अगर घर का दिवाला पिट रहा हो, सदस्यों में आपसी झगड़े चल रहे हों, 1-2 को कोविड जैसी बीमारी भी हो, हर जगह सवाल उठाए जा रहे हों तो क्या करें? घर में नया निर्माण शुरू करा दें. ट्रकों से ढेरों ईंटें, रेत, सीमेंट, लोहे मंगवा लें, 10-20 मजदूर लगा लें, सब दूसरे सवाल पूछने बंद हो जाएंगे और सब को उत्सुकता रहेगी कि क्या बन रहा है और कर्ज में डूबे हुए परिवार के पास पैसा कहां से आ रहा है.

यह मौका ऐसा भी है जब हर रोज संतोंमहंतों की सेवा करने का मौका मिलेगा, उन्हें दानदक्षिणा दी जाएगी.

वैसे हमारे यहां संकट चतुर्थी जैसे सैंकड़ो पूजापाठों का विधिविधान है. उस की कथा में ही है कि विष्णु भगवान के लक्ष्मी के साथ विवाह के समय संकट दूर करने के लिए गणेश पूजा करनी पड़ी थी, क्योंकि तभी उन की बरात महादेव के घर पहुंची थी. पहले विष्णु ने गणेश को नहीं बुलाया तो बरात ही रास्ते में मार्ग खराब होने के कारण और रथ का पहिया टूट जाने के कारण रुक गई. हमारी सरकार भी आर्थिक रथ के रुकने पर गणेश वंदना के साथ दूसरे देवीदेवताओं को खुश कर के सरकारी काम कराती रही है ताकि आम जनता का उद्धार इस तरह हो जाए जैसे पौराणिक मान्यता है.

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राम मंदिर और नया संसद भवन ऐसे ही हैं. आर्थिक निर्माण के नाम पर तो जो कारखाने लग रहे हैं, अगर लग रहे हैं तो निजी हाथों में हैं. सरकार का दखल उन में नहीं है चाहे वे अडानी के हों या टाटा के.

नए संसद भवन से नया देश बनेगा, यह ऐसा ही है जैसे नए मकान या पुराने मकान के पुनर्निर्माण से घर के विवाद और संकट दूर हो जाते हैं. बहाना तो गाढ़ी कमाई का फुजूल में खर्च करने का है, चाहे आरतियों में हो या नए देश के प्रतीक नए संसद भवन में.

यह न भूलें कि 1925-30 में बन कर तैयार हुए पुराने संसद भवन के कौंप्लैक्स में 16-17 साल बाद ही देश से ब्रिटिश शासन छूमंतर हो गया था. रायसीना हिल पर बने राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सेक्रेटरिएट आदि ब्रिटिश ऐंपायर को नहीं बचा पाए. विशाल भवन न देश की प्रगति की गारंटी हैं न किसी पार्टी की सरकार के स्थायित्व की.

1940-45 के बंगाल सूखे को भी याद रखना चाहिए. जब ब्रिटिश सरकार सूखे की ओर ध्यान न दे कर हवाईजहाजों, टैंकों, बम, राइफलों की ओर ध्यान दे रही थी.

यह ठीक है कि सिर्फ पुराने होने के कारण किसी पुराने भवन से चिपके रहना गलत होगा पर सिर्फ नएपन की खातिर पुरानी विरासत को नष्ट हो जाने देना वह भी तब जब देश संकट में हो, आर्थिक व पारिवारिक समस्याएं सिर पर हों बेवकूफी और जनता के साथ नाइंसाफी है. नए मकान का निर्माण ध्यान तो बंटा देगा पर घर को और गहरी मुसीबत में डाल सकता है.

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