हाल ही में बांकुड़ा की आकांक्षा शर्मा और भोपाल के उदयन दास के नाम सुर्खियों में आए हैं. उदयन ने अपनी प्रेमिका आकांक्षा शर्मा की हत्या से 4 साल पहले अपने मातापिता की भी दरिंदगी से हत्या कर उन्हें बगीचे में दफना दिया था. रोंगटे खड़े कर देने वाले इस हत्याकांड में उदयन दास गिरफ्तारी के बाद रोज नए खुलासे करता रहा.

इस मामले ने दरिंदगी, झूठफरेब की हर सीमा को लांघ लिया है. पुलिस उदयन को साइकोपैथ किलर मान कर चल रही है और इस शातिर हत्यारे को उस के वकील पागल करार देने की जुगाड़ में हैं.

भोपाल और बंगाल पुलिस की हिरासत में जिरह के दौरान इस हत्याकांड की जितनी बातें सामने आई हैं वे रोंगटे खड़ी कर देने वाली है. हाल के समय में इसे सब से नृशंस किस्म का हत्याकांड माना जा रहा है, संभवतया निर्भया कांड के बाद. बांकुड़ा के थाने में उदयन के खिलाफ आकांक्षा के पिता शिवेंद्र शर्मा ने दिसंबर में आकांक्षा के अपहरण की शिकायत दर्ज कराई थी. उस के बाद मामले की एकएक परत खुलने लगी और 3 हत्याकांडों का खुलासा हुआ.

पुलिस का मानना है कि उदयन साइकोपैथ किलर यानी एक विकृत दिमाग का हत्यारा है. हताशा उस के भीतर घर कर गई है. बंगाल पुलिस का मानना है कि संभवतया मातापिता की हत्या के बाद उदयन ट्रौमा का भी शिकार हो गया. इसी कारण वह मानसिक रूप से संतुलित नहीं है. अकेले रहने से भी वह डरता था. गाड़ी चलाते हुए भी अगर उस के साथवाली सीट पर कोई नहीं हो तो एक टेडीबेयर को वह जरूर बिठाता, सीट बैल्ट के साथ. यही नहीं, साकेतनगर फ्लैट में विरला ही वह अकेला रहता. वह अवसाद से घिरा हुआ है. आकांक्षा हत्याकांड की पूरी कहानी है क्या. आइए, जानते हैं.

सोशल मीडिया जी का जंजाल 

2007 में यानी 10 साल पहले सोशल नैटवर्किंग साइट और्कुट के जरिए उदयन और आकांक्षा का परिचय हुआ था. तब उदयन ने खुद को दिल्ली आईआईटी का ग्रेजुएट बताया था. दरअसल, वह भोपाल के स्कूल से महज 12वीं पास था. लेकिन आकांक्षा जयपुर में इलैक्ट्रौनिक की स्टूडैंट थी. एक साल बाद 2008 में उन का परिचय दोस्ती में बदला. दोनों की पहली मुलाकात जयपुर में हुई. आकांक्षा उदयन से मिलने अपने तत्कालीन प्रेमी को साथ ले कर आई थी. तब से दोनों एकदूसरे के साथ संपर्क में थे. इस के बाद 2014 में हावड़ा में आकांक्षा और उदयन मिले. हावड़ा में एक लौज में दोनों ने रात बिताई.

जनवरी 2015 में आकांक्षा दिल्ली गई. वहां उस ने एक किराए का फ्लैट लिया. इस फ्लैट में उदयन भी अकसर 3-4 दिनों के लिए आ कर रुकता. आकांक्षा भी उदयन के साथ रहने दिल्ली से देहरादून चली जाती थी. ये तमाम जानकारियां पश्चिम बंगाल पुलिस को उदयन से जिरह के तहत हासिल हुई हैं. लेकिन इन बातों की पुष्टि के लिए आकांक्षा अब जिंदा नहीं है.

