आधुनिक इंटरनैट बेस्ड टैक्नोलौजी का गुणगान करने वालों को तब एक बड़ा झटका लगा जब कई शहरों में उबर व ओला की टैक्सियों की हड़ताल हो गई. दोनों कंपनियां इंटरनैट पर आधारित आप के फोन में डाउनलोड किए ऐप्स के सहारे एक पैरेलल पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुहैया करा रही हैं और भारत ही नहीं कई और देशों में भी बेहद पौपुलर हैं. उन्होंने टैक्सी बिजनैस का स्वरूप ही बदल दिया, पर अब यही सेवा ग्राहकों के लिए जानलेवा बन रही है.
इस सेवा को देने वाली कंपनियों ने शुरू में ग्राहकों को भी खूब सस्ती सेवा दी और ड्राइवरों को भी भरपूर पैसा दिया. ड्राइवर 80 हजार रुपए मासिक तक कमाने लगे थे पर जैसेजैसे कंपनियों का नुकसान बढ़ने लगा, पैट्रोलडीजल के दाम बढ़े, ग्राहकों की निर्भरता बढ़ी, हरेक की जेब पर डाका डलने लगा. रात और भीड़ के समय ओला और उबर का सौफ्टवेयर अपनेआप फेयर बढ़ाने लगा. ड्राइवरों का कमीशन कम होने लगा. ज्यादा गाडि़यों की वजह से कंपीटिशन बढ़ने लगा.
नतीजा यह हुआ कि यह सेवा सरकारी सेवाओं की तरह होने लगी है. ड्राइवरों ने हड़ताल कर दी क्योंकि वे ज्यादा मुनाफा चाहते हैं, पर कंपनियां जो पहले ही बहुत मोटे नुकसान में चल रही हैं और छूट नहीं देना चाहतीं.
ग्राहकों को और ज्यादा निचोड़ना मुश्किल होने लगा है. लोग एअरकंडीशंड गाडि़यों के स्थान पर ठूसठूस कर भरी गई बसों और छोटी अनियमित टैक्सियों में चलने लगे चाहे रास्तेभर पसीने से तरबतर होना पड़े. जो फैशनेबल थे गाज उन पर भी गिरी क्योंकि वे यदि अतिरिक्त पैसे देने को राजी हों तो भी टैक्सी ऐप से बुलाने पर आती ही नहीं.
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