हाल ही में, 26 सितंबर 2018 को अमेरिका की सिविल राइट्स एक्टिविस्ट, डेनियल मुस्कानो ने ट्विटर पर एक दिलचस्प सवाल उठाया कि रात 9 बजे के बाद मर्दों के बाहर निकलने पर रोक लग जाए तो औरतें क्या करेंगी.
यह सोचने वाली बात है कि क्या वाकई महिलाएं अपने साथ होने वाले अपराधों के भय से जीवन पूरी तरह एंजौय नहीं कर पा रहीं? क्या रात 9 बजे के बाद घर में बंद हो जाने से ही वह सुरक्षित महसूस कर सकती हैं, और यदि पुरुषों का 9 बजे के बाद निकलना बंद करा दिया जाए तो महिलाएं बेखौफ सड़कों पर निकल कर मनमर्जी के काम कर सकेंगी?
यह सच है कि ज्यादातर घरों में ताकीद दी जाती है कि बहूबेटियां रात 8 – 9 बजे तक घर पहुंच जाएं. यदि ऐसा नहीं हो पाता तो बहूबेटियों को यह सुनने को जरूर मिलता है कि वक्त से घर आज आया करो या इतनी देर क्यों करती हो. कल को कुछ हो गया तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे.
निर्भया जैसे कितने ही कांड इस तरह की सोच को पुख्ता बनाते हैं. हमारे देश में हर 13 मिनट पर एक स्त्री के साथ दुष्कर्म किया जाता है. हर रोज 6 लड़कियां (औसतन 12 साल से कम उम्र की) इस की शिकार होती हैं.
करीब 80% से ज्यादा मामलों में दुष्कर्मी कोई निकट संबंधी या जानपहचान वाला ही होता है. निर्भया कांड के बाद रेप के मामलों में 277% की वृद्धि हुई है. भारत में महिलाओं के खिलाफ 2016 में कुल 3 ,38,954 अपराध हुए. वैसे इस तरह के अपराध पहले भी होते रहे हैं मगर अब औरतें आवाज उठाने लगी हैं और खबरें सामने आने लगी हैं.
सवाल यह उठता है कि क्या वाकई सूरज ढलने के बाद ही इस तरह के अपराध होते हैं? यदि ऐसा है तो स्कूल से लौटती बच्चियों, पार्क में खेलती छोटी छोटी लड़कियों, अनाथालय में जिंदगी गुजारते बच्चों या फिर घर में अकेली रह गई वृद्धाओं और लड़कियों के साथ दिनदहाड़े अपराध की खबरें आए दिन सुनने को क्यों मिलती ?
जाहिर है यह मामला दिन या रात से जुड़ा हुआ नहीं है. वक्त कोई भी हो मौका मिलने पर विकृत मनोवृत्ति के लोग ऐसी कारगुजारियां कर डालते हैं. इस के लिए न औरतों को घर में बंद करने की जरूरत है और न ही पुरुषों पर बैन लगाने की. बैन लगाना है तो सदियों से चली आ रही उस सोच पर बैन लगाना चाहिए जो औरतों को इंसान नहीं बल्कि भोग की वस्तु मानती है. बेटी को पराया धन, कमजोर और दोयम दर्जे का समझती है.
टोकना है तो उन माताओं को टोकना चाहिए जो बेटे की छोटीछोटी गलतियों और लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं को हंस कर टाल जाती है. बेटों को तो पुचकारती हैं और लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने का ताना दे कर लताड़ती हैं.
इस मामले में पुरुषों पर बैन लगा कर कुछ हासिल नहीं हो सकता क्योंकि यह वो समाज है जहां लड़की अपने भाई या पिता के साथ भी जा रही होती है तो भी उसे शक की नजरों से देखा जाता है. 9 बजे के बाद पुरुषों पर बैन लगा कर महिलाओं को घूमने की आजादी देना ही सुरक्षा का पर्याय है तो फिर उन महिलाओं के लिए कौन लड़ेगा जो दिनदहाड़े अपने ही घर में अपने चाचा, मामा, भाई, बाप या दूसरे रिश्तेदारों द्वारा छली जाती हैं ?
यह तो एक भरोसे की बात है जिसे स्त्रियों के दिलों में पैदा करने की जरूरत है. स्त्रियों को यह भरोसा दिलाया जाए कि पुरुष कभी भी कहीं भी उन के साथ जबरदस्ती नहीं करेंगे. रिश्तों की खूबसूरती प्रेम और विश्वास में है न कि कुचलने और छलने में.
बैन लगना चाहिए गलत का साथ देने पर. अक्सर औरतें उन पुरुषों को माफ कर देती हैं जिन के साथ वे रिश्ते में होती हैं. खुद शिकार होने के बावजूद भी धोखा देने वाले अपने रिश्तेदार, प्रेमी, पति या दोस्त को माफ कर देती हैं. जरूरी है कि ऐसी हरकतें छुपाने के बजाय जाहिर की जायें. पुरुष को एहसास दिलाया जाए कि वह गलत है. स्त्री ही जब पुरुष के गलत कार्यों का विरोध नहीं करेगी तो उसे इस बात का एहसास और कौन दिलाएगा ?
हमारे यहां पितृसत्तात्मक सोच हावी है, जिस के शिकार सिर्फ पुरुष ही नहीं महिलाएं भी हैं. इस सोच से आजादी मिलने पर ही औरतों को असली आजादी मिलेगी.