लिवइन रिलेशन

बहरहाल, 2016 में आकांक्षा भोपाल में उदयन के साथ लिवइन में रहने लगती है. हालांकि उदयन का दावा है कि लिवइन रिलेशन से पहले भी आकांक्षा उदयन से मिलने भोपाल आया करती थी. पर जून से दोनों लिवइन रिलेशन में थे. उदयन ने बंगाल पुलिस को बताया कि महज 17 दिनों के बाद जुलाई महीने में आकांक्षा के साथ संबंध में गड़बड़ी तब शुरू हुई जब उस ने आकांक्षा के फोन पर उस के पूर्व प्रेमी का टैक्स्ट मैसेज देखा. दोनों के बीच जम कर झगड़ा शुरू हुआ और यह अकसर होने लगा.

जुलाई में ही एक दिन चिकचिक के दौरान उदयन ने आकांक्षा का गला दबा कर उसे मार डाला. इस के बाद मृत आकांक्षा का गला रेत कर उस ने लाश को 5 फुट बाई 3 फुट के एक ट्रंक में भर कर किचन में ही रखा. इस के बाद लाश को कंक्रीट में तबदील करने के इरादे से आकांक्षा की लाश के साथ सीमेंट डाल कर दफनाया था. इस कारण लाश निकालने के लिए पुलिस को 3-3 ड्रिल की मदद लेनी पड़ी. 7-8 घंटे की बड़ी मशक्कत के बाद आकांक्षा के देहावशेष को सीमेंट से अलग किया जा सका.

अब जहां तक उदयन की कमाई का सवाल है तो जिरह में उस ने बताया कि उस के मातापिता का एक फ्लैट था दिल्ली की डिफैंस कालोनी में. इस फ्लैट से 10 हजार रुपए हर महीना किराया मिलता था. इस के अलावा रायपुर में भी एक फ्लैट से हर महीने 7 हजार रुपए और भोपाल में एक फ्लैट से 5 हजार रुपए किराया मिलता था. पिता के 8 लाख रुपए फिक्स्ड डिपौजिट से भी ब्याज मिलता था. साथ में, अपने मृत मातापिता की पैंशन भी वह उठाता था.

बारबार बदलते बयान

हालांकि जिरह के दौरान वह बारबार अपना बयान बदलता रहा. उस के मातापिता भी लंबे समय से लापता थे. पर उस ने पहले पुलिस को बताया कि उस की मां इंद्राणी रायपुर की ही थीं और पिता हावड़ा के एक बंगाली परिवार से थे. उन की लवमैरिज थी. लेकिन उदयन का जन्म और पालनपोषण रायपुर और भोपाल में ही हुआ.

उदयन ने पुलिस को बताया कि उस की मां इंद्राणी दास अमेरिका में हैं और वहीं से वे उसे पैसे भेजती हैं. जब उस से मां का फोन नंबर मांगा गया तो वह आनाकानी करने लगा. उस ने पुलिस को बताया कि उस के पिता डी के दास बीएचईएल यानी भेल में फोरमैन थे. रिटायर होने के बाद वे एक कारखाना चलाते थे. 2010 में दिल का दौरा पड़ने से उन का देहांत हो गया. जबकि सचाई यह थी कि 2010 में ही उस ने छत्तीसगढ़ के रायपुर के मकान में मातापिता दोनों की हत्या कर दी थी. अगले ही दिन उन की लाश को बगीचे में दफन कर दिया था. इस के बाद फर्जी पावर औफ अटौर्नी के बल पर उस मकान को उस ने बेच भी दिया.

कड़ी जिरह में उदयन ने हत्या की बात को कुबूल किया. इस के बाद उदयन को पुलिस छत्तीसगढ़ के रायपुर ले कर गई. बड़े ही निर्विकार भाव से पुलिस को उदयन ने बगीचे में मातापिता की लाशों के ठिकाने को दिखा दिया, जहां से उदयन के मातापिता के देहावशेष मिले हैं.

