तुलसीदास के अनुसार ‘भय बिनु होई न प्रीत’ यानी भय इनसान को कार्य करने के लिए उकसाने का सर्वोत्तम माध्यम है. मास्टरजी की छड़ी के भय से छात्र पढ़ने बैठ जाते हैं और पिता की डांट के भय से सही आचरण करने लगते हैं. कुछ सीमा तक भय कार्य उद्दीपक एवं प्रेरणा का काम करता है, जो इनसान की प्रगति में सहायक बनता है, मगर वहीं जब इसी भय की अधिकता हो जाती है या भय को स्वार्थसिद्धि का साधन बना कर लोगों की भावनाओं से खेला जाता है, तो यह अंधविश्वास का रूप ले लेता है, जो मानव के पतन का कारण बनता है, उस की प्रगति में बाधक बनता है.
हमारा भारतीय समाज इसी भय की अधिकता के कारण 21वीं सदी में भी 18वीं सदी की विचारधारा से ओतप्रोत है. जहां जापान, जरमनी, चीन जैसे देश निरंतर प्रगति कर महाशक्ति बन बैठे हैं, वहीं भारत धर्म, पूजापाठ और अंधविश्वास के चलते लगातार पीछे जा रहा है. भारत की जनता गरीबी के कारण तो किसान फसल खराब होने के कारण आत्महत्याएं कर
रहे हैं, वहीं तिरुमाला, शिरडी, पद्मनाभम और सिद्धि विनायक जैसे मंदिर और उन के पुजारी करोड़ोंअरबों में खेल रहे हैं.
भगवान का भय
यहां का शिक्षक, जो देश के भावी कर्णधारों को तराशता है, लगातार शिक्षाप्रद भाषण दे कर अपना गला दुखाता है उसे तनख्वाह के रूप में कुछ हजार रुपए मिलते हैं, वहीं जो पाखंडी बाबा गीता के कुछ श्लोक रट कर और बेढंगे नृत्य और गीत से जनता को बेवकूफ बनाता है उस के गैरेज में महंगी कारों का काफिला, अरबों की इमारतें और सुंदर सेविकाएं (न जाने किसकिस सेवा हेतु) उपलब्ध रहती हैं.
हमारे देश के इन धार्मिक लुटेरों ने पूजा और धर्म की असंख्य बंदूकों के बल पर अंधविश्वासी जनता को इस तरह भयभीत किया है कि वह बेचारी बिना बंदूक दिखाए ही केवल बंदूक के खौफ से ही (देवता नाराज हो जाएंगे, नकारात्मक शक्तियां उत्पात मचाएंगी, भूतप्रेत का साया, किसी भी चूक से शक्तियों का क्रोधित होना और दंडित करना इत्यादि) अपना सब कुछ इन्हें बिना किसी प्रश्न के सहज सौंप देती है. जनता को पूजापाठ और टोटकों में इस तरह उलझा दिया गया है कि उसे यह सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिलता कि ‘मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन’ की तर्ज पर ये पाखंडी उन की खूनपसीने की कमाई पर मौज उड़ा रहे हैं और इस के लिए ये ढोंगी कुछ भी कर सकते हैं.
सिर्फ पाखंड ही
आप को पशुओं का मूत्र पिलाया जा सकता है या उस के इस्तेमाल की सलाह दी जा सकती है और हम यह वैज्ञानिक तथ्य जानते हुए भी कि शरीर उन्हीं तत्त्वों को उत्सर्जित करता है, जो शरीर के लिए उपयोगी ही नहीं हैं, हम गौ माता की जय कह कर उस अपशिष्ट का प्रसाद लेने को तत्पर हो उठते हैं.
वास्तव में गाय की आंतों में कुछ विषैले जीवाणु होते हैं, जो मूत्र के साथ कुछ मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाते हैं. अगर हम इन अपशिष्टों का सेवन करते हैं, तो ये जीवाणु हमारे स्वास्थ्य पर कैसी कृपा करेंगे, यह आप खुद समझ सकते हैं.
