Marital Rape : इसराईल की एक महिला शीरा इसकोवा पर सितंबर, 2020 में उस के पति ने 20 बार धारदार चाकू से जानलेवा हमला किया. उस के बाद उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टरों का कहना था कि महिला का बचना मुश्किल है, लेकिन अपनी हिम्मत के बल पर शीरा मौत को मात दे कर जी उठी.
घटना के 14 महीने बाद कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले में कोई मजबूत कानून नहीं होने की वजह से उस के आरोपी पति को निर्दोष बता दिया. कोर्ट की इस जजमैंट को ले कर पीडि़त महिला ने कहा था, ‘‘मुझे शरीर में 20 चाकू धंसने पर भी उतना दर्द नहीं हुआ, जितना कोर्ट के इस फैसले को सुनने पर हुआ.’’
इसराईल जैसे संपन्न देश में भी ऐसे कानून हैं जहां एक महिला पर पति द्वारा 20 चाकू घोंपे जाने के बावजूद उसे निर्दोष साबित कर दिया गया. लेकिन सिर्फ इसराईल ही एक अकेला ऐसा देश नहीं है. भारत समेत कई बड़े देशों में महिला विरोधी कानून आज भी लागू हैं.
भारत के पतियों को रेप की आजादी
मैरिटल रेप का सवाल लगातार किसी न किसी रूप में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. विवाहित महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की घटनाएं आज भी हो रहे हैं. भारत में वैवाहिक बलात्कार कानून की नजर में अपराध नहीं है यानी अगर पति अपनी पत्नी के की मरजी के बगैर उस से जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता.
एक पीडि़त महिला ने कोर्ट में जब यह कहते हुए गुहार लगाई कि उस का पति उस के साथ अप्राकृतिक कृत्य करता है, तो कोर्ट ने यह कहते हुए पति को बलात्कार के मामले में अपराधमुक्त कर दिया कि अगर पत्नी कानूनी तौर पर विवाहित है और उस की उम्र 18 साल से अधिक है, तो पत्नी के साथ बलपूर्वक या उस की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध या यौन क्रिया अपराध या बलात्कार नहीं है.
हमारे भारतीय समाज में तो शादी को एक पवित्र बंधन माना गया है. यहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ मार कर जबरन रेप को अपराध क्यों नहीं माना जाता? क्या पत्नी की देह पर उस का अपना कोई अधिकार नहीं है? क्या 21वीं सदी में भी शादी के बाद महिला की स्थिति सिर्फ पति की दासी जैसी है और उस का अपना कोई अस्तित्व नहीं है? क्या शादी के बाद भारतीय पतियों को कानूनी तौर पर पत्नी का बलात्कार करने का लाइसैंस मिल जाता है?
अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ मार कर जबरन सैक्स करता है, तो भारत का बलात्कार का कानून पति पर लागू नहीं होता और उस का नतीजा यह है कि महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बन रही हैं.
मैरिटल रेप से जूझ रही महिलाओं की कहानी
लता, बदला हुआ नाम, कहती है कि उस का पति रोज शराब के नशे में चूर उस के साथ जानवरों जैसा सलूक करता है और वह जिंदा लाश की तरह बस पड़ी रहती है. तब उस का पति और हिंसक हो जाता है. हर रात वह उस के लिए एक खिलौने की तरह है, जिसे वह अलगअलग तरह से इस्तेमाल करता है.
पत्नी से लड़ाई के दौरान वह अपनी खुन्नस पत्नी का बलात्कार कर के निकालता है. तबीयत खराब होने पर कभी वह न कह दे तो पति सहन नहीं कर पाता है. अब वह इन संबंधों से ऊबने लगी है. उस का मन करता है कहीं भाग जाए, पर 2-2 बच्चों को पालना है, इसलिए सहने को मजबूर है.
