नोएडा के रहने वाले मंजू और अमित की शादी तय हो चुकी थी. दोनों के घर वालों ने उन की मंगनी कर दी थी जिस से उन्हें मिलनेजुलने और साथ घूमनेफिरने की आजादी मिल गई थी. अकसर दोनों दिल्ली घूमते, अपनी आने वाली जिंदगी के ख्वाब बुना करते और प्यारभरी बातें किया करते थे.
मामूली खातेपीते घरों के मंजू और अमित जब भी मिलते थे तो उन का दिल एकदूसरे से लिपटने का भी होता था. उन्हें लगता था कि वक्त थम जाए, दुनिया में कोई न हो और दोनों एकदूसरे की बांहों में लिपटे वहां पहुंच जाएं जहां पहुंचने में बस चंद दिन ही बाकी थे. अपनी यह ख्वाहिश दोनों एकदूसरे से जताने भी लगे थे और एकदूसरे को तसल्ली भी देते रहते थे कि बस, अब कुछ दिनों की बात और है, फिर तो...
जाहिर है इस ‘फिर तो’ का मतलब शादी के बाद सैक्स करना था. हर बार मिलने के दौरान एकदूसरे को छूने, सहलाने और चूमने से उन के मन में हमबिस्तर होने की चाहत जोर पकड़ने लगी थी. दोनों पढ़ेलिखे, समझदार थे और चूंकि मंगेतर थे, इसलिए इन बातों को गलत नहीं समझते थे. मन से तो दोनों एकदूसरे के हो ही चुके थे, अब तन से मिलने के लिए सुहागरात का इंतजार कर रहे थे. हालांकि अब और सब्र कर पाना दोनों के लिए ही मुश्किल हो चला था.
एक दिन दोनों की यह मुराद बिन मांगे ही पूरी हो गई जब मंजू के घर वालों ने उसे ग्वालियर जाने के लिए कहा. वहां एक नजदीकी रिश्तेदार के यहां घरेलू जलसा था. मंजू के घर वालों ने खुद ही पहल करते हुए कहा कि वह अमित को भी साथ लेती जाए जिस से रिश्तेदारों से उस की जानपहचान हो जाए. जैसे ही मंजू ने यह बात अमित को बताई और अमित के घर वालों ने भी उसे मंजू के साथ जाने की इजाजत दे दी तो वह उछल पड़ा. महबूबा को इतने नजदीक से महसूस करने का मौका जो उसे मिल रहा था.