नोबेल: यह भी जानें
डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर वर्ष 1901 में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत हुई थी. कैलाश सत्यार्थी के अलावा जिन भारतीयों या भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों को यह सम्मान मिला है वे हैं- गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, सर सी.वी. रमन, डा. हरगोबिंद खुराना, मदर टेरेसा (अल्बानिया मूल की भारतीय), सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, अमर्त्य सेन और वेंकटरमन रामाकृष्ण.
असाधारण पुरस्कार या खिताब हमेशा असाधारण लोगों के हिस्से ही आते हैं. इस नाते कैलाश सत्यार्थी निस्संदेह असाधारण हैं. पर उन से भी असाधारण हैं उन की पत्नी सुमेधा, जिन्होंने एक लंबी लड़ाई पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ी, उन की प्रेरणा बनी रहीं, हर अभियान में पति का साथ दिया. मुश्किल से मुश्किल वक्त में उन की हिम्मत नहीं टूटने दी. बीते दिनों जब मध्य प्रदेश सरकार ने कैलाश सत्यार्थी के सम्मान में मुख्यमंत्री निवास में एक समारोह आयोजित किया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कैलाश की उपलब्धि का श्रेय सुमेधा को भी दिया.
परिवार, परिचय और परिणय
विदिशा के एसएटीआई कालेज से इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद आर्य समाज से प्रभावित कैलाश ने सीधे दिल्ली का रुख किया. उन दिनों आर्य समाज की प्रमुख पत्रिका ‘जनज्ञान’ में वे छिटपुट लिखते रहते थे. इस नाते उन का परिचय इस पत्रिका के संपादक मंडल और प्रकाशकों पंडिता राकेशरानी और उन के पति पंडित भारतेंदु नाथ से था. इन की बड़ी बेटी सुमेधा तब 20 साल की थीं. वे पत्रिका का कामकाज भी देखती थीं. वे कैलाश सत्यार्थी को नाम से जानती थीं. एक अनिश्चित भविष्य और उतना ही अनिश्चित उद्देश्य ले कर दिल्ली पहुंचे कैलाश को जब भोजन के लिए सुमेधा के घर आमंत्रित किया गया तो यहां डिनर पर दोनों की विधिवत और अनौपचारिक मुलाकात हुई.
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