इसी तरह पीलिया होने पर नीम की डालों को तेल में घुमा कर पीलिया झाड़ने वाले के पास कई पढ़ेलिखों की लाइन लगी मिल जाएगी, जबकि आप स्वयं बिना पीलिया के तेल में नीम की डालें घुमाएंगे तो तेल को पीला होता पाएंगे.
चेचक की बीमारी को देवी के गुस्से की अभिव्यक्ति मान उसे मनाने के लिए कर्मकांड और पूजाअर्चना में भी हजारों खर्च कर दिए जाते हैं. अंत में जब ज्यादा हालत बिगड़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं. अगर आप ईश्वर में और पूजापाठ में इतना ही यकीन रखते हैं, तो मैं उस यकीन की परीक्षा के लिए एक प्रयोग बताती हूं. आप पोटैशियम साइनाइड का एक इंजैक्शन लगा लो और फिर भगवान के गीत गागा कर उसे रक्षा के लिए बुलाओ या फिर अपनी खूनपसीने की कमाई जिन बाबाओं पर लुटाते आए हो उन की शरण में जाओ. अगर आप का विश्वास सच्चा है, तो फिर किस बात का डर? मुझे यकीन है आप ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि भगवान पर आप का विश्वास नहीं है. इन पाखंडियों पर भी नहीं है. आप तो बस नीलगायों की तरह एकदूसरे के पीछे भाग रहे हैं.
आप ने कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर धर्म की पट्टी बांध रखी है. आप को पता ही नहीं है कि आप किस दिशा में जा रहे हो और क्यों? आप तो बस चले जा रहे हो, क्योंकि आप के पूर्वज भी ऐसे ही चले थे. आप इसलिए चल रहे हो, क्योंकि कुछ ग्रंथों में ऐसा लिखा है, आप चल रहे हो, क्योंकि कुछ स्वार्थी और पैसे के भूखे पंडेपुजारियों ने आप के दिमाग की प्रोग्रामिंग ऐसी कर दी है कि शोषण झेल कर भी आप खुद को शोषित मानने के बजाय भक्त मानते हो.
यह कैसा अंधविश्वास
शाहरुख अंक ज्योतिष पर यकीन करते हैं. उन की अपनी सभी गाडि़यों के नंबर ‘555’ हैं. यहां तक कि अपनी आईपीएल टीम ‘कोलकाता नाइट राइडर्स’ की हार से परेशान हो कर उन्होंने उस की जर्सी का रंग भी ज्योतिष के कहने पर बदलवा कर बैगनी करवाया.
‘सत्यमेव जयते’ जैसे सामाजिक शो करने वाले आमिर खान दिसंबर महीने को बेहद शुभ मानते हैं. इसीलिए अपनी हर फिल्म वे दिसंबर में ही रिलीज करते हैं. दीपिका पादुकोण भी अपनी फिल्म के रिलीज से पहले मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर दर्शन करने जरूर जाती हैं. एकता कपूर अपने काम से जुड़े हर मामले में ज्योतिष की राय लेती हैं, फिर चाहे वह शूटिंग की तारीख हो, शूटिंग की जगह हो या फिर उन की उंगली की अंगूठी ही क्यों न हो?
अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने माना है कि वे अपनी आईपीएल टीम ‘राजस्थान रौयल्स’ के मैच के दौरान 2 घडि़यां पहनती हैं, जिस से उन की टीम को सफलता मिलती है. एक जमाने में करण जौहर की यह धारणा थी कि उन की फिल्में तभी सफल होंगी जब उन के नाम ‘क’ अक्षर से हों.
देश में ही नहीं विदेशों में भी अंधविश्वासियों की कमी नहीं है. औस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता मौर्गन फ्रीमैन की नातिन के प्रेमी ने अंधविश्वास के चक्कर में उस की चाकू से गोद कर हत्या कर दी. मार्क जुकरबर्ग और बराक ओबामा भारत के नीम करोरी बाबा के प्रशंसक हैं. अब क्या कहेंगे इन पढ़ेलिखे अंधविश्वासियों को?