एक महिला का कहना है कि एक रोज उस के पति ने उसे मारापीटा और घसीट कर कमरे में ले गया. उस ने अपनी पूरी ताकत से खुद को पति से अलग करना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका. और तो और उस ने उस के प्राइवेट पार्ट में टौर्च घुसा दी जिस से वह बेहोश हो गई. लेकिन पति दरवाजा बंद कर बाहर निकल गया. उस के बाद ससुराल वालों ने उसे अस्पताल पहुंचाया. वह कहती हैं कि उस के बाद वह कभी अपनी ससुराल नहीं गई.
सैक्स के लिए परेशान करता था
कुछ साल पहले एक पत्नी द्वारा सैक्स के लिए मना करने पर पति ने उस का गला दबा कर मारने की कोशिश की थी. 34 वर्ष की महिला संगम विहार में अपने पति और 2 बच्चों के साथ रहती थी. दोनों की शादी को 17 साल हो गए थे. दोनों के बीच सैक्स को ले कर अकसर झगड़ा होता था.
पत्नी का आरोप था कि करीब 1 महीने पहले उस ने फैमिली प्लानिंग का औपरेशन करवाया था, इसलिए डाक्टर ने 3 महीने तक उसे शारीरिक संबंध बनाने से मना किया था. लेकिन पति अकसर उसे सैक्स के लिए परेशान करता था. एक रोज वह यह कहते हुए पत्नी का गला दबाने लगा कि अगर तू मेरे साथ सैक्स नहीं करेगी तो मैं तुझे जान से मार दूंगा. फिर तंग आ कर पत्नी को पुलिस को फोन करना पड़ा.
यहां सब से बड़ा सवाल यह है कि हमारे समाज में शादी चलाने और पति को खुश रखने की जिम्मेदारी औरतों के जिम्मे ही क्यों है? क्या औरत के शरीर और मरजी कोई माने नहीं है?
कोर्ट का तर्क
कोर्ट के अनुसार यह कैसे साबित होगा कि घर की चारदीवारी में क्या हुआ? कैसे पता चलेगा कि पत्नी की रजामंदी नहीं थी? रेप के कई झठे मामले अदालतों में पहुंचे और इस से कई जिंदगियां बरबाद हुईं. बैडरूम को अदालतों तक ले जाने की यह कोशिश बहुत खतरनाक साबित हो सकती है. इसलिए मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में रखा जाना उचित नहीं क्योंकि इस से विवाह संस्था चरमरा सकती है.
मगर यदि एक ऐसी संस्था की नींव बलात्कार जैसे अपराध पर टिकी हो तो उस संस्था का चरमरा जाना ही बेहतर रास्ता है. मैरिटल रेप कोई घर की बात नहीं है, बल्कि एक अपराध है. यह अपराध चाहे कोई भी करे इस से उस का चरित्र या उस की परिभाषा बदल नहीं जाती.
मैरिटल बलात्कार का मामला कई बार सांसद में भी उठा, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट भी पत्नी की सहमति के बगैर उस से यौन संबंध स्थापित करने के कृत्य को अपराध घोषित करने से इनकार कर चुका है.
‘यूनिवर्सिटी औफ वौरविक’ और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहे उपेंद्र बख्शी कहते हैं कि मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर देना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार को रोकने के किए कोई कदम नहीं उठाया गया है.
1980 में प्रोफैसर बख्शी जानेमाने वकीलों में शामिल थे और उन्होंने अपनी बात सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जड़े कानूनों में संसोधन को ले कर कई सुझव भी भेजे थे. समिति ने उन के सारे सुझवों को स्वीकार कर लिया सिवा मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के सुझव को. सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का अपराधिकरण विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं.
2013 में संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने भारत के इस रवैए पर चिंता जताते हुए सिफारिश की थी कि भारत सरकार वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करे. निर्भया मामले में प्रदर्शन के बाद गठित जेएस वर्मा समिति ने भी इस की सिफारिश की थी. कई समितियां बनी. लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है.
1947 में भारत का आधा हिस्सा ही आजाद हुआ था, बाकी आधा अभी भी गुलाम है. महिलाएं पितृसत्तात्मक सोच के नीचे घुट रही हैं. भारत आधुनिकता का सिर्फ मुखौटा ओढ़े हुए है. अगर सतह को खंरोच कर देखें, तो असली चेहरा साफसाफ नजर आएगा.
