Sexual Harassment : 22 वर्षीय सीमा को औफिस गए हुए चंद दिन ही गुजरे ही थे कि उसे उन के औफिस के एक सिनियर ने पहले तो उन के जौब के प्रोसेस को ले कर काफी हैल्प किया, उस के बाद उसे वह बीचबीच में कभी लंच तो कभी चाय पर बुलाने लगा. सीमा पहले तो जौब को ले कर उन के कन्सर्न को सराहती रही, लेकिन धीरेधीरे जब उन के बातचीत के तरीके में कुछ अलग अंदाज महसूस करने लगी, तो वह काम या कुछ न कुछ बहाना बना कर उन के साथ जाने से इनकार करने लगी. इस से उस ऐंपलोय को पता चलने लगा कि यहां उस की दाल गलने वाली नहीं है और वह भी शांत तरीके से धीरेधीरे खिसक लिया.
यहां सीमा को जौब छोड़ना नहीं था और उस इंसान से खुद को अलग भी करना था, जिस का एहसास सीमा को सिक्स्थ सेंस के द्वारा ही हुआ. हालांकि बाद में उस व्यक्ति ने उस कंपनी को खुद ही छोड़ दिया.
यहां यह समझने वाली बात यह है कि सैक्शुअल हैरेसमेंट की शिकार न होने की वजह सीमा की चतुराई है, जिस में उन्होंने बारीकी से बिना किसी को नाराज किए अपनी जगह कंपनी में बना ली और अभी वह अपने काम से बेहद खुश है.
सैक्शुअल हैरेसमेंट या यौन उत्पीड़न का मतलब है किसी व्यक्ति के साथ यौन प्रकृति का अवांछित आचरण करना. यह एक तरह की यौन हिंसा है. यौन उत्पीड़न कानून के खिलाफ है, लेकिन अपशब्द कहना या छेड़छाड़ करने वाले को कानून के दायरे में नहीं लाया जाता, जबकि यह किसी भी व्यक्ति को अपमानित, डराया या परेशान महसूस करा सकता है.
यौन उत्पीड़न भी 2 तरह के होते हैं :
वर्बल यानि जिस में किसी नारी की बौडी, परिधान, शारीरिक संरचना और लुक्स को ले कर बारबार कुछ कही जाए.
फिजिकल यानि जिस में किसी स्त्री को टच करना, बालों को सहलाना, हग करना आदि होता है, जिस में वह स्त्री असहजता महसूस करे.
असल में यौन उत्पीड़न किसी भी व्यक्ति के साथ कभी भी हो सकता है, चाहे उस का लिंग कोई भी हो. यौन उत्पीड़न कार्यालय, पार्टी या स्कूल में हो सकता है. यह एक बार में होने वाली घटना या बारबार होने वाला व्यवहार हो सकता है.
कानून में आमतौर पर छेड़छाड़ या अपमानजनक टिप्पणियों को शामिल नहीं किया जाता, जो सही नहीं. इस का संबंध आपसी आकर्षण या सहमति से किए गए व्यवहार से नहीं होता, इसलिए पहले इसे पता कर पाना मुश्किल होता है कि सैक्शुअल हैरेसमेंट है या रजामंदी से हुआ है क्योंकि ऐसा पाया गया है कि स्त्री की एक सिक्स्थ सेंस होती है, जिसे विज्ञान भी मानता है. उस का प्रयोग कर महिला खुद को सैक्सुअल हैरेसमेंट से बचा सकती है, जो कठिन तो है लेकिन नामुमकिन नहीं.
आंकड़ों में
वर्ल्ड पौपुलेशन रिव्यू के अनुसार 35% महिलाओं को अपने लाइफ में सैक्सुअल हैरसमेंट का सामना करना पड़ता है, जो केवल औफिस में ही नहीं, घर पर भी होते हैं. अकसर इस से पीड़ित लोग परेशान, डरे हुए, अपमानित या असुरक्षित महसूस करते हैं। कुछ लोगों के लिए यह उन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है और उन के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है.