झूठ व फरेब का पिटारा

उदयन इंजीनियरिंग कालेज में भरती हुआ था पर फेल हो गया. उस ने घर पर किसी को यह नहीं बताया. पढ़ाई का खर्च लेता रहा. इसी तरह फर्जी इंजीनियरिंग के जब 5 साल बीत गए तो मातापिता ने उस पर नौकरी करने का दबाव बनाना शुरू किया. इस को ले कर लगभग हर रोज मातापिता से उस का झगड़ा होता. ऐसे ही झिकझिक के बीच पहले गला दबा कर मां इंद्राणी दास को मारा. उस समय पिता घर पर नहीं थे. वे मीट लेने बाजार गए हुए थे.

जब कभी डी के दास कहीं बाहर से घर लौटते थे तो बगैर दूध की चाय जरूर पीते थे. उस दिन बाजार से घर लौटते ही उदयन ने बाहर के कमरे में पिता को नींद की दवा मिला कर चाय पीने के लिए दे दी, जिसे पी कर वे अचेत हो गए. तब बेहोशी में ही पिता की गला दबा कर उस ने हत्या की. उस समय घर पर मरम्मती का काम भी चल रहा था. उदयन ने 500 रुपए दे कर राजमिस्त्री से कुदाल वगैरा मंगवाया. उसी रात उस ने बगीचे में गड्ढा खोदा और दोनों लाशों को दफना दिया.  

हत्या के बाद एक साल तक मां की पैंशन की रकम वह उठाता रहा. इस के लिए उस ने फर्जी ‘लाइफ सर्टिफिकेट’ दिखाया था. लेकिन आगे चल कर पैंशनभोगियों के लिए नियम बदल गया और अब पैंशनभोगी को सशरीर हाजिर हो कर पैंशन उठाना अनिवार्य हो गया. जाहिर है तब पैंशन की रकम उठाना मुमकिन नहीं था. तब उस ने होशंगाबाद से मां का फर्जी डैथ सर्टिफिकेट बनवाया.

पुलिस का मानना है कि चूंकि लंबे समय तक उदयन अपने नातेरिश्तेदारों के संपर्क में नहीं था, इसीलिए उस के मातापिता को ले कर किसी को कोई सिरदर्द भी नहीं हुआ. इस बीच, उस ने अपने नाम की पावर औफ अटौर्नी बनवा कर रायपुर वाला मकान बेचा और भोपाल चला आया.

उदयन के झूठ की भी फेहरिस्त बड़ी लंबी है. अपने कुछ परिचितों के बीच उस ने अपना परिचय आईएफएस यानी इंडियन फौरेन सर्विस के अधिकारी के रूप में दे रखा था. उस ने बताया था कि वह वाशिंगटन में बराक ओबामा से मिल चुका है. ट्रंप के साथ भी एक बार डिनर कर चुका है.

पुलिस का कहना है कि जांच में उस के कम से कम 40 फेसबुक प्रोफाइल्स का पता चला है. उदयन वन रिखथोफेन मेहरा, निखिल अरोड़ा मुखर्जी, पुशकिन स्टैसजियुस्का और रायनासोल जैसे प्रोफाइलों का पता चला. वह फेसबुक में नएनए प्रोफाइल बना कर नएनए फ्लैट और नई गाडि़यों की तसवीरें पोस्ट किया करता था. इन फेसबुक अकाउंट में उस ने झूठ का एक साम्राज्य स्थापित कर रखा था. किसी फेसबुक में वह खुद को राष्ट्रसंघ का कर्मचारी बताता तो किसी में अमेरिकी विदेश विभाग का. यहां तक कि न्यूयौर्क विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में डौक्टरेट का भी झूठ उस ने परोसा था. जहां तक शिक्षा का सवाल है तो वह दिल्ली आईआईटी का ग्रेजुएट बताता रहा है. पुलिस का मानना है कि आकांक्षा उस के ऐसे ही किसी झांसे में आ गई थी. इतना ही नहीं, उस के साकेतनगर फ्लैट से कई देशों के झंडे भी पुलिस ने जब्त किए हैं. अकसर वह फोन पर लोगों से विदेश में होने की बात कहता था. और भी बहुतकुछ झूठ व प्रपंच का खुलासा हुआ है.

