लड़कियां मजबूत होंगी तो वे सैक्सुअल हैरेसमैंट से बच सकती हैं और उन्हें सैल्फ डिफेंस सीखना चाहिए. कुश्ती संघ के उधड़े जख्मों से अब साफ है कि वह बेकार है. जरूरत लड़कियों को शारीरिक रूप से मजबूत होने की नहीं है, उस सामाजिक ढांचे को पटकनी देने की है जो औरतों को एक पूरी जमात के तौर पर दबा कर रखता है.
भाजपा के ऊंची जाति के सांसद ब्रज भूषण सिंह खुद कुश्ती खेलना न जानते हों, वे ‘रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया’ के प्रैसिडैंट हैं और उन के शैडो में सैकड़ों रैसलर सैक्सुअल हैरेसमैंट की शिकायतें ले कर उठ खड़ी हुई हैं.
रैसलिंग कैंपों, विदेशी टूरों, सिलैक्शन में कोचों और न जाने किनकिन को खुश करना पड़ता है तब महिला रैसलर विदेश व देश में मैडल पाने का मौका पाती हैं. हर महिला रैसलर की कहानी शायद मैडल के पीछे लगी पुरुष वीर्य की बदबू से भरी है. कदकाठी और ताकत में मजबूत होने के बाद रैसलरों को न जाने किसकिस को ‘खुश’ करना पड़ता है. रैसलर महिलाओं के साथ जो बरताव होता है उस के पीछे एक कारण है कि वे पिछड़ी जातियों से ज्यादा आती हैं जिन के बारे में हमारे धर्मग्रंथ चीखचीख कर कहते हैं कि वे तो जन्म ही सिर्फ सेवा करने के लिए लेती हैं. देश के देह व्यापार में यही लड़कियां छाई हुई हैं. जाति और समाज के बंधन रैसलर लड़कियों को सैक्सुअल हैरेसमैंट से मुक्ति नहीं दिला सकते. ऐसा बहुत से क्षेत्रों में होता है जहां औरतें अकेली रह जाती हैं. एक युग में जब काशी और वृंदावन हिंदू ब्राह्मण विधवाओं से भरे थे, जिन के घर वालों ने उन्हें त्याग दिया था. वहीं के पंडित संरक्षकों ने उन्हें विदेश ले जाए जा रहे गिरमिटिया मजदूरों के साथ भिजवाया था.