सिनेऐक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने झटका दिया है. डिप्रैशन में हजारों लोगों को अभी झटके लगने हैं. पर एक चमकते सितारे को इस तरह अपनी जान देनी पड़ेगी, इस की उम्मीद नहीं थी. सुशांत सिंह राजपूत कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ गया, इसलिए उस की दुखद मृत्यु का असल कारण नहीं पता चल पाएगा. पर यह सब को मालूम है कि उस का कैरियर डांवांडोल ही था. वह टीवी स्क्रीन से निकल कर बड़ी स्क्रीन पर छा जाने के सपने देख रहा था, पर हर रोज मौके उस के हाथ से निकल रहे थे.
खुद से जबरन से ज्यादा उम्मीद कर लेने वालों के साथ कुछ ऐसा ही होता है. डिप्रैशन सदा ही एक भयंकर बीमारी रही है. घर, पैसे या दिल के कारणों से युवा ही नहीं, बुजुर्ग व वृद्ध भी आत्महत्या कर लेते हैं. जो चर्चित होते हैं उन की आत्महत्या ज्यादा सुर्खियां बन जाती हैं, बाकी गुमनामी में भुला दिए जाते हैं.
डिप्रैशन से बचने के कोई खास उपाय नहीं हैं. मोटिवेशनल गुरु हजार बातें कहते रहें पर असल यह है कि जब किसी को लगता है कि उस के बंद दरवाजे पक्के बंद हैं जिन से वह निकलना चाहता है तो डिप्रैशन होगा ही. कोई भी चाहे जितनी पट्टी पढ़ा ले कि जिंदगी में हार नहीं माननी चाहिए, एक लक्ष्य नहीं मिल पाया तो दूसरा ढूंढ़ा जा सकता है. जीवन तो संघर्ष का नाम है, भागने का नहीं आदि उपदेश सुननेसुनाने में अच्छे लगते हैं पर जो अपनी राह नहीं पा पाता वह इन शब्दों को सुन ही नहीं सकता. उस के सिर्फ कान ही नहीं बंद होते बल्कि मन की खिड़कियां भी बंद हो जाती हैं.