देश में तेजी से बढ़ती डिजिटलीकरण की प्रक्रिया उन लोगों के उल्लेख के बगैर अधूरी है जिन्होंने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में भारत के डिजिटल चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई है. इन्हीं में से एक नाम है पी सुंदरराजन का जिन्हें प्यार से सुंदर पिचाई कहा जाता है. इस समय वे इंटरनैट कंपनी गूगल के सीईओ हैं. बेशक आज सुंदर पिचाई कैरियर की बेहतरीन ऊंचाई पर हैं पर उन के जीवन की कहानी किसी ऐसे पढ़ेलिखे किशोर से अलग नहीं है जिस की आंखों में परिवार, समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक सपना होता है.
जनवरी, 2017 में जब वे भारत दौरे पर थे तो उस दौरान वे आईआईटी खड़गपुर भी गए थे, जहां कभी उन्होंने पढ़ाई की थी. वहां के छात्रों से उन्होंने कई अनुभव साझा किए और अपनी कालेज लाइफ के दिलचस्प किस्से उन्हें बताए. उन्होंने बताया कि एक समय था जब उन के घर में न टीवी था, न कार और न ही टैलीफोन.
तकनीक से उन का परिचय पहली बार 1984 में लैंडलाइन फोन से हुआ था, जो उन के घर पर लगाया गया था. तब सुंदर महज 12 साल के थे लेकिन उस टैलीफोन की बदौलत उन्हें दर्जनों लोगों के टैलीफोन नंबर मुंहजबानी याद हो गए थे. इस से उन्हें तकनीक को ले कर अपने लगाव का भी पता चला था. हालांकि इस में उन के पिता का भी योगदान है जो चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) स्थित एक ब्रिटिश कंपनी जीईसी में इंजीनियर थे.
सुंदर का परिवार 2 कमरे के मकान में रहता था और उस में सुंदर की पढ़ाई के लिए अलग से कोई कमरा नहीं था. वे ड्राइंगरूम के फर्श पर अपने छोटे भाई के साथ सोते थे, पर इन अभावों के बावजूद सुंदर सिर्फ 17 साल की उम्र में आईआईटी की परीक्षा पास कर आईआईटी, खड़गपुर में दाखिला पाने में सफल रहे. वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई (1989-93) पूरी करने के दौरान हर बैच में सुंदर टौपर रहे.