एक रेस्तरां या होटल की जान उस की लोकेशन, डिकोर, एयरकंडीशिनग, शैफ की प्रीप्रेशन, सफाई, मैनेजमैंट की कार्यकुशलता में होती है न कि उस जने में जो एक कागज पर ग्राहक का आर्डर लिखना है और पहले से साफ की हुई प्लेटों में किचन से लाकर ग्राहक की मेज तक ले जाता है. यह जना चाहे कितना ही वैल ड्रैस्ड हो, पोलाइट हो, स्मार्ट हो, ....हो या यदि किचन से गंदी प्लेट में खराब खाना आएगा तो वह कुछ नहीं कर सकता.

अफसोस यह है कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में लोग सारा क्रेडिट उसे देते हैं जो रेस्तरां की फूड चेन में केवल डिलवरी का काम करता है और यह उम्मीद की जाती है कि रेस्तरां के मालिक की तय की गई कीमतों के और भी कुछ पैसे केवल इन डिलवरी मैन को दे दिए जाए. अमेरिका में तो अगर टिप न दें तो सर्व करने वाला इस तरह का मुंह बनाता है कि साफ दिखे कि वह नाराज है.

जापान और पूर्व एशिया के कुछ देशों में न टिप देने की जो कल्चर है वह बहुत अच्छी है. वहां फिर भी अच्छी सेवा मिलती है, स्मार्ट सर्वर होते है, अच्छा खाना मिलता है.

आजकल कंज्यूमर फोरम इस बारे में हल्ला मचा रहे हैं कि इस टिप को रेस्तरां मालिक सॢवस चार्ज के नाम पर जबरन बिल में न जोड़ें, यह ठीक हो सकता है पर उस के टिप देना लगभग अनिवार्य हो ही जाएगा. यदि कंज्यूमर फोरम टििपग के खिलाफ ही खड़े होते तो बात दूसरी होती.

टिपिंग अपनेआप में गलत इसलिए है क्योंकि टिप लेने वाला या टैक्सी ड्राइवर हो, पोर्टर हो, व्हील चेयर पुशर हो, पेडिक्योरिस्ट या बारबार हो, पूरी सेवा चेन का घोम का हिस्सा होता है. उस का ग्राहक से संबंध है तो वह सेवा का जिम्मेदार नहीं है क्योंकि वह जो भी सॢवस दे रहा है उस में सिर्फ अपनी मुस्कान के अलावा कुछ नहीं जोड़ सकता. खराब टैक्सी या खराब खाना या गंदे पार्लर की खराब कैचियां सर्व करने वाले की जिम्मेदारी नहीं हैं.

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