डाक्टर स्मिता सिंह, क्षेत्रीय प्रबंधक, उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण.
किताबें केवल शिक्षित ही नहीं करतीं आत्मनिर्भर और समृद्ध भी बनाती हैं. नोएडा की रहने वाली और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण की क्षेत्रीय प्रबंधक डाक्टर स्मिता सिंह के घर करीब 4 हजार किताबों से सुसज्जित पुस्तकालय है. उन्होंने 31 साल की उम्र के बाद अपनी पीएचडी पूरी की है.
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मैनेजमैंट में गोल्ड मैडलिस्ट रह चुकीं स्मिता ने पत्रकारिता और विश्वविद्यालय में पढ़ाने से अपनी नौकरी की. स्मिता ने पढ़ाई का शौक अपनी मां सुमन सिंह से हासिल किया और आगे अपनी बेटियों वरेण्या और वारालिका को दिया है. स्मिता को जीवन में कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा. कैंसर जैसे रोग को भी मात दी.
डाक्टर स्मिता सिंह से महिला शिक्षा, कैरियर और समाज के विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से बात हुईं:
अपनी मां और अपनी बेटी के बीच के समय में क्या अंतर देख रही हैं?
समाज में बहुत बदलाव हुआ है. मेरी मां ने एमए तक की पढ़ाई की थी. उस के बाद भी नौकरी नहीं की. उन की लिखी भूगोल की किताब पाठ्यक्रम का हिस्सा है. मां से मैं ने पढ़ने का शौक पाया. उन का मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव है. मेरी सोच है कि लड़कियों को न केवल पढ़ाई करनी चाहिए, बल्कि अच्छी पढ़ाई करनी चाहिए. उन्हें अपने संस्कारों और विचारों के साथ आधुनिक सोच भी रखनी चाहिए. इस से महिलाओं में आत्मनिर्भरता आती है. वे अपने फैसले और विचार मजबूती के साथ समाज और परिवार के सामने रख सकती हैं. इन की बात को सभी सम्मान देते हैं.
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