इन सब अंधविश्वासों की जननी है पूजा. पूजा ही हमें अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसाने का प्रवेशद्वार है. हम सब से ज्यादा भयभीत पूजा करते वक्त ही होते हैं जैसेकि पूजा में हम ने नियम बनाया मंत्र जपने का. अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है या व्यस्तता है तो हम नियम टूटने और प्रभु के नाराज होने के खौफ से मरतेगिरते भी उस नियम को पूरा करने में वक्त बरबाद करेंगे. मैं उन लोगों को जो हजारों माला जपते हैं, घंटों पूजापाठ में शरीर और वक्त की बरबादी करते हैं, यह सलाह देती हूं कि एक बार इस सब को छोड़ कर देखें. आप को खुद पता चलेगा कि आप का कितना भला ये पाखंड करते थे और अब छोड़ने के बाद कितना सुकून आप महसूस कर रहे हैं? एक बार कर के जरूर देखिएगा.
ओझाओं की पौबारह
आगरा के एक दुर्गा मंदिर इंद्रपुरी में कहा जाता है कि यहां के पुजारी को दुर्गाजी की सवारी आती है. यहां भक्तों में बड़े व्यवसाइयों के साथसाथ सरकारी मुलाजिम भी आते हैं. मंदसौर में आग के शोलों पर चलना, कोलकाता में नवरात्र के दौरान जीभ पर तलवार रखना, उन्नाव में एक संन्यासी की बातों में आ कर सोना निकलने के लालच में खुदाई करवाना, पद्मनाभ मंदिर में इतना सोना है कि भारत फिर से सोने की चिडि़या बन सकता है, लेकिन उस के छठे द्वार का भय दिखा सोने को उस मंदिर के कर्ताधर्ता पुजारियों ने अपनी मुट्ठी में कर रखा है. ईसाइयों का उंगली क्रौस करना और सांपों के काटने पर ओझा के पास मंत्र से जहर उतरवाने भागना उसी भय की प्रवृत्ति का परिचायक है.
बड़े नाम भी शामिल
80 के दशक में तांत्रिक चंद्रास्वामी के भक्तों की फेहरिस्त में अपने देश के कई बड़े नेताओं सहित विश्व की अन्य हस्तियां भी शामिल थीं. वहीं नैपोलियन काली बिल्लियों से बहुत डरते थे, जबकि विंस्टन चर्चिल काली बिल्लियों को शुभ मान कर छुआ करते थे. कैटरीना कैफ अपनी हर फिल्म के रिलीज से पहले सलीम चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाती हैं, सचिन तेंदुलकर सत्य साईं बाबा के निधन पर फूटफूट कर रोते हैं और मैच के वक्त उलटा पैड पहले पहनते थे. यह उन का प्रसिद्ध टोटका था. अमिताभ बच्चन अपनी बहू के मांगलिक दोष को उतरवाने के लिए पहले उन का विवाह किसी वृक्ष से करवाते हैं. अनिल अंबानी गोवर्धन महाराज पर टनों दूध चढ़ाते हैं, तो मुकेश अंबानी भी आए दिन परिवार और निकट मित्रों के साथ धार्मिक यात्रा करते रहते हैं.
इन हस्तियों को अकसर टोनेटोटके भी करते पाया जाता है जैसेकि अमिताभ बच्चन खुद स्वीकारते हैं कि जब वे क्रिकेट मैच देखते हैं, तो भारत हार जाता है, इसलिए वे वह क्रिकेट मैच जिस में भारत खेल रहा होता है उसे नहीं देखते. ऐसे ही कई खिलाड़ी मानसिक भ्रांतियों पर निर्भर हो जाते हैं जैसेकि वे अपनी योग्यता से नहीं, बल्कि बस में किसी निश्चित सीट पर बैठने से जीतते हैं या फिर वे दस्ताने उन के लिए भाग्यशाली हैं, जिन से उन्होंने गेंद को लपका था न कि उन की बढि़या नजर, सही जगह अथवा प्रशिक्षण जो उन्होंने लिया.
