Sandwich Generation : भारत में सैंडविच जैनरेशन के लोग अपने पेरैंट्स और बच्चों की जिंदगी को हर संभव तरीके से सब से बेहतर बनाने पर ध्यान देते हैं, फिर भी उन्हें ऐसा लगता है कि वे अपने भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं. ऐडलवाइज लाइफ इंश्योरैंस की एक स्टडी के अनुसार 60% उत्तरदाता इस बात से सहमत हैं कि चाहे वे कितनी भी सेविंग या इन्वैस्ट कर लें, पर ऐसा लगता है कि यह भविष्य के लिए काफी नहीं हैं.”

सैंडविच जैनरेशन

सामान्यतौर पर 35 से 54 साल की उम्र के लोगों को सैंडविच जैनरेशन कहा जाता है, जिन के कंधों पर 2 पीढ़ियों यानी अपने बुजुर्ग मातापिता और बढ़ते बच्चों की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी होती है. जीवन बीमा कंपनी ने YouGov के साथ मिल कर देश के 12 शहरों में इस जैनरेशन के 4,005 लोगों का एक सर्वे किया, ताकि उन के नजरिए, उन की धारणा और वित्तीय तैयारी के स्तर को समझा जा सके.

फंसे हैं अपनी फैमिली की देखभाल के बीच

ऐडलवाइज लाइफ इंश्योरैंस के एमडी एवं सीईओ, सुमित राय का कहना है, “पिछले कुछ सालों में अपने ग्राहकों के साथ बातचीत के आधार पर हम ने इस बात को करीब से जाना है कि सैंडविच जैनरेशन के लोग किस तरह अपने मांबाप और बच्चों की देखभाल के बीच फंसे हुए हैं. वे स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहते हैं, साथ ही वे अरमानों भरी जिंदगी भी देना चाहते हैं, जिस में ‘जरूरतों’ को पूरा करने के लिए ‘ख्वाहिशों’ की कुर्बानी नहीं देनी पड़े. यही सब से बड़ी वजह है, जो उन्हें वित्तीय फैसले लेने के लिए प्रेरित करती है. और इन सब के बीच वे अकसर अपने सपनों को पीछे छोड़ देते हैं, जिस से उन्हें यह महसूस होता है कि वे भविष्य के लिए तैयार नहीं हैं.”

मनी डिस्मौर्फिया

सरल शब्दों में कहें तो मनी डिस्मौर्फिया का मतलब है अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में दुखी महसूस करना है. स्टडी के नतीजे बताते हैं कि इस जैनरेशन के लोगों में आर्थिक रूप से तालमेल का अभाव या मनी डिस्मौर्फिया है. 50% से अधिक लोग अलगअलग बातों से अपनी सहमति जताते हैं, जिस में पैसे खत्म होने की चिंता, हमेशा पीछे रह जाने और जिंदगी में कुछ अच्छा नहीं कर पाने का एहसास शामिल है. उन के वित्तीय फैसले परिवार के लिए अपनी जिम्मेदारी और प्यार पर आधारित होते हैं.

सुमित राय ने आगे कहा, “इस जैनरेशन के लोग अपनी ख्वाहिशों के बारे में जानते हैं और मानते हैं कि अपनी पसंद की प्रोडक्ट कैटिगरी में निवेश कर के भविष्य की अच्छी तरह से योजना बनाना बेहद जरूरी है. लेकिन हमारी इस स्टडी से कुछ दिलचस्प बातें भी सामने आई हैं. उन में इस तरह के ऐक्टिव इन्वेस्टमैंट को अगले 1-2 सालों तक बरकरार रखने में काफी कम रुचि दिखाई देती है. इस के अलावा उन्हें पहले से तय किए गए लक्ष्यों के लिए इन्वेस्टमैंट का भी समय से पहले उपयोग करना पड़ा है. उन्हें लगता है कि वे कमजोर जमीन पर खड़े हैं, जिस में कोई हैरानी की बात नहीं है.”

पसंदीदा प्रोडक्ट कैटिगरी

अगर उन के 5 सब से पसंदीदा प्रोडक्ट कैटिगरी यानी लाइफ़ इंश्योरैंस, हैल्थ इंश्योरैंस, इक्विटी और बैंक एफडी की बात की जाए, तो इन सभी कैटिगरी में 60% से भी कम लोगों ने अपने इन्वेस्टमैंट को बरकरार रखा है और इस से भी कम लोग अगले 1-2 सालों तक इसे बरकरार रख पाने की उम्मीद करते हैं. इस स्टडी में आगे की जांच करने पर पता चला कि इन सभी प्रोडक्ट कैटिगरी को समय से पहले समाप्त कर दिया गया है, जिस का सीधा मतलब यह है कि उन्होंने पहले से तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करने से पहले ही इन का उपयोग कर लिया था. पैसों की सख्त जरूरत की वजह से उन्हें समय से पहले अपने इन्वेस्टमैट का उपयोग करना पड़ा, जबकि छुट्टियां, त्यौहारों के दौरान खर्च जैसी गैर महत्त्वपूर्ण जरूरतें भी इस के गैर महत्त्वपूर्ण कारण के रूप में उभर कर सामने आईं.

फाइनैंशियल प्लानिंग पर भरोसा

इस जैनरेशन के लोगों की ख्वाहिशें मुख्य रूप से अपने बच्चों के भविष्य (उन की पढ़ाई और शादी के लिए पैसे जुटाना), अपने मातापिता की सेहत से जुड़ी जरूरतों और परिवार के जीवनस्तर को बेहतर बनाने पर केंद्रित हैं. उन्हें फाइनैंशियल प्लानिंग पर काफी भरोसा है. 94% लोग बताते हैं कि उन्होंने या तो हर पहलू को ध्यान में रख कर फाइनैंशियल प्लानिंग की है या कुछ हद तक इस की योजना बना रखी है. इन में से ज्यादातर, यानी 72% लोग यह भी मानते हैं कि उन्होंने कुछ खास अरमानों को पूरा करने के लिए इन्वेस्टमैंट किया है.

क्रैडिट की मदद से जरूरतों को पूरा

इस के बावजूद, 64% लोगों ने बताया कि वे अपनी कम समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी न किसी तरह के क्रैडिट का उपयोग करते हैं, जबकि 49% लोग बचत का सहारा लेते हैं. इस स्टडी से पता चलता है कि वे नकद रकम/ इनकम के साथसाथ क्रैडिट की मदद से स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करते हैं, साथ ही उन के लिए छुट्टियां बिताने, घर की मरम्मत जैसी गैर महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करना भी सुविधाजनक हो जाता है.

रिटायरमैंट सब से बड़े अरमानों में से एक

लंबे समय के अरमानों की बात की जाए, तो 79% लोगों को यह उम्मीद होती है कि वे वित्तीय साधनों से मिलने वाले रिटर्न या मुनाफे से इन्हें पूरा करेंगे, जबकि 71% भविष्य में मिलने वाले रैगुलर इनकम से इसे पूरा करना चाहते हैं. यह जानकारी भी बड़ी दिलचस्प है कि इस जैनरेशन के लोगों के लिए रिटायरमैंट भी लंबे समय के 3 सब से बड़े अरमानों में से एक है, क्योंकि सामान्यतौर पर इस उम्र तक व्यक्ति को रैगुलर इनकम मिलना बंद हो जाता है.

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