आकांक्षा का फरेब जानलेवा

अब बात करते हैं आकांक्षा के फरेब की. आकांक्षा के मातापिता पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा निवासी हैं. एक राष्ट्रीयकृत बैंक में चीफ मैनेजर आकांक्षा के पिता शिवेंद्र शर्मा बताते हैं कि जयपुर से इलैक्ट्रौनिक्स इंजीनियरिंग के बाद जून 2016 को आकांक्षा घर लौटी. यूनिसेफ का नियुक्तिपत्र दिखा कर आकांक्षा ने बताया कि नौकरी के लिए दिल्ली होते हुए अमेरिका जा रही है. लेकिन उस नियुक्तिपत्र में वेतन का कोई जिक्रन था. इस से उन को (बैंक मैनेजर पिता शिवेंद्र शर्मा को) खटका लगा. पूछने पर बेटी ने बताया, ‘अमेरिका जाने के बाद वेतन फिक्स होगा.’

सहज मन से उन्होंने मान लिया. जून में वह रवाना हुई. घर से निकलने के कुछ दिनों के बाद आकांक्षा ने फोन कर के बताया कि वह अमेरिका पहुंच गई हैं. जबकि सच तो यह था कि वह अमेरिका गई ही नहीं थी. हालांकि बीचबीच में व्हाट्सऐप पर ही मातापिता से बातें करती थी और जल्द ही अमेरिकी सिम मिलने पर फोन करने का वादा करती.

कई बातों से शर्मा परिवार की चिंता बढ़ी. मां शशिबाला ने आकांक्षा को मैसेज किया था कि वह अपना एक सैल्फी भेजे और फोन पर बात करे. जवाब आया कि अमेरिकी सिम अभी तक नहीं मिला है, मिलते ही फोन करेगी. लेकिन नवंबर तक दोनों में से कुछ भी नहीं किया आकांक्षा ने. एक बार तो आकांक्षा के भाई ने एक जुगत लगा कर उसे मैसेज किया कि पिता को दिल का दौरा पड़ा है, पैसों की जरूरत है, जल्द भेजो. गौरतलब है कि शिवेंद्र्र के सीने में पेसमेकर लगा हुआ है. जवाब आया कि वह घर आ रही है. यह नवंबर के आखिर में हुआ.

नवंबर 2016 को मैसेज किया कि वह दिल्ली से हावड़ा तक पहुंच चुकी है. लेकिन फिर अचानक घर आए बगैर वह लौट गई. उस ने मैसेज किया कि उसे अमेरिका वापस जाना पड़ रहा है. शर्मा दंपती को व्हाट्सऐप पर ही यह मैसेज मिला. हैरानी तो हुई, पर उस की नौकरी के बारे में सोच कर उन लोगों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस के बाद आकांक्षा के फोन से व्हाट्सऐप मैसेज आया कि यूनिसेफ में सेवारत उस का दोस्त उदयन घर जा रहा है. 2 दिन वहीं ठहरेगा.

मां शशिबाला शर्मा कहती हैं कि आज यह सब सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि अपनी ही बेटी के हत्यारे उदयन के साथ बांकुड़ा में वे 2 रात गुजार चुकी हैं. उदयन का नाम आकांक्षा से पहले ही शर्मा दंपती सुन चुके थे. उदयन आया और हिंदी, अंगरेजी व बांग्ला भाषा में आराम से बातें करता था. उस ने कहा कि दिल्ली में वह आकांक्षा के मातापिता और भाई आयुष को अमेरिका ले जाने के लिए वीजा का बंदोबस्त करेगा.

दुर्गापूजा के बाद दिल्ली पहुंच कर उसे फोन करने की बात कह कर गया. उस की बातों में आ कर पूजा के बाद शर्मा परिवार दिल्ली गया भी. लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी उदयन ने उन का फोन नहीं उठाया. न ही वह आ कर मिला. तब शर्मा परिवार को थोड़ा शक हुआ. उन्होंने बेटी आकांक्षा को व्हाट्सऐप पर इस की जानकरी भी दी. जवाब में आकांक्षा ने लिखा कि उदयन की हत्या हो गई है. वह उस की मां से मिलने भोपाल जा रही है. शर्मा परिवार हैरान हुआ.

