औरतों को किसी भी साधुसंत के प्रवचन में बड़ी संख्या में देखा जा सकता है. घर वालों को पंडेपुजारी, पादरी, मुल्ला समझाते हैं कि धर्म सही शिक्षा देता है, सद्व्यवहार सिखाता है, शांति लाता है. पर असल में होता है उलटा ही. जितना क्लेश धर्म के कारण होता है उतना और किसी वजह से नहीं.
भारी सीटें जीतने के बाद भी नरेंद्र मोदी संसद से घबराए हैं, क्योंकि उन की एक चेली निरंजन ज्योति, जो अपनेआप को साध्वी कहती है भगवा कपड़ों में भजभज मंडली की ओर से उत्तर प्रदेश की एक लोक सभा सीट से जीत कर ही नहीं आई मंत्री पद भी ले गई, ने एक आम चुनावी सभा में असभ्य भाषा का इस्तेमाल किया. यह भाषा है गालियों की, अपशब्दों की, दूसरों को नीचा दिखाने की, धर्म के नाम पर आदमी को आदमी से अलग करने की.
उन्होंने दिल्ली में एक चुनावी सभा में कह डाला कि तय करिए कि अगली दिल्ली विधान सभा रामजादों की बनेगी यानी रामभक्त भाजपाइयों या हरामजादों की. यह शब्द भगवाधारी एक वर्ग विशेष के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिसे लिखना भी अपमानजनक माना जाता है. जिन के हम हिंदू सदियों से गुलाम रहे, उन्हें आज गाली दे कर देश कौन सी भड़ास निकालता है, यह तो नहीं मालूम पर ये शब्द न केवल धर्मों के बीच वैमनस्य पैदा करते हैं, बल्कि जबान पर भी चढ़ जाते हैं और लोग आपस में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं.
भगवा कपड़ा, काला चोला या सफेद कुरता पहनने से लोगों के काले दिल पवित्र नहीं होते, बल्कि यह जताते हैं कि उन के धर्म की व्यावसायिक पोशाक है, जिसे देख कर भक्त लोग अपनी मुट्ठी तो खोल ही दें, मरनेमारने को भी तैयार हो जाएं. गुरमीत रामरहीम सिंह, रामपाल और आसाराम भी इन्हीं की बिरादरी के हैं और इराक में उत्पात मचा रहे इसलामिक स्टेट के आतंकी भी. इन्हें धर्म के नाम पर लूटना है और लूटने के लिए लोगों की मति भ्रष्ट करनी है.
देश के विपक्षी दलों को मौका मिल गया कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके.
सवाल यह है कि इस तरह के शब्द धर्म के नाम पर जबान पर आते ही क्यों हैं? स्पष्ट है, धर्म के नाम पर एक झूठी काल्पनिक शक्ति को बेचा जाता है और बेचने वाले हर तरह के प्रपंच रचने में कामयाब हो जाते हैं.
सदियों से धर्म के नाम पर राजाओं को दूसरों की हत्याएं करने के लिए भी उकसाया गया है और अपने तथाकथित काल्पनिक ईश्वर या उस के स्वरूप, पुत्र आदि के भवन, मंडप या स्मारक भी बनवाए गए. अगर दूसरों को, विरोधियों को अथवा प्रतिस्पर्धियों को गालियां न दी जाएं तो भक्तों में जोश पैदा नहीं होता. राम मंदिर के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी ने देश भर में धर्म का झंडा फहराया था. उस से पहले इंदिरा गांधी ने विदेशी हाथ कह कर वोट बटोरे थे. लालू यादव जैसे भी उन धर्म स्थलों में जाते हैं, जहां केवल छलफरेब है. मायावती ने स्मारकों के नाम पर मंदिर बनवाने की कोशिश की.
ये सब समयसमय पर विरोधियों को उसी भाषा में संबोधित करते हैं, जो निरंजन ज्योति ने इस्तेमाल की और जो घरघर में औरतें व आदमी प्रयोग करते हैं. जेठानियों, देवरानियों, भाभियों, बहुओं के लिए ही नहीं, बहनों, भाइयों तक के लिए इस तरह की भाषा का प्रयोग हो रहा है.
सड़क छाप लोगों द्वारा, वेश्याघरों, नाइट क्लबों में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना आम है पर यह दोस्तों में होती है. मगर अनजान पर ऐसी भाषा के इस्तेमाल करने पर हंगामा खड़ा हो जाता है. औरतें पड़ोसिनों के लिए ऐसी भाषा इस्तेमाल करती हैं पर बंद कमरों में. धर्म वालों को ही यह छूट है कि वे खुली सभाओं में ये शब्द इस्तेमाल करें, क्योंकि उन्हें सुरक्षा की गारंटी रहती है. भक्तों की भीड़ उन्हें रामरहीम, रामपाल, भिंडरावाले जैसों की सुरक्षा दिलाती है.
समाज में सब से ज्यादा गंद ये गालियां फैलाती हैं. औरतों की सुरक्षा में यही आड़े आती हैं. ‘हरामजादे’ शब्द असल में औरत का अपमान है जिस ने बिना विवाह संतान पैदा की. दोष न बच्चे का है न औरत का, है तो उस आदमी का जो औरत के साथ सोया होता है. लेकिन वह तो साफ बच निकलता है. गालियां औरतों और उन के निर्दोष बच्चों को मिलती हैं.