जैसे जैसे देश में शहरीकरण बढ़ रहा है और लोगों को राह चलने और रहने में दिक्कत होने लगी है, वैसेवैसे ही आवारा पशुओं जैसे गायों, सांडों और कुत्तों की समस्याएं भी बढ़ रही हैं. गांवों में जानवर और आदमी साथ रह सकते हैं, क्योंकि सब के पास जगह काफी होती है पर शहरों की संकरी सड़कों और गलियों में हर इंच की कीमत होने लगी है और उसे यदि आवारा पशु शेयर करने लगें तो कठिनाई तो होगी ही.

गायों को तो भजभज मंडली ने आभा कवच दे दिया है और वे ठाट से कहीं भी बैठ कर ट्रैफिक रोकने का हिंदू धार्मिक हक रखती हैं. समस्या कुत्तों को ले कर भी होने लगी है. कुत्तों को जगह उतनी नहीं चाहिए होती पर उन के काटने से डर लगता है. ये भी शहरों और गांवों में एक आफत हैं. अफसोस यह है कि यदि गायों की सुरक्षा के नाम पर भगवाधारी खडे़ हो गए हैं तो कुत्तों की रक्षा के लिए टौप जींसधारी.

पशुप्रेम सही है. पशुओं के खिलाफ अत्याचार और हिंसा नहीं होनी चाहिए पर अवारा कुत्तों और गायों को शहरियों पर हमला करने की इजाजत भी नहीं दी जा सकती. चीन के माचो ने एक बार देश के सारे आवारा कुत्तों को मरवा दिया था. यह कू्ररता थी पर इस से शहरगांव साफ हो गए.

आज लोग अपने घर से बाहर निकलने में भी डरने लगे हैं कि कहीं कोई कुत्ता न काट ले, कोई गाय सींग न मार दे. यह अलग बात है कि उन से चोट लगती है, मौत यदाकदा ही होती है पर है तो दर्दनाक ही न. कुत्तों और गायों के प्रेमी तब तक तो उन्हें साथ रखते हैं जब तक वे उपयोगी होते हैं, फिर उन्हें सड़कों पर छोड़ देते हैं. कुछ तो सड़कों पर मर जाते हैं पर जो जीते रहते हैं वे आफत बने रहते हैं. अब भगवाधारी और टौपजींसधारी आप को इन्हें कुछ कहने पर जेल में बंद करा दें या मार भी डालें तो बड़ी बात नहीं.  

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