इस का उदाहरण मुंबई के परेल स्थित किंग एडवर्ड मैमोरियल (केईएम) अस्पताल के बेसमेंट में 25 वर्षीय नर्स अरुणा शानबाग की अवस्था से लिया जा सकता है। घटना वर्ष 1973 की है, जब वह सुबहसुबह खून से लथपथ पाई गई थी। उस के मस्तिष्क के तने में चोट और ग्रीवा कौर्ड में गहरी चोट लगी थी. बेसमेंट में अकेली वह दिन के लिए निकलने से पहले अपनी वर्दी बदल रही थी, तभी उस के एक सहकर्मी सोहनलाल वाल्मीकि ने उस का यौन उत्पीड़न किया.
मैडिकल जांच से पता चला कि हमले के दौरान उस के गले में कुत्ते की चेन बंधी हुई थी और उसे घुमाया गया था, जिस से उस के मस्तिष्क में औक्सीजन की आपूर्ति बंद हो गई थी और वह कोमा में चली गई थी। 42 साल तक कोमा में रहने के बाद उस की मृत्यु हो गई.
कमजोर कानून
ऐसे कई केसेज आएदिन अखबार की सुर्खियों में होते हैं, जहां एक स्त्री सैक्सुअल हैरसमेंट की शिकार होती है. यह भारत में ही नहीं विश्व के हर जगह पर होता है, लेकिन विदेशों में सैक्सुअल हैरेसमेंट पर कानूनी दांवपेंच सख्त हैं, जहां राष्ट्रपति से ले कर आम इंसान सभी को एक दृष्टि से अपराधी माना जाता है और कानून के शिकंजे में एक बार आने पर उन्हें इस की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, जबकि हमारे देश में हैरेसमेंट करने वाला व्यक्ति बहुत मुश्किल से कानूनी शिकंजे में आता है और कई बार तो कुछ सालों बाद छूट भी जाता है.
पश्चिम बंगाल में सैक्सुअल हैरेसमेंट की शिकार एक मैडिकल छात्रा की दर्दनाक कहानी ने तो पूरे देश को हिला कर रख दिया था.
सैक्सुअल हैरसमेंट की शिकार से परेशान हो कर महिलाएं मीटू मूवमेंट में शामिल हुईं, जिस में फिल्म इंडस्ट्री से ले कर आम महिलाओं ने आगे बढ़ कर अपने ऊपर हुए यौन उत्पीड़न को खुलेआम बताने का साहस किया और कई कलाकारों को काम से कुछ दिनों के लिए हटना पड़ा.
अनरिपोर्टेड घटनाएं
यह भी सही है कि बहुत सारे ऐसे भी सैक्सुअल हैरेसमेंट की घटनाएं हैं, जिसे रिपोर्ट नहीं किया जाता. एक सर्वे में यह भी पाया गया है कि तकरीबन 75% वर्क प्लेस हैरेसमेंट की घटनाएं अनरिपोर्टेड रहती हैं, क्योंकि इस में स्त्रियां जौब खोने और बदनामी के डर से चुप रहती हैं, खासकर अगर हैरेसमेंट करने वाला व्यक्ति ऊंचे ओहदे पर हो, तो कंपनियां भी ऐक्शन नहीं लेतीं.
एक कंपनी में काम करने वाली इवेंट मैनेजर राशि की केस ऐसी ही कुछ बयां करती है, जब वह वर्क प्लेस में अपने एक सीनियर सहयोगी की हैरेसमेंट की शिकार हुई और उस ने जब कंपनी के उच्च पदाधिकारियों को इस की शिकायत की, तो राशि को ही जौब से बाहर निकाल दिया गया, क्योंकि हैरेसमेंट करने वाले व्यक्ति की जरूरत कंपनी को अधिक थी, जो राशि के साथ गलत हुआ.
