इस साल जनवरी में मेरा रिश्तेदार की शादी में गुजरात जाना हुआ. वहां जाने के लिए मैंने हमेशा की तरह ट्रेन का सफ़र चुना. ट्रेन का सफ़र मुझे हमेशा रोमांचित करता है खासकर तब जब नयी जगह जाना हो. सरसराती हवाएं, दूर दूर तक खेतों में पड़ती नजर, उगता-डूबता सूरज यह सब चीजें अच्छा अनुभव कराती हैं. ट्रेन ने जैसे ही दिल्ली पार की तो मैंने सफ़र में समय काटने के लिए जेन ऑस्टिन की चर्चित नॉवेल प्राइड एंड प्रेज्यूडिस पढने के लिए निकाली. जैसे ही कुछ देर तक पढ़ा, कि सामने वाली सीट पर दो लड़के, यूँही कोई 20-22 के करीब, आपस में बात कर रहे थे और उनकी आवाज मेरे कानों तक आने लगी. उनकी बातों में प्रमुखता से सेक्स, ठरक, वर्जिनिटी वे कुछ शब्द थे जो किताब से मेरा ध्यान हटा रहे थे.

एक लड़का दुसरे को कहता “शादी ऐसी लड़की से होनी चाहिए जो वर्जिन हो. इससे लड़की की लोयालिटी का पता चलता है कि वह आपके प्रति कितनी ईमानदार रहेगी. फिर ‘माल’ भी तो नया रहता है.” फिर इसी बात को और भी लम्पटई शब्दों में दूसरा लड़का विस्तार देने लगा. उन दोनों की बातों में वह सब चीजें थी जो उस उम्र के युवा किसी लड़की के योवन को लेकर अनंत कल्पनाओं में बह जाते हैं. खैर, उनकी सेक्स को लेकर चल रही अधकचरी समझ मुझे इतनी समस्या में नहीं डाल रही थी, जितनी इस जेनरेशन के लड़कों में आज भी खुद के लिए तमाम आजाद यौनिक इच्छाओं और महिलाओं की योनिकता पर नियंत्रण रखने वाली पुरानी सोच से समस्या लग रही थी. यह सब उसी प्रकार से था, कि लड़का आजादी से अपनी सेक्सुअल प्लेजर का शुरू से मजा ले लेना चाहता है जिसके बारे में बताते हुए वह प्राउड महसूस भी करता है और उसके साथ उठने बैठने वाले उसके साथी उसे स्टड, प्ले बॉय का टेग लगा कर प्रोत्साहन करते हैं, वहीँ लड़की अगर किसी लड़के के साथ उठती बैठती है तो उसे रंडी, या स्लट कह देते हैं.

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