जब मैं ने जीवजंतुओं पर लिखना शुरू किया था तब सोचा था कि मैं लोगों को जागरूक बनाने के लिए लिख रही हूं ताकि उन के मन में जीवजंतुओं के प्रति दयाकरुणा का भाव पैदा हो सके और उन में वैज्ञानिक सोच तैयार हो. लेकिन अब मुझे लगने लगा है कि मैं अपने लिए लिखती हूं, अपने दिली सुकून के लिए लिखती हूं. ठीक उसी तरह जिस तरह कोई डांसर या सिंगर अपनी खुशी के लिए नाचता या गाता है. इस ब्रह्मांड और इस के जीवजंतुओं के लिए कद्र हफ्ता दर हफ्ता मेरे लेखन में फूट पड़ती है. मैं लिखती इसलिए हूं, क्योंकि मैं यह सब लिखे बगैर रह नहीं सकती.

जरा सोचिए उन छोटे जीवों के बारे में, जो हम से लगभग मिलतेजुलते हैं. वहीं प्रभावशाली जीवजंतु अधिक खूबसूरती, अधिक बुद्धिमत्ता से और सफलतापूर्वक हर मानवीय क्रियाकलापों का प्रतिफलन होते हैं. चींटियों की ऐसी ही दुनिया का अस्तित्व यहां है.

चींटियों की अनोखी दुनिया

मैं ने उन के बारे में कई बार लिखा है. वे सुरंग खोदती हैं और बदलते मौसम के हिसाब से इंजीनियरों की तरह कुशलता से घर बनाती हैं. उन में भी जाति और वर्ग हैं. वे युद्ध भी करती हैं और अपनी सेवा के लिए गुलाम बनाती हैं, जो हरदम उन की सेवा में लगे रहते हैं और इन की कालोनियों के बाहर दरबान की तरह नियुक्त होते हैं. वे खेती करती हैं और खाद्यपदार्थों का उत्पादन करती हैं.

रसोई और मेस भी चलाती हैं, जहां चींटियां अपना खाद्यपदार्थ जमा करती हैं. उन के शयनकक्ष भी होते हैं और उन के घरों में साफसफाई का काम भी होता है. नदियां पार करने के लिए उन की नौकाएं भी हैं और वे सैनिकों, मजदूरों और घरेलू नौकरानियों को प्रशिक्षित भी करती हैं. शिक्षक क्लास लिया करते हैं. हम जो कुछ करते हैं, उन में से वे क्या नहीं करतीं, यह मैं सोच नहीं पा रही हूं. (यहां बेहतर करने वाली बात को अलग रखा गया है.) मुझे यकीन है कि अगर उन की बोली को समझने वाली कोई मशीन हमारे पास होती तो हमें पता चलता कि उन की विभिन्न कालोनियों में भी हमारी तरह ही जटिल अलगअलग बोलियां होती हैं. मुझे यकीन है कि एक दिन हम लोग जरूर जान पाएंगे कि मनोरंजन के लिए उन के पास

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