डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले अधिकतर लोग निजी क्षेत्र में चिकित्सा सेवा को प्रथमिकता देते है. मिर्जापुर की रहने वाली डॉ नेहा सिंह ने निजी क्षेत्र में काम करने की जगह पर सरकारी अस्पतालों में सेवा करने को प्रथमिकता दी. डॉ नेहा का मानना था कि सरकारी अस्पतालों के जरिये वो गरीब और कमजोर वर्ग से आने वाले लोगो की अधिक सेवा कर सकती है. डॉ नेहा सिंह ने प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने की चुनौती भी स्वीकार की. उनकी सोंच थी कि अच्छी चिकित्सा व्यवस्था के लिये अच्छे डाक्टर के साथ ही साथ अच्छे प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर की भी जरूरत होती है. यही नहीं डॉ नेहा ने प्राइवेट सेक्टर में जाकर डाग्नोसिस सेंटर खोलने की जगह पर सरकारी अस्पतालों में प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने की चुनौती को स्वीकार किया. वह ऐसे लोगो के लिये प्रेरणा का काम करती है जो सरकारी अस्पतालो में काम करके खुशी का अनुभव नहीं कर रहे होते है. डॉ नेहा ने अपने काम से एक अलग छवि बनाई है. जिसकी वजह से मरीज उनकी हर बात मानते है और उनसे अपनी हर बात शेयर करते है.

प्रोविंशियल मेडिकल सर्विस को बनाया अपना कैरियर:

डॉ नेहा सिंह के पिता खुद डाक्टर है. ऐसे में 12 वीं के बाद नेहा ने भी डाक्टर बनने के लिये परीक्षा दी. रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली में उनको एमबीबीएस करने के लिये प्रवेश मिल गया. वहां से अपनी पढाई पूरी करने के बाद नेहा ने प्रोविंशियल मेडिकल सर्विस में अपना कैरियर बनाने की सोची. पहली ही बार में ही परीक्षा में सफल हो गई. उत्तर प्रदेश के तमाम शहरों के सरकारी अस्पतालों में उन्हें सेवा करने का मौका मिला.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती और देवरिया में काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा? पूछने पर नेहा बताती है, ‘टीबी और चेस्ट विभाग में काम करते वक्त हमने देखा कि ज्यादातर लोग इस बीमारी को शुरुआती दिनों में गंभीरता से नहीं लेते है. इससे बचने की कोशिश नहीं करते है. लोगों को जागरूक होना चाहिये. अपनी सफाई का ध्यान रखना चाहिये. नशे से बचना चाहिये. अच्छा भोजन करना चाहिये.

“अगर कोई दिक्कत हो तो इलाज कराना चाहिये. लापरवाही नही बरतनी चाहिये. टीबी अब पहले जैसा घातक नहीं है पर इससे सावधान रहने की जरूरत है.”

कोरोना संकट में जनता की सेवा:

2020 में जब कोरोना का प्रकोप पूरी दुनिया पर संकट बनकर छाया तो भारत के सामने सबसे बडी समस्या खडी हो गई. ऐसे समय में सरकारी अस्पताल और वहां का आधारभूत ढांचा ही ढाल बनकर कोरोना के सामने खडा हुआ. डॉ नेहा सिंह का अनुभव और साहस भी इसमें बडा सहारा बना. उनकी ड्यूटी बस्ती जिले के सरकारी अस्पताल में लगी थी. इस अस्पताल को एल-2 का दर्जा दिया गया था. जिसका मतलब था कि कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज यहां होता था. वहां काम करना सबसे खतरनाक माना जा रहा था.

यहां काम करना चुनौती से कम नहीं था. डॉ नेहा सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार किया. बच्चों और घर परिवार की चिंता छोड दी. वहां 15 दिन ड्यूटी देने के बाद बाकी के 15 दिन क्वारंटीन रहना पडता था. ऐसे में लगातार दो माह तक बच्चों से दूर रही. यह उनके जीवन में पहला अवसर था जब बच्चों से इतने लंबे समय तक दूर रहना पडा.

डॉ नेहा सिंह बताती है ‘मुझे भी एक बार कोरोना हो गया था. उस समय थोडा सा डर लग रहा था. मेरी 8 साल की बेटी और 3 साल का बेटा है. उनकी चिंता हो रही थी. अच्छी बात यह थी कि हमारा परिवार साथ रहता है तो बच्चों की देखभाल हो रही थी. दो माह तक बच्चों से दूर रहना बहुत अलग लग रहा था. दूसरे लोगों की दिक्कतों को देखते हुये हमारी परेशानी कम थी. इस बात को सोंच कर अपना हौसला बनाती रही.’

सशक्त समाज के लिये जागरूक हो महिलाएं:

“साफसफाई के अभाव में महिलाएं तमाम तरह की बीमारियों की शिकार हो जाती है, जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पडता है. सरकारी अस्पताल में काम करते वक्त हमें गांव और छोटेबडे शहरों की महिलाओं से मिलने का मौका मिला. हम उन्हें समझाने का काम करते थे. बहुत सारी महिलाएं सरवाइकल कैंसर से ग्रस्त होने के बाद इलाज के लिये आती थी. सफाई और पीरियडस के दिनो में हाईजीन का ख्याल रखने से महिलाएं तमाम बीमरियों से बच सकती है.”

डॉ नेहा का मानना है कि महिलाओं को अपनी हेल्थ से जुडे विषयों पर जागरूक होना चाहिये. इसके लिये पत्र-पत्रिकाएं पढे. उन्हें केवल मनोरंजन की निगाह से न देखे. इनमें आजकल बहुत सामग्री छपने लगी है. उसे पढ़े और समझे ताकि किसी मुसीबत में न पडे. राजनीति और समाज के दूसरे विषयों को पढ़े और समझे ताकि यह पता चल सके कि समाज और राजनीति में क्या कुछ आपके लिये हो रहा और क्या नहीं हो रहा है.  महिलाएं जागरूक और आत्मनिर्भर रहेगी तो अपने फैसले खुद ले सकेगी और एक सशक्त समाज का निर्माण कर सकेगी.

परिवार है सफलता की धुरी:

डॉ नेहा मानती है कि किसी भी महिला की सफलता में उसके परिवार की भूमिका सबसे अधिक होती है. कोरोनाकाल में मेरा परिवार मेरे बच्चों की देखभाल करने के लिये उपलब्ध न होता तो मै अपने बच्चों को छोड़ कर अपना काम बेहतर तरह से नहीं कर पाती. कैरियर और सफलता के लिये परिवार को ले कर आगे चलना चाहिये. इससे ही मजबूत समाज बनता है.

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