देशभर में हिंदुत्व के नारे को बुलंद करने का काम शिवसैनिकों ने किया, गौहत्या रोकने के लिए पहली आवाज शिवसेना ने उठाई, राम मंदिर के लिए लड़ाई शिवसेना ने लड़ी, बाबरी मसजिद शिवसैनिकों ने ढहाई, जबकि इस सब का फायदा पूरे देश में भाजपा ने उठाया. इस बात को शिवसेना भलीभांति सम झ रही थी. इसीलिए महाराष्ट्र में विधान सभा गठित होने से पहले उस ने अपना हक मांग लिया और महाराष्ट्र में ढाई साल शिवसेना के मुख्यमंत्री की अपनी मांग भाजपा के सामने रख दी. शिवसेना को यह उम्मीद नहीं थी कि ‘छोटा भाई छोटा भाई’ कह कर जो भाजपा उस से लगातार फायदा उठाती रही है वह महाराष्ट्र में ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद मांगने पर औकात बताने लग जाएगी. आघात गहरा था, लिहाजा 30 साल पुरानी दोस्ती टूट गई.
फिर शरद पवार ने सरकार बनाने के लिए जोड़नेजुटाने का जो अभूतपूर्व अभियान शुरू किया उस के चलते 3 पार्टियां- शिवसेना, राकांपा यानी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस, जिन की विचारधारा और एजेंडा एकदूसरे से बिलकुल विपरीत था, शरद पवार के सम झाने पर एकदूसरे का हाथ थामने को तैयार हो गईं. 28 नवंबर, 2019 का दिन शिवसैनिकों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक दिन बना. महाराष्ट्र के जिस शिवाजी पार्क में कभी शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने नारियल फोड़ कर शिवसेना का गठन कर राजनीति में पदार्पण की हुंकार भरी थी, उसी शिवाजी पार्क में उन के सुपुत्र उद्धव ठाकरे ने पूरी आनबानशान से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
अद्भुत हाल था कि पहले जो भाजपा से ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की याचना कर रहे थे, उन्होंने पूरे 5 सालों के लिए महाराष्ट्र की सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली. लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने से पहले एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा और सरकार गठन के लिए शरद पवार का तीनों पार्टियों से बातचीत का अभियान चल ही रहा था कि अचानक शरद पवार के भतीजे अजित पवार भाजपा की गोद में जा बैठे. अब अजित पवार को डराधमका कर भाजपा ने अपने खेमे में आने को मजबूर किया या लोभ दे कर, यह रहस्य अभी तक बना हुआ है. गौरतलब है कि अजित पवार पर क्व70 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप है, जिस की जांच विभिन्न जांच एजेंसियां कर रही हैं. अब जांच एजेंसियां किस तरह केंद्र सरकार के इशारे पर काम करती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है.
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