पहले गली में कुत्तों को खुला छोड़ दो और जब वे 2-4 को काटकाट कर मार डालें तो भी उन्हें बजाय रस्सी से बांधने के केवल शूशू कर के चुप करा दो. यह सीन बहुत जगह देखा होगा. कुत्तों की मालकिनों को कुत्तों से इतना प्रेम होता है कि उन का कुत्ता किसी को काट ले तो भी वे दोषी दूसरे को ही ठहराती हैं कि उस ने ही कुत्ते को उकसाया होगा.
ऐसा ही सा कुछ गौरक्षकों के साथ भी हो रहा है. देश भर में गौरक्षकों को भगवा गमछा गले में लटका कर गायभैंस पालने वालों को मारनेपीटने का लाइसैंस दे दिया गया है. बीसियों तो जान गंवा चुके हैं इन गौरक्षकों के हाथों और सैकड़ों पिटे और लुटे हैं. न राज्य सरकारें, जिन का काम राज्य में कानून व्यवस्था कायम करना है इन गौरक्षकों को पकड़ रही हैं और न केंद्र सरकार. नरेंद्र मोदी ने इस पर चिंता व्यक्त कर दी, राज्य सरकारों को सलाह दे दी और बस.
गौभक्तों की इस देश में कमी नहीं. प्रचार और रीतिरिवाजों के गुलाम से गौभक्त गौरक्षकों को भरपूर समर्थन देते हैं. पढ़ेलिखे, कानून के बारे में समझ रखने वाले, दूसरों के अधिकारों का सम्मान करने वाले भी आस्था के पागलपन में बह कर ऐसे मामलों में चुप रह जाते हैं. नतीजा यह है कि ये गौरक्षक असल में पैरलल पुलिस फोर्स बनने लगे हैं और हरेक से गौशाला, गौपूजा और रात्रि जागरण के नाम पर चंदा वसूली भी करने लगे हैं.
इस चंदे का हिसाब तो किसी को नहीं देना होता. जो चाहे मरजी करो. ऊंची जातियों के लोग पहले घर में लठैत पालते थे, जो वसूलियां भी करते थे, अब गौरक्षक पालने लगे हैं. पुलिस भी इन से डरती है, क्योंकि इन की पहुंच मंत्रियों तक होती है.