शक के बीज

शक का एक और कारण यह था कि उन की बेटी आकांक्षा के घर से जाने के बाद एकाध बार ही फोन पर बात हुई. लंबे समय से व्हाट्सऐप के जरिए या एसएमएस के जरिए बातें होतीं. फोन पर बात न होने से शक गहराने लगा. उधर आकांक्षा के बैंक अकाउंट से मोटीमोटी रकम निकलती जा रही थी. यह रकम उस के ब्याह के लिए जमा की गई थी. शर्मा दंपती को आशंका होने लगी. फोन पर बात करने की लाख कोशिश करने के बाद भी सफलता नहीं मिली.

5 दिसंबर, 2016 को बांकुड़ा में आकांक्षा के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई. जांच में आकांक्षा के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रैस की गई तो वह भोपाल के साकेतनगर में पाई गई. आकांक्षा के पिता शिवेंद्र और भाई आयुष भोपाल पहुंच गए. पर लाख दरवाजा पिटने पर भी वह नहीं खुला. आकांक्षा के पिता और भाई ने गोविंदपुरा थाने में मौखिक शिकायत की.

इस के बाद गोविंदपुरा पुलिस उस के साकेतनगर ठिकाने पर जब कभी गई, वहां ताला लगा मिला. फिर एक दिन अचानक उदयन थाने पहुंच गया. उस ने बताया कि आकांक्षा से ब्याह का सर्टिफिकेट थाने के पते पर उस ने पोस्ट कर दिया है, 1-2 दिनों में मिल जाएगा. पुलिस के मन से शक दूर करने के लिए आकांक्षा के नाम से एक पत्र पुलिस थाने में भेजा. जिस में कहा गया था कि वह बालिग है और अपनी मरजी से उदयन से ब्याह कर साकेतनगर में रह रही है. इस बयान के बाद पुलिस के मन में शक की कोई गुंजाइश नहीं रही.

अब पश्चिम बंगाल पुलिस का मानना है कि आकांक्षा की हत्या उदयन ने जुलाई में ही कर दी थी. आकांक्षा के मोबाइल पर व्हाट्सऐप और फेसबुक को उदयन खुद ही हैंडिल कर रहा था. उस ने आकांक्षा की फेसबुक से उस के भाई को ब्लौक कर दिया था. व्हाट्सऐप पर बहन से आयुष ने इस बारे में पूछा तो उसे  बताया गया कि अपना फेसबुक प्रोफाइल अकाउंट ही उस ने डिसेबल कर दिया है.

यहां तक कि आकांक्षा का बैंक अकाउंट भी उदयन हैंडिल कर रहा था. शर्मा दंपती का कहना है कि उन की बेटी के 2 अकाउंट थे. एक अकाउंट से एक लाख 20 हजार रुपए तक निकाले गए. यह निकासी आकांक्षा की हत्या के बाद भी हुई. आकांक्षा का एक और अकाउंट था, जिस में लगभग 16 लाख रुपए थे.

आकांक्षा के मामा राजेश सिंह का कहना है कि यह अकाउंट आकांक्षा के ब्याह के लिए था. हो सकता है एक बैंक अकाउंट का पिन नंबर उदयन जान गया हो, इसीलिए आकांक्षा की हत्या हो जाने के बाद भी उस अकाउंट से पैसे निकाले गए. दूसरे अकाउंट का पिन नंबर जानने के लिए उदयन ने दबाव बनाना शुरू किया हो और इस में उसे कामयाबी न मिली हो तो उस ने आकांक्षा की हत्या कर दी हो. राजेश सिंह का यह भी कहना है कि हो सकता है बड़े ही सरल मन से आकांक्षा ने फेसबुक में उदयन को अपने बैंक अकाउंट के बारे में पहले ही बता दिया हो.

