50 साल की उम्र में नीरू सैनी ने अपने डांसिंग के पैशन को नई उड़ान देनी चाही तो उन्हें खूब ताने सुनने पड़ें, जैसे ‘बुड्ढी रामराम जपो’, ‘कमर खिसक जाएगी’,  ‘घुटने दर्द नहीं करते’. यह भी सुनना पड़ा कि ‘बड़ी उम्र की औरतें मुजरा करने लगी है अब बच्चों को नैतिक मूल्यों की बात कौन सिखाएगा?’.  सोशल मीडिया पर मिलनने वाले इन सब कमैंट्स के बावजूद नीरू का मनोबल कम नहीं हुआ बल्कि सोशल मीडिया पर उनके फौलोअर्स की संख्या बढ़ती ही चली गई और साथ ही साथ उनके कौन्फिडेंस का ग्राफ भी ऊपर की तरफ चढ़ता गया.  आइए नीरू की जुबानी सुनें एक साधारण महिला की हिम्मती जज्बे की कहानी 

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अचानक तूफान आ गया … 

‘हैलन के गाने महबूबा महबूबा… ‘ पर बचपन में डांस करने की शौकीन नीरू बताती हैं,  “मेरे हसबैंड प्रदीप सैनी की डैथ ब्लड कैंसर से हुई थी, तब मेरी  उम्र केवल 32 साल थी. मेरी दोनों बेटियां बहुत ही छोटी थी.  प्रदीप और मेरी शादी अरैंज्ड मैरिज थी लेकिन ट्यूनिंग ऐसी थी जैसे हमने लव मैरिज की हो. प्रदीप के डैथ के बाद मैं ठीक से रो भी नहीं पाई.  उनके डैथ के पहले ही हमें पता चल गया था कि हमारा साथ अब आगे के 4 सालों तक का ही है.  मेरे हसबैंड जब कैंसर से जूझ रहे थे मैं अपने दर्द को निकालने के लिए रोतेरोते उस समय तक डांस करती रहती थी जब तक थक कर निढ़ाल न हो जाउं. प्रदीप अपने पीछे दो बेटियों प्रेरणा और देवांशी को छोड़ गए थे और यह कह कर गए थे कि नीरू, मेरी बेटियों को खूब पढ़ाना और काबिल बनाना. प्रदीप के चले जाने के बाद मैंने ट्यूशन्स लेना शुरू किया. मेरे पहले ट्यूशन से मुझे केवल 200 रुपए मिले तो मैं हताश हो गई. लगा, इससे घर कैसे चलेगा लेकिन 5 से 6 महीने के अंदर मैं इतना कमाने लगी कि मेरी दालरोटी का इंतजाम हो जाता था. मैं साइन्स की स्टूडेंट थी, मैडिकल इंट्रैस एग्जामिनेशन के लिए काफी स्टडी की थी जो इस दौरान काम आया. मैं अपने स्टूडेंट्स को साइन्स पढ़ाती थी.  धीरेधीरे ट्यूशन क्लासेज की चर्चा होने लगी और  ढेर सारे स्टूडैंट्स मिल गए. आज मेरी दोनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हैं.  बड़ी बेटी प्रेरणा ने आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने के बाद न्यूयौर्क की कौर्नेल यूनिवर्सिटी से फाइनैंस में एमबीए किया, अभी बैंक औफ अमेरिका की एम्पलौय हैं, दूसरी बेटी देवांशी बुकिंग डौट कौम की एम्पलौय है.

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