अपनी कमी को कोई अगर अपनी ताकत बना ले तो फिर उसका नाम दीक्षा डगर ही हो सकता है. दीक्षा ने जहां परिवार का नाम रोशन किया है वही देश का परचम भी अनेक दफा लहराया है. दीक्षा जन्मजात श्रवण बाधित है मगर उसने अपनी कमी को अपनी कमजोरी कभी नहीं माना और ऐसा मुकाम हासिल किया है जो शारीरिक अक्षमता से घिरे अवसाद ग्रस्त लोगों के लिए एक नजीर है.
आइए आज आपको हम मिलाते हैं हरियाणा में झज्जर की रहने वाली प्रतिभाशाली गोल्फ खिलाड़ी दीक्षा डागर से. जिन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए अपना दूसरा ‘लेडीज यूरोपीय टूर’ खिताब जीत लिया है. तेईस वर्षीय दीक्षा डागर ‘टिपस्पोर्ट चक लेडीज ओपन में चार शाट की जीत के साथ खिताब अपने नाम कर इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा लिया.
दीक्षा डागर के बारे में आपको हम बताते चले कि आप बाएं हाथ से खेलती है . और पहले पहल मात्र 19 वर्ष की उम्र में 2019 में एलईटी खिताब जीता था लंदन- में वह अरेमैको टीम सीरीज में विजयी टीम का हिस्सा रही. अब तक आप दो व्यक्तिगत खिताब के अलावा नौ बार शीर्ष दस में आ चुकी हैं।l. इनमें में चार बार तो वर्तमान सीजन में ही किया है.
हाल की खिताबी दौड़ में दीक्षा ने दिन की शुरुआत पांच शाट की बढ़त के साथ की थी. अंतिम राउंड में 69 का स्कोर किया और हफ्ते में सिर्फ एक बार ही बोगी लगी. मजे की बात यह है कि केवल पहला और अंतिम शाट ड्राप किया. दीक्षा की थाईलैंड की ट्रिचेट से टक्कर थी. और अंतिम दिन नाइन शाट से शुरुआत की थी. खेल के दिन दीक्षा शानदार लय में थीं. ट्रिचेट दूसरे स्थान पर रहीं, जबकि फ्रांस की सेलिन हचिन को तीसरा स्थान मिला. रावल विरोन क्लब में हवाओं के बीच भी अच्छा प्रदर्शन किया. वह इस हफ्ते 2021 में यहां संयुक्त चौथे स्थान पर रहीं थी.
दीक्षा डागर भारत की दूसरी महिला गोल्फर हैं, जिसने एलईटी टूर पर खिताब जीता है. इससे पहले अदिति अशोक ने 2016 में इंडियन ओपन जीता था. दीक्षा डागर ने पहला खिताब मार्च 2019 में दक्षिण अफ्रीकी ओपन के रूप में जीत दर्ज की थी . दीक्षा दो बार डेफलपिक (बधिरों के लिए ओलंपिक) में दो बार पदक जीत चुकी हैं. 2017 में रजत पदक और 2021 में स्वर्ण पदक हासिल किया था। उसके बाद उन्होंने तोक्यो ओलंपिक में भाग लिया और ऐसी पहली गोल्फर बनीं, जिसने डेफ ओलंपिक और मुख्य ओलंपिक दोनों जगह हिस्सा लिया. उन्होंने 2018 एशियाई खेलों में भी शिरकत की थी.
दीक्षा डागर को जन्म से ही सुनने में दिक्कत है. वह छह साल की उम्र से ही मशीन की मदद से सुनती रही हैं. उनके भाई योगेश डागर भी बहरेपन की समस्या से ग्रसित हैं. मानो अपनी अदम्य जिजीविषा से दीक्षा ने बहरेपन की चुनौतियों पर काबू पा लिया और महिला गोल्फ में अपना नाम कमाने के लिए ज्यादातर लिप- रोडिंग या साइन लैंग्वेज का सहारा लिया. परिजन बताते हैं कि जब वह कुछ महीने की थी, तब बहरेपन के संकेत मिले थे. वह आवाज का जवाब नहीं दे पाती थी.
इस बीच चिकित्सा तकनीक में भी सुधार हुआ था. पूर्व स्क्रैच गोल्फर रहे उनके पिता कर्नल नरेन्द्र डागर ने उन्हें गोल्फ की शुरुआती बारीकियां सिखाई. आखिकार दीक्षा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया और सफलता के झंडे गाड़ दिए .माता-पिता ने हमेशा सुनने की अक्षमता को गंभीरता से न लेने में उनकी मदद की. पिता नरेंद्र अपने दोनों बच्चों को एक सामान्य जीवन देने के लिए दृढ़ थे.
उन्होंने सोचा कि खेल उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा. ऐसे में उनके परिवार ने उनकी पढ़ाई को लेकर ज्यादा चिंता नहीं की. क्योंकि, वह टेनिस, तैराकी और एथलेटिक्स में वह पारंगत हो गई थी. और दीक्षा ने दिखा दिया कि बाएं हाथ से भी वह कैसे कमाल दिखा सकती