टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत को 7 पदक मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं, क्योंकि भारत के गिने चुने खिलाडी ही ओलंपिक में आज तक मेडल लेकर आये है. इस बार भारत का प्रदर्शन टोक्यो ओलंपिक में बहुत अच्छा रहा, जिसमें एक गोल्ड, एक सिल्वर और 4 कांस्य पदक शामिल है. एक गोल्ड मेडल की वजह से भारत इस समय टोक्यो ओलंपिक की अंक तालिका में 48 वें स्थान पर है, जो हरियाणा के नीरज चोपड़ा के गोल्ड से पहले 67 वें नंबर पर थी, लेकिन 23 वर्षीय नीरज ने 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर भारत को 19 स्थान का जम्प लगवा दिया. ये वास्तव में गर्व की बात है और पूरा देश इससे उत्साहित है. इससे ये पता चलता है कि सही ट्रेनिग, डाइट, वातावरण आदि सबकुछ अगर ठीक हो, तो देश में कई ऐसे युवाओं की टीम है,जो पदक ला सकते है.इसका परिचय हॉकी के प्लेयर्स के खेल को देखकर समझा जा सकता है, जिन्होंने41 साल बाद टोक्यो ओलंपिक की सेमीफाइनल तक पहुंचे और कांस्य पदक लाने में कामयाब हुए. महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन भी बहुत अच्छा रहा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी टीम सेमीफाइनल में पहुँची, लेकिनग्रेटब्रिटेन को हरा नहीं पायी.
लगातार अच्छे परफोर्मेंस की कमी
इस बारें में मुंबई की बोईसर जिमखाना के उपाध्यक्ष करुनाकर शेट्टी जो 20 साल से कार्यरत है, उन्होंने सभी पदक विजेता खिलाडी को बधाई देते हुए कहते है कि मुझे ख़ुशी इस बात से हो रही है कि इस बार एथलीट्स ने सबसे अधिक मेडल हासिल की है, जिसमें नीरज चोपड़ा की गोल्ड मेडल, साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरा गोल्ड मेडल है. यहाँ एक और बात कहना आवश्यक है कि भारत के पदक विजेता खिलाडी बहुत कम अपने रैंक को ओलंपिक में बनाये रखने में समर्थ होते है, जबकि विदेश के एथलीट्स तक़रीबन 2 से 3 साल तक ओलंपिक में अपनी रैंक को कायम रख पाते है. इसकी वजह है पदक के बाद भी प्रैक्टिसऔर लगातार कॉम्पिटीशन में भाग लेना नहीं छोड़ते, जिससे वे हमेशा एक्टिव रहते है. मेरा सभी खिलाड़ियों से कहना है कि सारे पदक विजेता लगातार प्रैक्टिस को बनाए रखे, ताकि वे अगले पैरिस ओलंपिक में और अच्छा प्रदर्शन कर कई मैडल ला सकें. जिन खिलाड़ियों ने इस बार पदक न पाने से मायूस हुए है, उन्हें अधिक मेहनत के साथ आगे अच्छा करना है. यहाँ नीरज चोपड़ा यंग है, उसके पास जॉब है और उसे ट्रेनिंग भी अच्छी मिल रही है, आगे भी वह अपनी स्वर्ण पदक कायम रखने की उम्मीद है. असल में हमारे देश में अधिकतर खिलाडी ओलंपिक पदक पा लेने के बाद सुस्त हो जाते है और वे नए यूथ खिलाडी के लिए रोल मॉडल नहीं बन पाते. इसके अलावा यहाँ खिलाडी को प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड नहीं है, वैसे ट्रेंड कोच नहीं है, इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है. यही वजह है कि सारे भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी कोच का सहारा लेना पड़ता है. मेरे यहाँ 10 कक्षा के पहले अगर 100 एथलीट्स होते है, तो वही 10 वीं के बाद 2 या 3 रह जाते है, क्योंकि खिलाडी को किसी प्रकार की स्कॉलरशिप नहीं मिलती. पेरेंट्स बच्चे को खेल में जाने से रोकते है, क्योंकि खेल का भविष्य नहीं है, जबकि सरकार और बड़ी प्राइवेट कंपनियों को आगे आकर सही खिलाड़ी को प्रोत्साहित करने की जरुरत है, क्योंकि भारत में टेलेंट की कोई कमी नहीं है और अच्छी तैयारी होने पर ओलंपिक में 2 डिजिट में मेडल लाना कोई बड़ी बात नहीं होगी.
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