जलती सड़क पर नंगे पैर भागी जा रही उस बूढ़ी औरत का पीछा करते हुए मेरा पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो चुका था. करीब 3 किलोमीटर भागने के बाद उस के कदम एक भजनाश्रम के द्वार पर रुके. फिर अंदर घुस गई. मैं भी सिर पर दुपट्टा कर उस के पीछेपीछे अंदर भागी. दरवाजे पर खड़े पंडे ने  मुझे रोकने की कोशिश की. मगर औरतों की  भीड़ के बीच से तेजी से निकलती हुई मैं उस  बड़े से हौल के एक कोने में औरतों के बीच जा कर बैठ गई. जिस औरत का पीछा करते हुए मैं इस भजनाश्रम तक पहुंची थी उस की उम्र कोई 80 साल रही होगी.

कमर झुकी हुई, हाथ में छड़ी और शरीर पर मात्र एक सफेद झीनी साड़ी, जिस के नीचे न पेटीकोट था और न ब्लाउज. किसी तरह एक झीनी सूती साड़ी से अपनी लाज ढके वह वृद्धा इतनी तपती दोपहरी में इस जगह पहुंचने के लिए सिर्फ इसलिए भागी आ रही थी कि यहां भजन गाने के लिए 4 रुपए का टोकन उसे 2 बजे से पहले हासिल करना था. उस जैसी सैकड़ों औरतें हौल में इकट्ठा थीं, जिन्हें वहां मौजूद हट्टेकट्टे पंडे डांटडपट कर लाइन में लगवाने की कोशिश कर रहे थे. औरतों के बीच लाइन में आगे जा कर लगने के लिए जम कर धक्कामुक्की और गालीगलौच हो रही थी. हर औरत को यही डर था कि कहीं उस की बारी आतेआते महंत की झोली के टोकन खत्म न हो जाएं. महंत एक ऊंचे स्थान पर आराम से पसरा पड़ा था. एक जवान विधवा उस के पैरों में मालिश कर रही थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...