उदयन जैसे कई हैं

आकांक्षा प्रकरण से याद आता है कि प्रेम, जनून और हत्या की घटनाएं पहले भी कई अलगअलग रूपों में देखी गई हैं जहां 2 प्रेमी मिलते हैं फिर कुछ ऐसे घटनाक्रम बनते हैं कि जिस में मांबाप समेत अन्य सगेसंबधियों तक की जान पर बात बन आती है.

1835 में फ्रांस में किसान परिवार के पियेरे रिविएरे नामक युवक द्वारा हंसिए से अपनी मां, बहन और छोटे-से भाई की दरिंदगी से हत्या किए जाने का मामला प्रकाश में आया था. अंत में उस ने आत्मसमर्पण कर दिया. अपने हलफनामा में पियेरे ने कहा कि अपने पिता को ‘क्लेश’ से मुक्ति देने के लिए उस ने ये हत्याएं की.

उस समय की इन 3 हत्याओं की घटना ने तत्कालीन समाज को झकझोर कर रख दिया था. यह वारदात लंबे समय तक समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के लिए चर्चा, विश्लेषण व शोध का विषय रही. उस समय मनोविश्लेषकों ने पियेरे को पेरीसाइड नामक मनोविकार से ग्रस्त बताया था. इस के बाद 1973 में फ्रांसीसी दार्शनिक मिशेल फुको ने पियेरे के हलफनामा को आधार बना कर एक किताब लिख डाली.

इस के बाद 1976 में फुको की किताब पर फ्रांस में एक फिल्म भी बनी. आज उदयन दास का मामला भी मनोविज्ञान के लिए चर्चा का विषय बन गया है.

ऐसे ही अन्य कुछ मामलों के बारे में जानते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि इस विकृत मानसिकता के पीछे का मनोवैज्ञानिक सच क्या होता है. इन सभी मामलों के केंद्रीय चरित्र की पहचान बदल दी गई है. इन की चरणबद्ध काउंसलिंग चल रही है.  

मामला-1 : मां एक प्रख्यात स्कूल में प्रिंसिपल, पिता केंद्रीय शोध संस्थान में वैज्ञानिक. मातापिता की तरह उन का एकमात्र बेटा अभिजीत (बदला हुआ नाम) भी कुछ कम नहीं. वह मेधावी है. पढ़ाई के दौरान ही अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी में नौकरी मिल गई. फिर उस का ब्याह हुआ.

धीरेधीरे अभिजीत एकदम से बदल गया. शुरुआत कुछ इस तरह हुई–एक दिन मां की कोई बात खल गई तो आव देखा न ताव, सीधे हाथ छोड़ दिया. फिर माफी भी मांगी. लेकिन यही बात कुछ दिनों के बाद उस ने फिर दोहराई. एक दिन ऐसा हुआ कि पिता की बात उसे नागवार लगी तो पिता को जोर से धक्का दे दिया. ऐसी हर हरकत के बाद वह गिड़गिड़ा कर माफी मांगने लगता. मातापिता उसे माफ कर देते. लेकिन यह सिलसिला कभी खत्म नहीं हुआ, बल्कि शुरू हो गया था. घर की इज्जत का खयाल करते हुए मातापिता ने कोई कड़ा कदम नहीं उठाया. सिर्फ बेटे से बोलचाल बंद कर दी.

लोग बताते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी उसे ले डूबी. सभ्यसुसंस्कृत लड़के में धीरेधीरे बदलाव आने लगा, जो महल्ले व पड़ोसियों को भी नजर आने लगा था. बेटे के अनियंत्रित गुस्से का डर मातापिता के मन में बैठ गया. एक दिन किसी पड़ोसी के सुझाव पर पीडि़त मातापिता मनोचिकित्सक से मिलने गए. किसी बहाने बेटे को मनोचिकित्सिक से मिलावाया. हालांकि बेटे को पता नहीं था कि वह किसी मनोचिकित्सक से बात कर रहा है. बहरहाल, मनोचिकित्सक ने लंबी बातचीत की.

