ब्रिटिश संस्था कोडैक लेंस विजन द्वारा 18 से 50 साल की उम्र के 3000 लोगों की राय को आधार बना कर एक रिसर्च किया गया. रिसर्च के मुताबिक पुरुष अपनी जिंदगी का पूरा 1 साल यानी औसतन प्रतिदिन करीब 43 मिनट का समय लड़कियों को घूरने पर कुर्बान कर देते हैं. वे एक दो नहीं वरन अलगअलग 10 लड़कियों को घूरते हैं.

सभ्य और शिक्षित पुरुषों को छोड़ दें तो बाकी के ज्यादातर भारतीय पुरुषों में अनजान महिलाओं और लड़कियों को घूरने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है. यह उन का एक मजेदार टाइमपास है जबकि लड़कियों और महिलाओं को इस से बड़ी कोफ्त होती है.

ऐसा नहीं है कि सभी पुरुष ऐसा करते हैं या स्त्रियों को घूरने की उन की वजह एक ही होती है. अलगअलग पुरुषों के लिए अलगअलग कारण हो सकते हैं. इसी तरह पुरुषों के देखने की नजर भी अलगअलग होती है। कोई गंदी नजरों से देखता है, कोई कौतूहल भरी नजरों से तो कोई प्रशंसा भरी नजरों से देखता है. किसी की नजरें एक लड़की पर ही टिकी रह जाती हैं तो कोई हर लड़की को आजमाता है.

वजह बहुत सी हैं

समाज में पुरुषों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो खुद को भारतीय मूल्य और संस्कृति के तथाकथित रक्षक, पोषक और ठेकेदार मानते हैं. उन्हें लगता है कि प्राचीन भारतीय सभ्यता संस्कृति को आगे बढ़ाने और जिंदा रखने का पूरा भार महिलाओं के कंधों पर है. महिला घर और समाज की इज्जत है और यदि वे छुद्रता पर उतर आए तो पूरा समाज लज्जित होता है. अपने विज़ुअल वोट्स के आधार पर वे यह तय करते हैं कि महिला संस्कारी है या नहीं. इस का निर्धारण वे लड़कियों द्वारा पहने गए कपड़ों के आधार पर करते हैं. लड़की और महिला ने कितने और किस तरह के कपड़े पहने हैं, कपड़ों की लंबाई कितनी है और उस के शरीर का कौन सा हिस्सा ढका है और कौन सा नहीं, उस की आंखों में शर्म और हया का कितना पानी है वगैरह  जैसी बातों के आधार पर बैठे बैठे वे लड़की के मौरल करैक्टर का खाका खींचने लगते हैं.

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