किसी के प्रति हमदर्दी रखना व जरूरत पड़ने पर मदद के लिए तैयार रहना मनुष्य के सामाजिक गुण हैं. यही गुण हमें सक्रिय भी बनाए रखते हैं. पर कभीकभी ये गुण हमारे ही शत्रु बन जाते हैं. कहने का मतलब यह है कि उस समय दिक्कत बढ़ जाती है जब कोई इन सद्गुणों का दुरुपयोग कर के हमें बिना मतलब मानसिक कष्ट पहुंचाने लगता है.
मूर्ख तो नहीं बन रहीं
सहेली, संबंधी या किसी मित्र के परिवार के साथ लगाव रखना अच्छी बात है, पर ऐसा करना तो नितांत मूर्खता ही है जैसा कुमुद करती थी. वह कार्यकुशल व सादगीपसंद है. इसलिए अड़ोसीपड़ोसी उसे किसी त्योहार, पार्टी आदि में तुरंत बुला लेते थे, क्योंकि वह सादगीप्रिय होने के नाते कुछ उम्मीद तो रखती नहीं थी. उलटे हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाती थी. धीरेधीरे उसे ऐसा लगने लगा कि उस से काम निकलवा कर उसे मूर्ख बनाया जा रहा है यानी उस का फायदा उठाया जा रहा है. उस का सेवा करने वाला गुण उस का शत्रु बन रहा है. एक बार तो उस ने खुद यह सुन लिया कि उस के बारे में आम धारणा क्या बन गई है. यही कि जब तक है पागल कुमुद, भला हम काम का झंझट क्यों लें?
बस यह सुनना था कि कुमुद ने मन में ठान लिया कि बस अब वह और पागल नहीं बनेगी. आज उस की स्थिति पहले से बेहतर है. उस के चुनिंदा मित्र हैं जो अपना काम निकलवा कर उसे पागल नहीं कहते, बल्कि शुक्रिया अदा करते हैं. दरअसल, अपना आत्मसम्मान किस कारण से गिर सकता है, यह बात खुद ही समझनी चाहिए. चिकने घड़ों को पहचानने की क्षमता समय के साथ रफ्तारफ्ता कदमताल करते हुए आ ही जाती है. दुनिया को परखने की एक बारीक नजर जरूर विकसित करनी चाहिए. अगर अपने आचरण को दूसरों के सामने प्रस्तुत करते समय सतर्कता बरती जाए तो कोई भी गलत फायदा उठा कर मूर्ख नहीं बना सकता. फिर कहा भी गया है कि इस जहान में सब को अपनी पड़ी अपनी आफत औरों के सिर पर मढ़ी.
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