कई वर्षों से फर्जी और चिटफंड कंपनियों का केंद्र रहा है पश्चिम बंगाल. दूसरे राज्यों से ज्यादा, चिटफंड कंपनियों ने बंगाल को अपना आशियाना बनाया और परवान चढ़ने के साथसाथ जनता को लूटने का काम किया. पश्चिम बंगाल में फर्जी कंपनियों की शुरुआत वास्तव में वाम मोरचा के शासनकाल में हुई.
वाम मोरचा सरकार के ढीले रवैए के कारण ज्यादातर चिटफंड कंपनियों ने यहां अपना डेरा जमाया और लालच दे कर जनता को लूटने का काम शुरू कर दिया. यहां की जनता को एक के बाद एक सब्जबाग दिखाए गए और उन की जेबें खाली कर दी गईं. ये चिटफंड कंपनियां अभी परवान चढ़ ही रही थीं कि पश्चिम बंगाल में सत्ता परिवर्तन हो गया.
चिटफंड कंपनियां पसोपेश में थीं कि नई सरकार के आने से उन का धंधा कहीं मंदा न पड़ जाए, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि चिटफंड कंपनियों का धंधा और भी चोखा हो उठा. फिर तो तमाम चिटफंड कंपनियों की पांचों उंगलियां घी में सन गईं.
तृणमूल कांग्रेस की नई सरकार ने उन्हें रोकने के बजाय उन का हौसला बढ़ाया. परिणामस्वरूप चिटफंट कंपनियों का कारोबार इतनी तेजी से बढ़ा, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दरअसल, सत्तासीन पार्टी के नेताओं और मंत्रियों ने चिटफंड कंपनियों के कार्यक्रमों में धड़ल्ले से जाना शुरू कर दिया. लिहाजा, फर्जी और चिटफंड कंपनियों का सीना इतना चौड़ा हो गया कि पूछिए मत. इन कंपनियों के लोग दिनदूनी रातचौगुनी तरक्की करने लगे. साथ ही, सत्तासीन पार्टी के मंत्रियों और नेताओं को भी भरपूर फायदा होने लगा. पार्टी फंड गुलजार रहने लगा.
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