इंश्योरैंस कंपनी की रिवर्स मौर्टगेज की स्कीम का फायदा लेने के लिए एक 80 वर्षीय बुजुर्ग दरदर भटकता हुआ सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा. रिवर्स मौर्टगेज में इंश्योरैंस कंपनी एक संपत्ति पहले रख कर पौलिसी लेने वाले को हर माह कुछ न कुछ देती रहती है और संपत्ति कंपनी को पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद मिलती है.
यह पौलिसी वृद्ध अकेलों के लिए बहुत अच्छी है, जो अपना मकान किसे दे कर जाएं यह नहीं जानते और मकान में संपत्ति फंसी होने के कारण हाथ में पैसा भी नहीं रख पाते.
शायद यह पौलिसी बैंकों और इंश्योरैंस कंपनियों को भा नहीं रही, क्योंकि इस में पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद बहुत से पेच खड़े हो जाते होंगे. ये बुजुर्ग जब सर्वोच्च न्यायाधीश के सामने उपस्थित हुए तो उन्होंने भी कुछ खास नहीं कहा. हां, इतना आश्चर्य अवश्य जताया कि वृद्ध वित्त मंत्री से कैसे मिल लिए जबकि वे सर्वोच्च न्यायाधीश होने के बावजूद वित्त मंत्री से मुलाकात नहीं कर पाते.
इस देश में दिक्कत यही है कि हर अफसर अपने अधिकारों का एक जाल बुन लेता है जिसे पार कर अधिकारी तक पहुंचना कठिन हो जाता है. औरतों को तो और ज्यादा तकलीफ होती है और हर सरकारी दफ्तर में बीसियों औरतें हवाइयां उड़े चेहरे लिए खड़ी दिख जाती हैं, जो फाइलों से घिरे बाबुओं को घेर नहीं पातीं. आज जब अकेली औरतों की संख्या बढ़ रही है, उन्हें खुद ही सरकारी दफ्तरों, बैंकों, अदालतों, जेलों, निजी दफ्तरों, बिजली दफ्तरों, कर अफसरों के पास जाना पड़ता है.
जैसे वृद्ध के साथ लिहाज नहीं किया जाता वैसे ही औरतों को भी बारबार न सुनना पड़ता है और बेटा या बेटी साथ न हो तो वे बहुत तकलीफ पाती हैं. आमतौर पर अब औरतों को किसी भी जगह प्राथमिकता कम ही मिलती है. पुरुष खार खाए रहते हैं कि जो भी थोड़ीबहुत छूट औरतों को औरत होने के नाते मिल जाती है वह अन्याय है.