दिसंबर, 2016 के मध्य चीन ने फिलीपींस के नजदीक साउथ चाइना सागर के अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र से एक अमेरिकी ड्रोन को जब्त कर के दुनिया में सनसनी फैला दी. इस से अमेरिका के साथ चीन के रिश्तों में भी तल्खी आई. अमेरिका ने दावा किया कि पानी में चलने वाला ‘ओशियन ग्लाइडर’ नामक उस का ड्रोन (अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल) वैज्ञानिक आंकड़े इकट्ठे कर रहा था. अमेरिका ने मिलिट्री ओशियनोग्राफी के तहत समुद्री पानी के खारेपन, तापमान और पानी में ध्वनि की गति से जुड़े डाटा को जमा करने वाले ड्रोन को पूरी तरह वैज्ञानिक कार्यों के लिए समर्पित बताया, लेकिन चीन ने इसे दक्षिणी चीन सागर में अमेरिका द्वारा कराई जा रही जासूसी का मामला बता कर ‘ओशियन ग्लाइडर’ जब्त कर लिया. हालांकि बाद में चीन ने बातचीत कर ड्रोन को लौटाने की बात कही, लेकिन अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने इसे चीन की दादागीरी बताते हुए कहा कि चीन ने ड्रोन की चोरी की है, इसलिए इसे अब वही रख ले.
अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ाने वाली इस घटना के केंद्र में वे ड्रोन हैं, जो इन दिनों दुनिया में इस वजह से चर्चा में हैं कि उन से कई तरह के काम लिए जा सकते हैं. वैसे तो अभी तक इन की चर्चा इसलिए ज्यादा थी कि कुछ कंपनियां इन की मदद से सामान की डिलीवरी कराने का सपना देख रही थीं, पर चीनअमेरिका के बीच छिड़े विवाद से यह तथ्य उजागर हुआ है कि अब ड्रोन कई वैज्ञानिक कार्यों और सैन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल होने लगे हैं. हालत यह है कि कई देशों में ड्रोन को एक विलेन के रूप में देखा जाने लगा है, जैसे कि अफगानिस्तान, इराक और पाकिस्तान में इन्हें मौत बरसाने वाली मशीन के रूप में देखा जाता है. असल में ये एक तरह के लड़ाकू ड्रोन हैं, जो हथियारों से लैस होते हैं.