आजकल मुझे मैट्रो का सफर कहीं घूम आने से कम नहीं लगता. आखिर लगेगा भी क्यों, क्योंकि इतना मनोरंजक जो होता है. मैट्रो में लोग सफर नहीं करते वरन करती हैं उन की ढेरों बातें और राज. ये राज कोई किसी से पूछता नहीं, बल्कि लोग खुद ही अपने राज परतदरपरत खोलते चले जाते हैं.
कुछ दिन पहले की ही बात है. मैं द्वारका सैक्टर 9 से मैट्रो में चढ़ी थी. मेरा गंतव्य स्थान झंडेवाला था तो मेरे पास अच्छाखासा समय था कि अपनी किताब खोल कर पढ़ सकूं. मेरी बगल वाली सीट पर 2 लड़कियां आ कर बैठीं और इतनी जोरजोर से बातें करने लगीं कि मेरा ध्यान अपनी किताब से हट कर उन दोनों की बातों पर जा टिका.
‘‘यार यह लिपस्टिक कितनी अच्छी है, तू भी खरीद ले,’’ पहली लड़की ने कहा.
‘‘कितने की है?’’ दूसरी ने पूछा.
‘‘बस 300 की.’’
‘‘इतनी महंगी?’’ दूसरी का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘मुझे नहीं चाहिए. क्व100 की होती तो शायद मैं ले भी लेती.’’
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‘‘कोई नहीं मैं तुझे दूसरी ला कर दे दूंगी. ठीक है?’’
फिर दोनों थोड़ा धीरे बातें करनी लगीं तो मेरा ध्यान भी उन से हट गया. मगर अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि मेरे कानों में उन की आवाज फिर से गूंजने लगी. इस बार बात थोड़ी ज्यादा मजेदार थी.
‘‘यार, मैं शादी कर के एक गरीब घर में जाना चाहती हूं,’’ दूसरी लड़की ने कहा.
‘‘क्यों?’’ पहली लड़की ने पूछा.
‘‘क्योंकि मैं चाहती हूं कि मैं जिस घर में जाऊं उस में मेरी चले, मैं अपनी मेहनत से घर बसाऊं और मेरा पति भी मुझे प्यार दे, इज्जत दे और पी कर न आए, मेरी सुने.’’
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