएं और लड़कियां सहमति रखती होंगी. ब्रा के विषय में लोगों की पहली प्रतिक्रिया यही होती है कि यह स्तनों को सपोर्ट देती है, जिस से उन का भार कंधों पर नहीं आता और हिलनेडुलने पर होने वाली परेशानी भी खत्म हो जाती है.
अगर भारत की बात करें तो लड़कियों को 12-13 साल की उम्र से ही ब्रा पहनने की हिदायतें दी जाने लगती हैं, जबकि उन्हें उस समय ब्रा के सपोर्ट की कोई जरूरत ही नहीं होती है. कारण पूछे जाने पर जवाब मिलता है कि यह जरूरी है. पर जरूरी क्यों है? लड़कों की नजर से खुद को बचाने के लिए? यदि देखा जाए तो ब्रा पहनने के बाद स्तनों का आकार ज्यादा उभर कर आता है और लोगों की नजरें भी ज्यादा पड़ती हैं तो ये हिदायतें लड़कियों को छोटी सी उम्र से इसलिए देनी शुरू कर दी जाती हैं ताकि वे उन लड़कों की नजरों को पढ़ सकें जिन से वे बचना चाहती हैं.
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