दीवाली का त्योहार जा चुका है. सच कितना हर्षोल्लास और उमंग बिखर जाती है त्योहार में. जीवन की नीरस, उबाऊ और बंधीबंधाई जीवनचर्या में त्योहार नई ऊर्जा भर देते हैं. मगर ज्यों ही त्योहार बीतते हैं, जीवन फिर से पुराने ढर्रे पर चलने लगता है. तब मन में आता है कि क्या अच्छा हो कि जीवन में त्योहारों जैसी खुशियां सदा बनी रहें. मगर प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर कोई सफलता व खुशियां पाने के लिए भाग रहा है.

गाड़ी व आधुनिक सुखसुविधाओं से लैस घर आजकल स्टेटस सिंबल बन गया है. आधुनिक सुखसुविधाओं की प्राप्ति के लिए आज पतिपत्नी दोनों का कामकाजी होना अनिवार्य हो गया है. ऐसे में नौकरी व गृहस्थी के दोहरे चक्रव्यूह में उलझे दंपतियों का विवाहित व सामाजिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. उन की दिनचर्या इतनी व्यस्त होती है कि उन के पास स्वयं के लिए, बच्चों के लिए कोई सामाजिक अथवा पारिवारिक दायित्व निभाने तक का समय नहीं होता है.

एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अकेले दिल्ली में ही 66% लोग डबल इनकम की लग्जरी को पसंद करते हैं. पूरे देश में लगभग 54% दंपती मात्र वीकेंड पेरैंट बन कर रह गए हैं. 34% कामकाजी दंपती मात्र तनाव से उत्पन्न मतभेदों की वजह से तलाक तक पहुंच जाते हैं. गृहस्थी और नौकरी के दोहरे चक्रव्यूह के चलते तनाव व थकान के बोझ तले दबे दंपतियों के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है कि उन के जीवन में कुछ ऐसे मनोरंजक पल आएं जो उन्हें प्रफुल्लित कर नई ऊर्जा से भर दें. 

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