‘आवाज’ फाउंडेशन की संस्थापक सुमाइरा अब्दुलाली, प्रसिद्ध पर्यावरणविद ने पहली बार भारत में ध्वनि प्रदूषण का डाटा इकट्ठा किया, जिसे सरकार, कोर्ट, पुलिस तथा आम जनता तक पहुंचाया गया. पहली बार यह जाहिर किया गया कि ध्वनि प्रदूषण (पटाखों का शोर, ट्रैफिक का शोर, हवाईजहाज या ट्रेन से उत्पन्न शोर, औद्योगिक उपकरणों व निर्माण आदि से उत्पन्न शोर, लाउडस्पीकरों द्वारा शोर आदि) मनुष्य के लिए बहुत घातक हो सकता है.

ऐसे शोर को काबू में करने के लिए नियमकानून भी बने हैं, लेकिन एक और बड़ा स्रोत है ध्वनि प्रदूषण का- धार्मिक उत्सवों से उठता शोर. इस प्रकार के शोर के सामने जानकार प्राधिकारी भी अपने कान मूंद लेने में होशियारी समझते हैं.

धार्मिक स्थलों को साइलेंट जोन माना जाता है, किंतु देखा जाता है कि धार्मिक स्थल बेपरवाही से लाउडस्पीकर लगवा कर मनचाहा शोर मचाते हैं खासकर त्योहारों के समय पर.

हाल ही में दिल्ली और कर्नाटक उच्च न्यायालयों ने धार्मिक स्थलों द्वारा शोर मचाने पर पाबंदी लगाई कि लाउडस्पीकर का मुंह धार्मिक स्थल की ओर होना चाहिए न कि रिहाइशी इलाके की तरफ. सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि धर्म की आड़ में ध्वनि प्रदूषण नियम तोड़ना गलत है.

हर प्रकार के धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के उपयोग पर टिप्पणी करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है जैसे भिन्नभिन्न धर्मों के इन स्थलों को भगवान का आशीर्वाद शोर मचाने से ही मिलता है. हर धर्म में प्रार्थना तब से चली आ रही है जब बिजली भी नहीं थी.’’

कानून की दृष्टि से

भारत के संविधान की धारा 21 के अनुसार इस देश के नागरिकों को सभ्य वातावरण, शांतिपूर्ण जीवन, रात को अच्छी नींद और सुकून का हक है अर्थात जीवन जीने का अधिकार. ध्वनि प्रदूषण कानून के अनुसार दिन और रात

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