संजीव कुमार ने विवाह नहीं किया, परंतु प्रेम कई बार किया था. उन्हें यह अंधविश्वास था कि उन के परिवार में बड़े बेटे के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है. इन के दादा, पिता और भाई सभी के साथ यह हो चुका था. संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उस के 10 वर्ष का होने पर उन की मृत्यु हो गई. इस से बेहतर होता कि वे विवाह कर लेते, क्योंकि न करने पर भी मृत्यु ने उन का वरण कर लिया.
जिंदगी से मजाक
ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग लोहे की गरम सलाखों से दगवा कर कई बीमारियों का उपचार करा रहे हैं. वहीं बारहसिंघे के सींघों से लोगों के शरीर से रक्त निकाल कर ये बाबा नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करने का दावा करते हैं.
हैरानी होती है कि जय गुरुदेव और कृपालु बाबा के मंदिरों में लोट लगाने वाले, निर्मल बाबा, आसाराम और सत्य साईं की जय बोलने वाले, राधे मां और रामरहीम के साथ अश्लीलता की हद तक झूमने वाले शिक्षित भक्त एक बार इन बाबाओं की पृष्ठभूमि और काले कारनामे जानने का प्रयास क्यों नहीं करते?
कुछ बाबाओं की बायोग्राफी पर एक नजर
निर्मलजीत सिंह नरूला, जो कई व्यापार करने के बाद भी नल्ले ही साबित हुए. उस नल्ले नरूला ने अंत में विश्वास के व्यापार की बाजी खेली और उस में निर्मल बाबा के नाम से छा गया. आसाराम जो बांझ औरतों की गोद भरने का चमत्कार दिखाता था, उस के आश्रम में गोद कैसे भरी जाती थी. यह आज पूरी दुनिया जानती है.
स्वामी नित्यानंद नित्य प्रतिदिन कितनी औरतों के साथ ध्यान योग करते थे यह दक्षिण की अभिनेत्री के साथ वीडियो में वायरल हो चुका है.
ये भी कुछ कम नहीं
63 साल का बाबा रामपाल अपने आश्रम में कई महिलाओं और बच्चों को कैद कर के रखता था. अपने आश्रम से कई गैरकानूनी कामों को अंजाम देने वाला रामपाल आज पुलिस की गिरफ्त में है. एक मामूली कर्मचारी से शुरुआत कर विश्व की टौप हस्तियों में एक तांत्रिक के रूप में विख्यात चंद्रास्वामी सब से ज्यादा तब चर्चा में आया जब उस के आश्रम पर इनकम टैक्स की रेड पड़ी और वहां डीलर अदनान खागोशी के 11 मिलियन डौलर के औरिजिनल ड्राफ्ट मिले. चंदास्वामी की अभी हाल ही में मृत्यु हो गई है.
ओशो उन लोगों में शामिल थे, जिन से अमेरिका भी डरता था. अपने आश्रम में खुला व्यभिचार कराने और उसी को एकमात्र ईश्वर प्राप्ति का मार्ग मानने वाले ओशो पर अपने अमेरिकी आश्रम में समर्थकों की हत्या का प्लान रचने जैसे कई आरोप लगे.
कल्याण सिंह के करीबी भाजपा के सांसद रह चुके तांत्रिक साक्षी महाराज को कौन नहीं जानता? 27 मार्च, 2009 को साक्षी महाराज के आश्रम से एक 24 वर्षीय युवती लक्ष्मी का शव बरामद हुआ तो हड़कंप मच गया. साक्षी पर जमीन हथियाने और यौन उत्पीडन के आरोप समयसमय पर लगते रहे हैं. आश्रम के रूप में साक्षी के पास अच्छीखासी संपदा एकत्र है.
