5 राज्यों के चुनावी नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि अब देश में एक नई तरह की राजनीति चलेगी. अब तक सामाजिक, धार्मिक मुद्दे सरकारों की नजर से अलग रहते थे पर अब जो सरकार में हैं उन की आम लोगों के सामाजिक व्यवहार, रीतिरिवाजों, धार्मिक अनुष्ठानों और परिवार व संस्कृति पर गहरी सोच है और वे उसे शासन का एक हिस्सा मानते हैं. अब सरकार केवल कर एकत्र करने, कानून व्यवस्था बनाने और सड़कों व इन्फ्रास्ट्रक्चर की ही चिंता नहीं करेगी वरन कौन क्या खाता है, क्या पहनता है, कैसे रहता है, कैसे विवाह करता है, भी सब शासन के हिस्से बन जाएंगे.
महिलाओं को अब अपनी जीवनशैली में बदलाव नजर आ सकता है, जिस के पीछे सिर्फ शिक्षा या बाजार न होगा वरन सरकारी फैसले भी हो सकते हैं. इस बारे में सरकार की नीति क्या होगी यह स्पष्ट नहीं है पर वह परंपरावादी जरूर होगी. इसलिए इन परिणामों को सिर्फ कुछ लोगों की सोच का जिम्मा मान कर रसोई में घुस जाना ठीक न रहेगा.
राजनीति जब घर में घुस जाए तो फर्क औरतों को ही पड़ता है. मुसलिम व ईसाई राजाओं ने भारत व यूरोप के देशों में सदियों औरतों पर कहर ढाया और उन्होंने जो आजादी पिछली 2 सदियों में पाई, वह केवल परिवार के पुरुषों से नहीं पाई, सरकारी फैसलों के विरुद्ध मोरचे खोल कर पाई.
देश की पिछली सरकारें आमतौर पर औरतों के अधिकारों के इक्कादुक्का कानून बना कर चुप बैठ जाती थीं. औरतों ने देश में अपने अधिकार मांगने या बढ़ाने के लिए कुछ ज्यादा नहीं किया. जो मिला वह तकनीक या आर्थिक जरूरत से मिला. फिर भी कांग्रेसी सरकारें भी लकीर की फकीर बनी रही थीं और नतीजा है कि छिटपुट हस्तियों के अलावा अधिकांश सत्ता पुरुषों के हाथ में ही रही.
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