पत्नी की शरीर संपत्ति नहीं
भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में आज भी पत्नी के शरीर पर पति का हक माना जाता है. इस कथित हक के हिसाब से लोग अकसर मान लेते हैं कि उन्हें पत्नी के साथ उस की मरजी के खिलाफ भी सैक्स करने का अधिकार है क्योंकि शादी के बाद पत्नी उस की संपत्ति की तरह है जिसे वह जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकता है.
ऐसे में वैवाहिक बलात्कार जैसे मुद्दे पुरुषों के लिए बेतुके लगते हैं. लेकिन क्या शादी का मतलब पत्नी से जबरदस्ती करने की आजादी है? क्या कानून का सहारा ले कर औरतों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को सही ठहराया जा सकता है?
भारत में आज भी घरेलू हिंसा के खिलाफ सख्त कानूनों की कमी है. पत्नी के बलात्कार के खिलाफ भारत में कोई कानून है ही नहीं. फिर भी अदालतें यही कहती हैं कि अकसर औरतें कानूनों का दुरुपयोग करती हैं. लेकिन वही कानून एक बलात्कारी को पीडि़ता से शादी करने का औफर देता है ताकि उस की सजा माफ हो सके.
जस्टिस बोबडे ने एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति से पूछा था कि क्या वह उस से शादी करने के लिए तैयार है? सीजेआई ने वैवाहिक बलात्कार के एक अलग मामले में दूसरा भयानक सवाल यह किया था कि जब 2 लोग पति और पत्नी के तौर पर साथ रह रहे हैं, पति चाहे कितना भी क्रूर हो, क्या उन के बीच यौन संबंध को बलात्कार कहा जा सकता है?
क्या इस तरह के सवाल घरेलू हिंसा को और बढ़ावा नहीं देते हैं? क्या एक इंसान होने के नाते औरत को ‘न’ कहने का कोई हक नहीं है? फिर चाहे वह व्यक्ति उस का पति ही क्यों न हो. शादीशुदा होने से रेप का अपराध क्या कम गंभीर हो जाता है यानी पत्नी अगर 8 साल से ऊपर की है तो पति को वैवाहिक बलात्कार के लिए ‘हाल पास’ मिल जाता है. पति बिना किसी डर के अपनी पत्नी के साथ जो चाहे, जैसे चाहे कर सकती है, उस पर कोई कानूनी शिकंजा नहीं कसेगा.
पति का हक
आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पत्नी के बलात्कार के खिलाफ कानून बनाने के हक में नहीं हैं. ‘आंसर्स डौट कौम’ ने इस मुद्दे पर हो रही चर्चा पर लिखा था कि पति का अपनी पत्नी के जिस्म पर पूरा हक है. किसी सैक्स वर्कर के पास जाने से अच्छा है पत्नी के साथ ही जबरदस्ती करो. एक और व्यक्ति ने लिखा था कि पत्नी का बलात्कार इतना संजीदा मुद्दा नहीं है जितना किसी लड़की से बलात्कार करना. पत्नी को अपने पति की जरूरतों का खयाल रखना चाहिए.
नाक कटने का डर
अधिकतर मामलों में महिलाएं अपने घर में ही पति के हाथों बलात्कार की शिकार होती हैं. लेकिन वे अपनी शिकायत ले कर सामने नहीं आ पातीं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि ऐसा करने से समाज में उन की नाक कट जाएगी और अगर कोई अपने हक के लिए बोलना भी चाहती है तो उस की आवाज दबा दी जाती है.
अफसोस की बात है कि हमारी न्याय प्रणाली भी दोषी का साथ देती है. छोटे से ले कर बड़ा अधिकारी पैसे दे कर खरीद लिया जाता है. लेकिन वहीं पश्चिमी देशों में महिलाओं के हितों में नए कानून ही नहीं बनते, बल्कि उन का पालन भी होता है. लेकिन हमारे यहां अगर कोई कानून बन भी जाए तो उस का पालन नहीं होता, केवल दुरुपयोग होता है.