मनोचिकित्सक का कहना है कि अभिजीत बाईपोलर अफैक्टिव डिसऔर्डर का मरीज है. उस के स्वभाव में बदलाव के पीछे उस का मेधावी होना ही है. कैसे? स्कूल के दिनों से वह अव्वल रहा है. स्कूली पढ़ाईलिखाई से ले कर कैरियर तक के सफर में नाकामी कभी उस ने देखी नहीं है. अब वह खुद को सब से ऊपर देखने का आदी हो चुका है. अपने आगे मांबाप तक को वह कुछ नहीं समझने लगा. यही कारण है अपने मन के खिलाफ होने वाली बातें उसे नागवार लगती हैं. कामयाबी उस की आदत में शुमार हो गई है. ‘न’ को वह बरदाश्त नहीं कर सकता और उस का गुस्सा बेकाबू हो जाता है.

मामला-2 : कौशिक के पिता एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हैं. मां हाउसवाइफ हैं. कौशिक एक नामी स्कूल में 9वीं का छात्र है. मातापिता की एकमात्र संतान है. एक दिन बेटे के कमरे में सिरहाने एक बड़ा सा चाकू देख कर मां के होश उड़ गए. 2 दिनों पहले किसी बात पर गुस्सा हो कर कौशिक मां पर चाकू तान चुका है. पर पिता को इस बात की खबर नहीं थी. अब जब बेटे की खबर ली तो पता चला, आजकल कौशिक ड्रग माफिया के चक्कर में पड़ गया है.

बेटे की काउंसलिंग के दौरान कौशिक ने बताया कि ड्रग माफिया के आगे उसे अपने ‘गट्स’ को साबित करना था. इस के लिए वह एक अदद हत्या कर के दिखा देना चाहता था. ऐसी सोच के तह में जाने के लिए मनोचिकित्सक ने मातापिता से भी बात की. पता चला, इस परिवार में मातापिता के बीच संबंध बहुत स्वाभाविक नहीं थे. दोनों के बीच अकसर कहासुनी होती रही है. इस का असर कौशिक पर पड़ता रहा है और उस के आत्मविश्वास में कमी आती गई. पर वह अपनेआप को साबित करना चाहता था. 

ऊपर कुछ घटनाओं का जिक्र किया गया है, उन से साफ है कि आज के युवासमाज में कुछ खास तरह के मनोविकार के लक्षण पैदा हो रहे हैं. कोलकाता के जानेमाने मनोचिकित्सक डा. ए डी महापात्र का कहना है कि जिस पैमाने पर आएदिन ऐसे मामले उन की क्लीनिक में आ रहे हैं, उस से साफ है हमारे समाज में कई उदयन हैं. आज नहीं तो कल, हमारे अड़ोसपड़ोस या हमारे अपने ही घरोंपरिवारों में ऐसा मामला देखने को मिल जाए तो हैरत नहीं होनी चाहिए. हम जो कर सकते हैं वह यह है कि समय रहते सचेत हो जाएं.

किशोरों में मनोविकार के लक्षण

डा. महापात्र कहते हैं कि आधुनिक जीवनशैली कई किस्मों की समस्याएं पैदा कर रही है, खासतौर पर किशोर उम्र के बच्चों में इस का अधिक प्रभाव पड़ रहा है. कभी घर पर मातापिता के बीच अकसर बातबतंगड़ से घर का माहौल खराब होता है तो कभी जबरन आधुनिक जीवनशैली अपनाने की जद्दोजेहद सरल जीवनयापन को प्रभावित करती है. वहीं, इंटरनैट और सोशल मीडिया के जरिए वर्चुअल वर्ल्ड में जरूरत से ज्यादा सक्रियता समस्या पैदा करती है. इन वजहों से किशोरवय बच्चों में बड़ी तेजी से मूड स्विंग होता है. 

