अमेरिका का एक मजेदार पर चौंकाने वाला आंकड़ा है. अमेरिका में लगभग 4 करोड़ से ऊपर की आयु के वयस्क अपना काम छोड़ कर अपने वृद्ध मातापिता की देखभाल कर रहे हैं. अनुमान है कि ये वयस्क लगभग लाख डौलर का नुकसान प्रति वयस्क कर रहे हैं. भारत की स्थिति भी इस से कुछ अलग नहीं होगी बस यहां लोग नौकरियां नहीं छोड़ रहे, क्योंकि घरों में आमतौर पर पत्नियां हैं, जिन्होंने कभी काम नहीं किया, पर उन औरतों की गिनती धीरेधीरे बढ़ रही है, जिन्होंने मांपिता या सासससुर की देखभाल के लिए अच्छीखासी नौकरियां छोड़ दीं.
चूंकि अब वृद्ध अकसर 75-80 की आयु में ही होते हैं तब तक बच्चे खुद 45-50 के हो चुके होते हैं. यदि घर में 2 कमाने वाले हों तो 1 को नौकरी छोड़ देनी होती है. पिछली पीढ़ी में यह सुविधा थी कि वे 2-3 बच्चों के मांबाप थे और कोई न कोई उन की देखभाल के लिए आ ही जाता था पर अब जो 40-50 आयु के हैं उन्हें चिंता सता रही है कि उन की देखभाल कौन करेगा.
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आज कम बच्चे, देर से शादी, अकेले रहने का सुख, घर के कामों के प्रति अरुचि, महंगे होते अस्पताल एक चुनौती बन रहे हैं. 40-45 वालों को प्रलोभन दे कर ओल्डऐज होम, इंश्योरैंस पौलिसियां, जमा खाते में धन की योजनाएं परोसी जा रही हैं. पर जिस तरह की बेईमानियां प्राइवेट और सरकारी कंपनियों व बैंकों में हो रही हैं, कोई भरोसा नहीं कि आज का जमा कराया पैसा 30 साल बाद मिले ही नहीं, क्योंकि कंपनी या बैंक बंद हो चुका हो.
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