हम यह कहते नहीं अघाते कि हमारे ग्रंथों में महान भाईचारा, सदाचार, सत्य, धर्म, पूजा, यज्ञ, ज्ञान भरा पड़ा है. हर रोज सुबहसुबह से ही व्हाट्सऐप संदेश मिलने शुरू हो जाते हैं जो धर्म की खातिर कुछ भी करने का संदेश देते हैं पर धार्मिक कथाएं कैसी हैं, यह जरा सी परतें उधेड़ने पर पता चल जाता है. महाभारत में हिडिंबा की कहानी भी ऐसी ही है.
युधिष्ठिर जब जुए में दुर्योधन के हाथों राजपाट हार जाता है तो उसे मां कुंती और भाइयों के साथ वन में जाना पड़ता है. एक वन में जब वे विश्राम कर रहे होते हैं तो वन क्षेत्र के राजा हिडिंब को पता चलता है और वह अपनी बहन हिडिंबा को पता करने के लिए भेजता है कि वे लोग कितने हैं और कैसे हैं? हिडिंबा को पांडवों में से भीम बहुत पसंद आता है और उसे मारने की जगह वह भीम को ले कर भाई के पास जाती है. हिडिंब दोनों के प्रेम को स्वीकर नहीं करता तो भीम और हिडिंब में युद्ध होता है, जिस में हिडिंब मारा जाता है.
पांडवों की जान बचाने के लिए कुंती हिडिंबा को कुछ उपहार देने को कहती है तो हिडिंबा भीम को ही मांग लेती है. दोनों का विवाह हो जाता है और उन का पुत्र घटोत्कच होता है जो कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारा जाता है.
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सवाल है, यह कैसी संस्कृति थी, जिस में भाई के हत्यारे को सहज रूप से खुद मांग कर पति बना लिया जाता है? हिडिंबा तो चलो जंगली कुल की थी पर पांडव तो धर्म के रक्षक थे. उन्हें तो मालूम होना चाहिए था कि जिस के भाई को मार डाला गया हो, उसे पत्नी कैसे बनाया जा सकता है?
यह संस्कृति आज भी हमारे यहां मौजूद है चाहे दूसरे रूपों में. औनर किलिंग में यदि घर वाले अपने बेटेबेटी की हत्या रीतिरिवाज तोड़ने पर कर देते हैं और बिना अपराबोध से रहते चले जाते हैं तो उस का कारण यही है. पौराणिक कथाओं पर आज भी समाज बुरी तरह फिदा है. प्रवचनों में भारी भीड़ जमा होती है. महाभारत धारावाही बारबार दोहराया जाता है और उसे फिर भी दर्शक मिलते हैं.
जब आप की शिक्षा में ही गलत पाठ पढ़ाया गया हो कि भाई के हत्यारे से विवाह कर लो और राज संभाल लो तो कैसी नैतिकता, कैसा रक्षाबंधन, कैसा संयुक्त परिवार और कैसी सुरक्षा?
हां, अगर तर्क के दरवाजे बंद कर के लकीर को पीटना ही महानता है तो दुनिया में हम से बढ़ कर कोई न होगा.