आएदिन युवा समाज की सनक अखबारों की सुर्खियां बन रही है. इस पीढ़ी में सनक किसी भी चीज को ले कर हो सकती है. स्मार्टफोन और इंटरनैट में व्यस्त रहना, घंटों फेसबुक व ट्विटर जैसे सोशल मीडिया में लगे रहना, जानेअनजाने लोगों से दोस्ती के नाम पर देररात तक चैटिंग करना, वौयसकौल व वीडियोकौल में लगे रहना, घंटों वीडियो देखना, पार्टी और क्लबों में जीवन का सुख ढूंढ़ना, रईस जीवनशैली अपनाने की ललक, तुरतफुरत पैसे कमाने के लिए अपराध करने से भी नहीं हिचकना जैसी समस्याओं से अभिभावक रूबरू हो रहे हैं.

मातापिता या अभिभावक की रोकटोक इन्हें बरदाश्त नहीं. ऐसी स्थिति में ये आपे से बाहर हो जाते हैं. कभीकभार मनचाही मुराद पाने के लिए वे झूठ, प्रपंच और फरेब का सहारा लेते हैं. 

उदयन के मामले में पता चला कि वह 40-40 फेसबुक अकाउंट्स झूठ और फरेब के साथ हैंडिल करता था. अब जरा सोचिए इन फेसबुक अकाउंट्स में जो फ्रैंड्स होंगे, क्या उन्होंने कभी सोचा भी होगा कि उन का एक फेसबुक फ्रैंड ऐसा दरिंदा हो सकता है या हत्यारा हो सकता है. अकेले उदयन की बात जाने भी दें तो यह भी तथ्य है कि हर दिन झूठे परिचय के बल पर, अपनी असली उम्र और लिंग छिपा कर हजारों अकाउंट्स खोले जाते हैं.

सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे

कुछ समय पहले टाटा कंसल्ंिटग सर्विस की ओर से हमारे देश के 15 शहरों में 8वीं से ले कर 11वीं तक के लगभग 11 हजार किशोरकिशोरियों के बीच एक सर्वे कराया गया था. सर्वे का नतीजा बताता है कि हमारे देश में हर 3 फेसबुक फ्रैंड्स में से एक अनजान होता है. स्कूल स्टूडैंट्स की फेसबुकों में 40 प्रतिशत ऐसे फ्रैंड्स होते हैं, जिन्हें वे निजी तौर पर कतई नहीं जानते. लेकिन ये ‘वर्चुअल फ्रैंड्स’ ही इन के लिए सबकुछ हैं. टीनएजर के बीच फेसबुक फ्रैंड्स की गिनती में भी होड़ चलती है. जिन के फ्रैंड्स की लिस्ट जितनी लंबी, उस का उतना ही बड़ा रुतबा. यही कारण है देशीविदेशी कोई भी फ्रैंड्स रिक्वैस्ट आई नहीं, कि तुरंत ‘ऐक्सैप्ट’ कर दिया. 

सर्वे यह भी बताता है कि देश के ज्यादातर शहरों में टीनएजर की फ्रैंड्स लिस्ट में महज 10 प्रतिशत पारिवारिक सदस्य और दूसरे सगेसंबंधी होते हैं. जब कि 90 प्रतिशत अनजान लोग होते हैं. 

जाहिर है बांकुड़ा की आकांक्षा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. आकांक्षा ने अनजान उदयन के झूठ को परखे बिना अधिक भरोसा किया. और घरवालों से झूठ बोल कर मनोविकार से ग्रस्त उदयन पर आंखें मूंद कर भरोसा करने का खमियाजा उसे अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा.

अब सवाल है कि पैसों के लालच में ही उदयन ने आकांक्षा की हत्या की? शर्मा दंपती का कहना है कि हो सकता है इस बीच आकांक्षा को उदयन के मातापिता की हत्या की खबर लग गई हो, इसलिए उदयन ने उस की हत्या कर दी गई हो. असल

बात कुछ भी हो, जिस तरह से उदयन ने 3-3 हत्याओं को अंजाम दिया, उस से यह सबक जरूर लेना चाहिए कि सोशल मीडिया के प्रति सहज होना जरूरी है. यहां हर तरह की सूचनाएं, खासतौर पर निजी सूचनाएं नहीं देनी चाहिए. और, सोशल मीडिया की तमाम सूचनाओं पर आंख मूंद कर भरोसा करने से बचना भी चाहिए.

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