वर्क प्लेस को हैल्दी रखना जरूरी
आजकल वर्किंग वूमन की संख्या अधिक है, ऐसे में बड़ी कंपनियों को अपने महिलाकर्मियो के लिए हैल्दी वर्क प्लेस वातावरण को बनाए रखने के लिए हमेशा कोशिश करते रहना पड़ता है. ऐसे में कंपनियां समयसमय पर सैक्सुअल हैरेसमेंट पर वर्कशौप करवाने के अलावा एक साइलैंट टीम भी रखती है, ताकि महिलाकर्मी अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को समझ कर बिना झिझक के कंपनी को बता सके और आगे कुछ गलत होने से पहले ही उस पर अंकुश लगाया जा सके. इस का फायदा निशा को हुआ, क्योंकि निशा को एक 50 वर्षीय बौस काम से अधिक उस की ड्रैस और लुक की तारीफ करता था। निशा को यह अच्छा नहीं लगता था. फिर उस ने सैक्सुअल हैरसमेंट डिपार्टमैंट का सहारा लिया, जिस से उस की समस्या का समाधान कुछ दिनों बाद मिल गया.
महिलाएं और उन के सिक्स्थ सेंस का कनैक्शन
एक शोध के मुताबिक सिक्स्थ सेंस शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण होता है, जो महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी औफ लंदन के वैज्ञानिकों ने ताजा शोध में कहा है कि महिलाओं का ‘सिक्स्थ सेंस’ पुरुषों से काफी अलग होता है.
शोध के डेटा विश्लेषण में पाया गया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अपने दिल की धडकनों और कुछ हद तक फेफड़ों के संकेतों को सटीक रूप से कम महसूस करती हैं। इस की वजह स्त्रियों में चिंता और अवसाद पुरुषों के मामले से अधिक होता है, लेकिन किसी दुर्घटना का आभास उन्हें जल्दी हो जाता है.
महिलाओं को मार्शल आर्ट्स सिखाने वाले अभिनेता विद्युत जामवाल ने एक इंटरव्यू में कहा है कि महिलाओं के पास सिक्स्थ सेंस है, जिसे वे आत्मरक्षा की कुंजी के तौर पर प्रयोग कर सकती हैं.
सैक्सुअल हैरसमेंट से बचने के उपाय
यौन उत्पीड़न से बचने के कुछ सुझाव निम्न हैं :
अपनेआप को कभी दोष न दें, क्योंकि यौन उत्पीड़न की शिकार होने के लिए आप खुद जिम्मेदार नहीं.
अगर आप के साथ बुरा व्यवहार हो रहा है तो देरी न करें. इन मामलों में देरी करने से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि उत्पीड़न का व्यवहार जारी रहे.
खुल कर बोलें कि आप के साथ हुआ क्या है. उत्पीड़क को लिखित संदेश भेजें. फिर भी उत्पीड़न जारी रहने पर रिकौर्ड या डायरी का सहारा लें. उन की बातों को लिखें या रिकौर्ड करें.
हैल्पफुल सहकर्मियों से बात करें.
अगर आप यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं और किसी प्रकार का हैल्प आप को न मिल रहा हो, तो पुलिस में इस की रिपोर्ट करें.
लड़कियों को हर उम्र में खुद की ताकत की पहचान होनी चाहिए. उन्हें यह जानना चाहिए कि किसी भी प्रकार की छेड़खानी या असहज स्थिति का सामना करने पर वे उस से कैसे बच सकती हैं.
कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए, अधिनियम, 2013 (एसएच अधिनियम, 2013) बनाया गया है, इस का सहारा लें.
अंत में, इतना कहना सही होगा कि सैक्सुअल हैरसमेंट की घटनाएं हर जगह कमोवेश हैं और हर महिला को इस का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह समझना पड़ेगा कि आप इस से कैसे बाहर निकल सकती हैं और खुद को वहां किस तरह स्टैब्लिश कर पाती हैं. ऐसा आप कर सकती हैं, क्योंकि आप के पास सिक्स्थ सेंस है, जो आप को किसी भी आने वाले आपत्तिजनक परिवेश से पहले ही अवगत करा देता है, लेकिन इस के लिए आप को हमेशा सजग रहने की जरूरत है.