‘द इंटरनैशनल ऐसोसिएशन फौर द स्टडी औफ पेन’ दर्द को कुछ इस तरह परिभाषित करता है- दर्द एक किस्म का ऐसा अप्रिय एहसास व आवेश है, जो हमारे मौजूदा उतकों को ही नहीं, बल्कि नए तैयार होने वाले उतकों को भी नष्ट कर देता है. भले ही इस एहसास को जबानी बता पाना संभव न हो, लेकिन दर्द के एहसास को नकारा नहीं जा सकता.
अकसर यह सवाल पूछा जाता रहा है कि क्या मछलियों को दर्द होता है? यह भी मान लिया गया है कि जीवजंतुओं में भी दर्द सहने की क्षमता होती है, पर उन में इस से जूझने का तरीका इनसानों से जरा अलग होता है.
विक्टोरिया ब्रिथबेट ने अपनी किताब ‘डू फिश फील पेन’ में वैज्ञानिक प्रमाण दे कर बताया है कि मछलियां होशियार और मानसिक तौर पर बड़ी सक्षम होती हैं. सैकड़ों अध्ययनों में यही एक बात सामने आई है कि मछलियां बड़ी बुद्धिमान होती हैं और उन की याददाश्त अचूक और लंबे समय तक तरोताजा रहती है. प्रवासी सलमन की याददाश्त तो पूरा जीवन बनी रहती है. हां, इतना जरूर है कि मछलियां चीख नहीं सकतीं, जब वे कांटों में फंसाती हैं या फंस जाती हैं, तो जो तकलीफ उन्हें होती है वह उन के बरताव से जरूर नजर आ जाती है, बशर्ते हम देखना चाहें. मछलियों की इंद्रियां हमारी सभी इंद्रियों से अधिक संवेदी होती हैं.
दर्द का एहसास
मछलियों में इनसानों से कहीं ज्यादा इंद्रियां होती हैं. एक पतली पार्श्व रेखा जैसी विशेष संवेदी रिसैप्टर्स या अभिग्राहिकाएं पूरे शरीर तक जाती हैं, जो उन्हें अपने आसपास की वस्तुओं का एहसास कराती हैं.
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