100 से भी अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. लेकिन भारत लगभग 32 देशों की चमकदार लीग पर खड़ा है, जहां वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है. ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का यह कानून भारत में 1860 से लागू है, जिस में जिक्र था कि अगर पति अपनी पत्नी के साथ जबरन सैक्स करे और पत्नी की उम्र 18 साल से कम की न हो तो उसे रेप नहीं माना जाएगा.
इस प्रावधान के पीछे यह मान्यता है कि शादी में सैक्स की सहमति छिपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है. लेकिन खुद ब्रिटेन ने भी 1991 में वैवाहिक बलात्कार को यह कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि छिपी हुई सहमति को अब गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है. लेकिन महान भारतीय पितृसत्तात्मक मानसिकता ने लंबे समय तक एक विडंबना को पाले रखा, जो आज तक चली आ रही है.
मैरिटल रेप का अपवाद हमारे कानून और समाज में पितृसत्तात्मक सोच को प्रदर्शित करता है. औपनिवेशिक कानून लागू होने के बाद जब पहली बार अपवाद को जोड़ा गया तो नीति निर्माताओं ने चर्चा की थी कि क्या कानून को रेप करने वाले पति को बचाना चाहिए या शादी में रेप को बरदाश्त करने की पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति को यह अपवाद वैधता देता है?
वैवाहिक बलात्कार का ही परिणाम है कि आज कई महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश में शादी करने वाली 15 से 49 साल के बीच की हर 3 में से 1 महिला पति के हाथों हिंसा का शिकार होने की बात कहती है. एक सर्वे के अनुसार 31 फीसदी विवाहित महिलाओं से उन के पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.
महिलाओं पर वैवाहिक बलात्कार के प्रभाव
पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार और अन्य गलत दुर्व्यवहार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न करता है. वैवाहिक बलात्कार हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित करता है.
एक ओर पारिवारिक हिंसक माहौल, तो दूसरी ओर ये घटनाएं स्वयं और बच्चों की उपयुक्त देखरेख कर सकने की महिलाओं की क्षमता को कमजोर कर सकती हैं. अपरिचित या परिचित व्यक्ति द्वारा बलात्कार की शिकार पीडि़ताओं की तुलना में वैवाहिक बलात्कार की शिकार पीडि़ताओं के बारबार बलात्कार की घटनाओं का शिकार होने की अधिक संभावना रखती है.
यह चौंकाता है. लेकिन यह सच है कि हम एक ऐसे देश में हैं जो ज्यादातर यही मानता है कि एक भारतीय महिला शादी के बाद कई चीजों के साथ अपने पति के लिए कभी खत्म नहीं होने देने वाली, बदली न जा सकने वाली और हमेशा के लिए सहमति सौंपने वाली होती है, जिसे केवल मौत ही खत्म कर सकती है.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 यह सुनिश्चित करता है कि राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा, लेकिन भारतीय आपराधिक कानून महिलाओं खासकर के उन महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, जिन का पतियों द्वारा बलात्कार किया जाता है. हालांकि संविधान सभी को समानता की गारंटी देता है.
आधुनिक समाज में जब हर स्तर पर स्त्रियों की भागीदारी व बराबरी की कोशिश हो रही है और इन कोशिशों का श्रेय पुरुष बढ़चढ़ कर लेते रहे हैं. लेकिन अब समय आ गया है कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए. इस के दायरे में उन सभी महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटना को शामिल किया जा सकता है जो कभी भी विवाहित रही हों अर्थात विवाहित, तलाकशुदा, पति से अलग हो कर रह रही महिला और लिविंग पार्टनर के साथ उन की इच्छा के विरुद्ध पति या जीवनसाथी द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने या फिर यौन हिंसा का प्रावधान होना चाहिए.
सरकार को महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए पत्नी से बलपूर्वक यौनाचार को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने ही पड़ेंगे वरना थकहार कर महिलाओं को उसी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में घुट कर जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में न रखा जाना पितृसत्तात्मक को और मजबूत करता है.