इन के लिए धंधा है धर्म
देश भर में 1 रुपए में शिक्षा देने का दावा करने वाले पायलट बाबा ने फ्रौड कर के करोड़ों रुपए कमाए. बाबा अपनी ऊंची पहुंच के कारण बचे हुए हैं. वृंदावन में एक बाबा भगवताचार्य राजेंद्र उर्फ पोर्न स्वामी को पकड़ा गया था. उस के बारे में खुलासा हुआ कि वह अश्लील फिल्में शूट करता है. उस के पास से कुछ ऐसी फिल्में भी बरामद हुईं, जिन में राजेंद्र विदेशी युवतियों के साथ स्वयं अप्राकृतिक यौनाचार करता दिखा. इतना ही नहीं राजेंद्र ने अपनी पत्नी की भी अश्लील सीडी बना कर बाजार में उतार दी थी. बाबा गुरमीत रामरहीम पर कभी आश्रम में रह रहे लोगों की नसबंदी कराने, तो कभी चरित्रहीनता के इलजाम लगते आए हैं. इन दिनों वह अपने रौकस्टार रूप के लिए मशहूर है.
विवादित संत स्वामी भीमानंद का नाम देश भर में बड़े लैवल का सैक्स रैकेट चलाने को ले कर सामने आया. 1997 में उसे लाजपत नगर से पहली बार गिरफ्तार किया गया था. कुमार स्वामी बाबा मंत्रों से रोग सही करते हैं.
धर्म की दुकानदारी
दिवंगत सत्य साईं बाबा के भक्तों, वीआईपी भक्तों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, वीएचपी के अशोक सिंघल और आरएसएस के सभी बड़े नेता उन के दरबार में जाते थे.
अगर ये लोग इतने ही चमत्कारी हैं, तो अपने लिए धन चमत्कारों से ही क्यों नहीं इकट्ठा करते हैं. लोगों से चढ़ावा क्यों लेते हैं? मंदिर बनवाने के बजाय अस्पताल और शिक्षा केंद्र क्यों नहीं बनवाते? जितने रुपए प्रेम मंदिर और जयगुरुदेव आश्रम के निर्माण में लगे अगर उतने रुपए से विश्वस्तरीय शिक्षा केंद्र और अस्पताल खोले जाते, तो जनता का कितना कल्याण होता? मगर इन्हें तो दुकान से आए पैसे दुकान में ही लगाने थे ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक कटें. ऐसी सोच एक पुजारी नहीं दुकानदारी में माहिर सयाना ही रख सकता है.
तंत्रमंत्र के नाम पर धोखा
अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मंत्रतंत्र. अकसर मुसलिम बाबा वशीकरण से विरोधी और उदासीन व्यक्ति को 24 घंटे में अपने वश में करने की गारंटी देते हैं, मगर व्यक्ति 24 घंटे इंतजार करता रह जाता है और बाबा दूसरा मुरगा फंसाने के लिए उड़न छू हो जाते हैं. जादूटोना, शकुन, मुहूर्त, मणि, ताबीज आदि इन्हीं धूर्तों के फैलाए अंधविश्वास हैं. ये लोग अदृश्य शक्तियों का भय दिखा कर और मनगढंत कहानियां जैसेकि पृथ्वी शेषनाग के फन पर स्थित है. वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएं हैं. भूकंप की अधिष्टात्री एक देवी है. रोगों की वजह प्रेतपिशाच हैं. औरतों के नंगा हो कर खेत जोतने और मेढकमेढकी का विवाह करवाने से पानी बरसवाने के लिए इंद्र देवता की मिन्नतें इत्यादि सुना कर लोगों से चढ़ावे और दान के रूप में उन की गाढ़ी कमाई लूटते आए हैं और लूटते रहेंगे.
किसी देश की उन्नति अंधविश्वासों के सहारे नहीं होती. उस के लिए कर्मठता की जरूरत होती है. अमीर देशों में भी अंधविश्वासी हैं पर वहां अंधविश्वास विरोधियों, तार्किकों, वैज्ञानिकों की संख्या भी काफी है, जो समाज को निरंतर आगे ले जाते रहते हैं. भारत में तो कणकण में दकियानूसीपन घुसा है और अब धर्म को देश की बराबरी दे कर अंधविश्वास विरोध को देशद्रोह का दर्जा देने की कोशिश की जा रही है. तमिलनाडु में अध्यादेश साबित करता है कि देश 70 साल में अढाई कोस ही चला है.
– सपना मांगलिक