गणेशस्पीक्स डौटकौम नाम के वैब पोर्टल द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि 65% महिलाएं तलाक या जीवनसाथी द्वारा धोखा दिए जाने के मसलों को ले कर काफी परेशान रहती हैं जबकि 35% पुरुषों में ही यह तनाव पाया गया. यह आकलन पोर्टल द्वारा फोन पर उपलब्ध कराई जाने वाली परामर्श काल सेवा से मिले डाटा के आधार पर तैयार किया गया है. 2016 में महिलाओं द्वारा रिलेशनशिप से संबंधित मुद्दों के लिए की गईं काल्स में पिछले वर्ष की तुलना में 45% का इजाफा हुआ. जाहिर है आज की महिलाएं अपने विवाह को जन्मजन्मांतर का बंधन मान कर हर ज्यादती चुपचाप सहने को तैयार नहीं हैं. उन्हें अपने जीवनसाथी का पूरा भरोसा एवं बीवी होने का पूरा हक चाहिए. पति या ससुराल वालों के अत्याचार सहने के बजाय वे तलाक ले कर अलग हो जाने को बेहतर मानती हैं.
दरअसल, अब लड़कियां पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. शादी के बाद वे अपने कैरियर को पूरा महत्त्व देती हैं और पति से भी बराबरी का हक चाहती हैं. ऐसे में जब दोनों के अहं टकराते हैं, तो आत्मसम्मान खोने के बजाय वे अलग दुनिया बसाना पसंद करती हैं. यही नहीं आज लोगों के मन में कम समय में अधिक से अधिक हासिल करने की प्रवृत्ति भी जोर पकड़ती जा रही है. पतिपत्नी दोनों ही परिवार को कम वक्त दे पाते हैं, जिस से घर में तनाव रहता है. पतिपत्नी के बीच तालमेल का अभाव और शक की दीवारें भी दूरियां बढ़ाती हैं.
तलाक का फैसला लेना आसान है पर आज भी तलाक के बाद जिंदगी खासतौर पर एक महिला की उतनी आसान नहीं रह जाती. इस संदर्भ में अपनी किताब ‘द गुड इनफ’ में डाक्टर ब्रैड साक्स का कथन सही है कि पतिपत्नी सोचते हैं तलाक के बाद उन की जिंदगी में सुकून आ जाएगा. रोजरोज के झगड़ों का अंत हो जाएगा. पर यह उसी तरह संभव नहीं जैसे एक ऐसी शादीशुदा जिंदगी की कल्पना जिस में केवल खुशियां ही खुशियां हों. इसलिए प्रयास यही होना चाहिए कि जितना हो सके तलाक को टाला जाए.